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सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० २४ तृतीयं प्राभृतप्राभृतम् पूर्ववत् चारं चरन्तौ चन्द्रसूयौं दशद्वीपान् दशसमुद्रान् अवभासयत उद्योतयत स्तापयतः प्रकाशयत इत्येवं प्रकारकं स्ववक्तव्यमेके पञ्चमा भाषयन्ति ५, 'एगे पुण एवमाहंसु ६' एके पुनरेवमाहुः ६॥-एके-षष्ठा एवं-वक्ष्माणप्रकारकं स्वव्याख्यानमभिजल्पन्ति-'ता बारसदीवे बारससमुदे चंदिमसूरिया ओभासेंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति, एगे एवमासु ६' तावत द्वादशद्वीपान् द्वादशसमुद्रान् चन्द्रसूर्यो अवभासयतः-उद्योतयत स्तापयतः प्रकाशयतः-एके एवमाहुः ६।-तावदिति पूर्ववत् स्वकक्षायां भ्रमन्तौ चन्द्रसूयौँ द्वादशद्वीपान् द्वादशसमुद्रान् अवभासयत उद्योतयत स्तापयतः प्रकाशयत इतिषष्ठाः जल्पन्तीति ६ । 'एगे पुण एवमासु ७' एके पुनरेवमाहुः ७ ॥-एके-सप्तमास्तावदेवं ब्रुवन्ति यत्-'ता बायालीसं दीवे बयालीसं समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासेंति, उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति-एगे एवमाहंसु ७ तावत् द्विचत्वासूर्य अवभासित करता है, उद्योतित करते है, तापित करते हैं एवं प्रकाशित करते है, इस प्रकार से पांचवां तीर्थान्तरीय स्वमत का कथन करता है ॥५।। (एगे पुण एवमासु) ६ कोई एक छठा अन्य तीर्थिक अनन्तर कथ्यमान प्रकार से स्वमत को प्रदर्शित करता हुवा अपने मत का कथन करता है-उसका कथन है कि (ता बारस दीवे पारससमुद्दे चंदिमसूरिया ओभासेंति, उज्जोति तवेंति पगासेंति एगे एवमाहंसु) ६ बारह द्वीपों एवं यारह समुद्रों को चन्द्र सूर्य अवभासित करता है उद्योतित करता है, तापित करता है, एवं प्रकाशित करता है । इस प्रकार छठा अन्य मतवादी कहता है, कहने का भाव यह है कि पूर्ववत् स्व स्व मर्यादा में भ्रमण करता हुवा सूर्य एवं चन्द्र बारह द्वीपों एवं बारह समुद्रों को अवभासित करता है, उद्योतित करता है तापित करता है एवं प्रकाशित करता है, इस प्रकार छठा मतवादी का जल्पन है ।। (एगे पुण एवमासु) ७ कोई एक सातवां अन्य मतवादी इस प्रकार से स्वमत के विषय में कहते हैं-(ता बायालीसं दीवे बायालीसं समुद्दे चंदिमसूरिया पांयी तीर्थान्तरीय पाताना मतना समयमा थन ४२ छ. ५ 'एगे पुण एवमाहंसु' ६ કોઈ એક છો અન્ય મતવાદી હવે પછી કહેવામાં આવનાર પ્રકારથી પિતાના મતનું કથન ४२i डे साम्य -(ता बारस दीवे बारससमुद्दे च दिमसूरिया ओभासेंति उज्जोति, तवेंति पगासंति एगे एवमाहंसु) ६ मा२ दीपो भने मा२ समुद्राने यंद्र सूर्य मासित કરે છે. ઉદ્યોતિત કરે છે, તાપિત કરે છે અને પ્રકાશિત કરે છે. આ પ્રમાણે છા અન્ય भतवाहीनु ४थन छ. ६
કહેવાનો ભાવ એ છે કે-પૂર્વવત્ પિોતપોતાની મર્યાદામાં ભ્રમણ કરતા સૂર્ય અને ચંદ્ર બાર દ્વીપ અને બાર સમુદ્રોને અવભાસિત કરે છે. ઉદ્યોતિત કરે છે, તાપિત કરે છે અને પ્રકાશિત કરે છે. આ પ્રમાણે છમતવાદીને બડબડાટ છે. દા
'एगे पुण एवमासु' ७ ४ मे सातमी सन्यतीथि ४ पाताना भतना संघमा
શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧