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________________ ३९० सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे रिंशतं द्वीपान् द्विचत्वारिंशतं समुद्रान् चन्द्रसूयौँ अवभासयत उद्योतयत स्तापयतः प्रकाशयतः, एके एवमाहुः ७ ॥-तावदिति प्राग्वत् स्वस्व विमण्डले भ्रमन्तौ चन्द्रसूर्यों द्विचत्वारिंशतं द्वीपान् द्विचत्वारिंशतं समुद्रान् अवभासयत उद्योतयत स्तापयतः प्रकारशयत इत्येवं रूपं स्वमतं सप्तमा स्तीर्थान्तरीया भाषन्ते । ततः-'एगे पुण एवमाहंसु ८' एके पुनरेवमाहुः ८॥-एके-अष्टमाः पुनः-सप्तमपर्यन्तानां मतं श्रुत्वा एवं वक्ष्यमाणप्रकारकं स्वमतमभिदधति-'बावत्तरि दीवे बावत्तरि समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासेंति उज्जोवेति तवेंति पगासेंति, एगे एवमाहंसु ८' द्वासप्तति द्वीपान द्वासप्ततिं समुद्रान् चन्द्रसूयौं अवभासयतः उद्योतयत स्तापयतः प्रकाशयतः-एके एवमाहुः ८ ॥-कान्तिवृत्ते सूर्योविमण्डले चन्द्रश्चेति भ्रमन्तौ ओभासेंति, उज्जोति, तवेंति पगासेंति एगे एवमाहंसु) ७ बयालीस द्वीपों एवं बयालीस समुद्रों को चन्द्र सूर्य अवभासित करते हैं, उद्योतित करते है, तापित करते हैं एवं प्रकाशित करते हैं कोई एक इस प्रकार से कहता है । अर्थात् स्वस्व मंडलों में भ्रमण करता हुवा चन्द्र एवं सूर्य बयालीस द्वीपों एवं बयालीस समुद्रों को अवभासित करता है, उद्योतित करता है, तापित करता है एवं प्रकाशित करता है इस प्रकार सातवां तीर्थान्तरीय अपनामत प्रगट करता है ।७। तदनन्तर (एगे पुण एवमासु) ८ सातों अन्य तीर्थकों के मत को सुन करके वक्ष्यमाण प्रकार से आठवां अन्य तीर्थिक अपना मत प्रदर्शित करता है (बावत्तरं दीवे बावत्तरि समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासेंति, उज्जोवेति तवेंति पगासेंति एगे एवमाहंसु) ८ बहत्तर द्वीप एवं बहत्तर समुद्रों को चन्द्र सूर्य अवभासित करता है, उद्योतित करता है तापित करता है, प्रकाशित करता है । आठवें परतोर्थिक का कहने का हेतु यह है कि-कांतिवृत्त में सूर्य एवं विमंडल में चन्द्र इस प्रकार भ्रमण करते हुवे चन्द्र या प्रमाणे ४ . (ता बायालोसं दीवे बायालीसं समुद्दे च दिमसूरिया ओभासेंति, उज्जो. वेंति, तवेंति, पगासेंति, एग एवमाहंसु में तालीस दीपो मने तालीस समुद्रीने यंद्रसूर्य અવભાસિત કરે છે. ઉદ્યોતિત કરે છે, તાપિત કરે છે, અને પ્રકાશિત કરે છે. કોઈ એક આ પ્રમાણેકહે છે, અર્થાત્ પિોતપોતાના મંડળમાં ભ્રમણ કરતા ચંદ્ર અને સૂર્ય બેંતાલીસ દ્વીપ અને બેંતાલીસ સમુદ્રોને અવભાસિત કરે છે. ઉદ્યતિત કરે છે. તાપિત કરે છે અને પ્રકાશિત કરે છે. આ પ્રમાણે સાતમે અન્યતીથિક પિતાને મત બતાવે છે. (૭) તે પછી (एग पुण एवमासु) ८ सात मन्य भागीयाना मतने सामनीने नीये ४थ्यमान प्राथी ।मे। मन्यता४ि पाताना मत तातi का सायो 'बावत्तरि दीवे धावत्तरि समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासेंति, उज्जोति, तवेंति, पगासेंति, एगे एवमाहंसु) તેર દ્વીપ અને તે સમુદ્રોને ચંદ્ર સૂર્ય અવભાસિત કરે છે, ઉદ્યોતિત કરે છે, તાપિત કરે છે અને પ્રકાશિત કરે છે. અર્થાત્ આઠમાં તીર્થોત્તરીયનું કહેવું એમ છે કે શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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