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________________ ४६२ सूर्यप्रज्ञप्तिसत्रे ज्ञेयम् । अत्र पुनर्गणितप्रक्रिया दर्शनेनालम् । एवं च पुनरत्रैव अमुमेवार्थ सर्वेषां स्पष्टावबोधो यथा भवेत् तथा भगवान् गौतमो भूयः पृच्छति-'ता से णं परिक्खेवविसेसे कओ आहिताति वएना' तावत् स खलु परिक्षेपविशेषः कुत आख्यात इति वदेत् ।।-तावदिति पूर्ववत् तस्या अन्धकारसंस्थितेः स:-अनन्तरोदितप्रमाणरूपः-६३२४६ इत्युक्तप्रमाणभूतः परिक्षेपविशेषो मन्दरपरिरयपरिक्षेपविशेषः कुतः-कस्माद्धेतोः-कस्मात् कारणात्-कस्याः वा उपपत्याधारतः आख्यातः कथितः-कस्मादल्पाधिको नोक्तः ? इति भगवान् वदेत्, एवं बुद्धिमता शिष्येण गौतमगोत्रोत्पन्नेन गौतमेन प्रश्ने कृते सति वीतरागो भगवान् गुरुमहावीरस्वामी तदुत्तरं स्पष्टावबोधनार्थमाह-'ता जेणं मंदरस्स पन्वयस्स परिक्खेवविसेसे तं परिक्खेवं दोहिं गुणेत्ता सेसं तहेव' तावद् यः खलु मन्दरस्य पर्वतस्य परिक्षेपविशेष स्तं परिक्षेपं द्वाभ्यां गुणयित्वा शेषं तदेव ॥-तावदिति प्रागवत् यः खलु मन्दरस्य पर्वतस्य परिक्षेप का गणित पूर्व प्रतिपादित प्रक्रिया से समझ लेवें । यहां पर फिर से गणित प्रक्रिया कहते नहीं है । इस कथन का स्पष्ट प्रकार से ज्ञान हो इस हेतु से फिर से गौतमस्वामी भगवान् को प्रश्न करते हैं-(ता से णं परिक्खेवविसेसे कओ आहिताति वएज्जा' वह परिक्षेपविशेष किस कारण से कहा है ? सो कहिये । कहने का भाव यह है कि-उस अन्धकारसस्थिति का उस प्रकार से ६३२४६ छ हजार तीनसो चोवीस योजन तथा एक योजन का छ दस भाग इस प्रकार का प्रमाण भूत परिक्षेपविशेष किस कारण से कहा है इस से अल्प वा अधिक क्यों नहीं कहा है ? हे भगवन् सो आप कहिये इस प्रकार बुद्धिमान् गौतमगोत्रोत्पन्न गौतमस्वामी के प्रश्न करने से वीतराग भगवान् महावीरस्वामी उसका उत्तर स्पष्ट प्रतिपत्ति होने के उद्देश से कहते हैं (ता जे णं मंदस्स पव्वयस्स परिक्खेवविसेसे तं परिक्खेवं दोहिं गुणेत्ता सेसं तहेव) जो मन्दर पर्वत का परिक्षेप विशेष है उस परिक्षेप આવેલ પ્રક્રિયાથી સમજી લેવું. અહીંયાં ફરીથી તે ગણિત પ્રક્રિયા કહેલ નથી, આ કથનનું साथी शान थाय २ हेतुथी शथी गौतमस्वामी सगवानन. प्रश्न पूछे छे. (ता सेण परिक्खेवविसेसे कओ आहिताति वएज्जा) से परिक्ष५ विशेष ॥ ४ारथी थेटसा प्रभावाणी કહેલ છે? તે આપ કહી બતાવે. કહેવાનો ભાવ એ છે કે–એ અંધકાર સંસ્થિતિને એ પ્રકારનો અર્થાત્ ૬૩૨૪૬ છ હજાર ત્રણસો વીસ જન તથા એક યોજનના છ દસ ભાગ આ પ્રકારનો પ્રમાણવાળ પરિક્ષેપ વિશેષ શા કારણથી કહેલ છે? તેનાથી થડે કે વધારે કેમ થતું નથી ? હે ભગવાન તે આપ મને કહો. આ પ્રમાણે બુદ્ધિમાન ગૌતમગત્રાત્પન્ન શ્રી ગૌતમસ્વામીના પૂછવાથી વીતરાગ ભગવાન મહાવીરસ્વામી તેની સ્પષ્ટ પ્રતિપત્તિ थाय से तुथी तने। उत्त२ २५i ४ छ -(ता जे ण मंदरस्स पव्वयस्स परिक्खेवविसेसे तं परिक्खेवं दोहि गुणेत्ता सेसं तहेव) म४२ पतनी परिक्षय विशेष छ. मे परिक्षयने શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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