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________________ सूर्यशप्तिप्रकाशिका टीका सू० २४ तृतीयं प्राभृतम् । ३९५ परिक्खेवेणं पन्नत्ते' अयं खलु जम्बूद्वीपः सर्वद्वीपसमुद्राणां यावत् परिक्षेपेण प्रज्ञप्तः ॥अयं-ग्रन्थवर्णित सर्वलक्षणपूर्णः-पुरोवर्तमानः खलु जम्बूद्वीपो वर्तते, यः खलु सर्व द्वीपसमुद्राणां परिक्षेपेण परिधिना प्रज्ञप्तः-कथितः। जम्बूद्वीपवर्णनं जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिग्रन्थे विस्तररूपेण विलोकनीयम् । सामान्यवर्णन मत्र यथा-'से णं एगाए जगतीए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते' स खलु एतस्मिन् जगतीतले समस्तसंसार सर्वसम्मतः-सर्वमान्यः-सप्तद्वीपेषु मूर्धन्यरूपो ऽस्तीत्येवं सर्वैः संपरीक्षितः-भूयो भूयः सम्यग् ज्ञात्वा निर्णीतो वर्तते । अथवा स जम्बूद्वीप एकया जगत्या सर्वतः समन्तात् संपरिक्षिप्त:-वेष्टितः, तथा च-'सा णं जगती तहेव जहा जंबुद्दीवपन्नत्तीए जाव एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे चोदससलिलासयसहस्सा छप्पन्न सव्वदीवसमुदाणं जाव परिक्खेवेणं पण्णत्ते) यह जम्बूद्वीप सर्वद्वीपसमुद्रों में यावत् परिक्षेप से कहा है। कहने का भाव यह है कि जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र आदि शास्त्र में वर्णित सर्व लक्षणों से पूर्ण समीपस्थ यह जम्बूद्वीप वर्तमान है, जो सर्वद्वीप एवं समुद्रों में परिक्षेप नाम परिधि से कहा है इस जम्बूद्वीप का वर्णन जम्बूदीपप्रज्ञप्ति सूत्र में विस्तार से वर्णित हवा है सो वे वहां से देख लेवें। सामान्य प्रकार से इसका कथन यहां पर करते हैं सो इस प्रकार से है-(से णं एगाए जगतीए सवओ समंता संपरिक्खित्ते) वह इस जगती नाम पृथ्वी में सर्व मान्यता से निर्णित है । अर्थात् वह प्रसिद्ध जम्बूद्वीप इस पृथ्वी में माने समस्त संसार में सर्वमान्य सातों द्वीपों में मुगुटरूप है इस प्रकार सभी ने बारबार सम्यक प्रकार से जान करके निर्णित किया है, अथवा यह जम्बूद्वीप एक जगती से चारों ओर संपरिक्षिप्त नाम वेष्टित है। तथा (सा णं जगती तहेव जहा जंबुद्दीवपन्नत्तीए जाव एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे चोदससलिलासयसहस्सा छप्पण्णं च जाव परिक्खेवेणं पण्णत्ते) 24. पूदी५ सदी मने समुद्रोभा यावत् परिक्षपथी हेस छ. કહેવાને ભાવ એ છે કે-જંબૂઢીપપ્રજ્ઞપ્તિ વગેરે શામાં વર્ણવેલ સર્વ લક્ષણથી પૂર્ણ સમીપ આ જંબૂઢીપ રહેલ છે. જે બધા દ્વીપ અને સમુદ્રમાં પરિક્ષેપ નામ પરિધિરૂપ છે. આ જ બુદ્ધીપનું વર્ણન જબૂદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્રમાં સવિસ્તર વર્ણવેલ છે, તે તે જીજ્ઞાસુએ ત્યાંથી જાણી લેવું. સામાન્ય રીતે સક્ષેપથી અહીં કહેવામાં આવે છે, २ मा प्रमाणे छे, (से णं एगाए जगतीए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते) ते दी५ मा જગતી અર્થાત્ પૃથ્વીમાં સર્વ માન્યતાથી નિર્ણિત થયેલ છે, અર્થાત્ એ પ્રતિબદ્ધ જંબૂદ્વીપ આ પૃથ્વીમાં અર્થાત્ સઘળા સંસારમાં સર્વમાન્ય અને સાત દ્વીપમાં મુગુટરૂપ છે, આ રીતે બધાએ વારંવાર જાણીને નિર્ણય કરેલ છે, અથવા આ જંબુદ્વીપ એક જગતીથી यारे त२३ सपशिक्षिप्त अर्थात् वीटायेस छ, तथा (सा णं जगती तहेव जहा जंबुद्दीव. पन्नत्तीए जाव एवामेव सपुत्वावरेणं जंबुदीवे दीवे चोदससलिलासयसहस्सा छप्पण्णं च શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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