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________________ सूर्यशतिप्रकाशिका टीका सू० २४ तृतीयं प्राभृतप्राभृतम् ३८७ एके द्वितीया एवं - पूर्वोक्तप्रकारकं स्वमतमाहुः || 'एगे पुण एवमाहंस ३' एके पुनरेवमाहुः ३ ॥ - एके- केचन तृतीयाः पुनरेवं वक्ष्यमाणप्रकारकं स्वमतमाहु: - 'ता अद्धचउत्थे दीवसमुद्दे चंदिमसूरिया ओभासेंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति, एगे एवमाहंसु ३' तावत् अर्द्धचतुर्थान् द्वीपान् अर्द्धचतुर्थान् समुद्रान् चन्द्रसूर्यौ अवभासयत उद्योतयत स्तापयतः प्रकाशयतः, एके एवमाहुः ३ ॥ - तावदिति पूर्ववत् अर्द्धचतुर्थान्- अर्द्ध चतुर्थ येषां ते अर्द्धचतुर्था:- चतुर्थस्यार्द्धमिति यावत्, परिपूर्णास्त्रयश्चतुर्थस्यार्द्धमित्यर्थः सार्द्धत्रयमिति निष्कर्षः तेन अर्द्धचतुर्थान् सार्द्धत्रयान् द्वीपान् सार्द्धत्रयान् समुद्रान् चन्द्रसूर्यौ अवभासयत उद्योतयत स्तापयतः प्रकाशयतः, एके - तृतीया एवम् - अनन्तरोक्तं स्वमतमाहुः ३ || 'एगे पुण एवमाहंसु ४, " उद्योतित करते है तापित करते हैं एवं प्रकाशित करते हैं इस प्रकार बारह मतवादियों के मत के साथ समन्वय करलेना इस प्रकार दूसरा परमतवादी पूर्वोक्त प्रकार से स्वमत के विषय में कहता है । २ 'एगे पुण एवमाहंसु' ३ तीसरा कोई मतवादी इस प्रकार से अपना मत कहता है ३ अर्थात् कोई एक तीसरा इस निम्नोक्तप्रकार से स्वमत का कथन करता है 'ता अद्धचउत्थे दीवसमुद्दे चंदिमसूरिया ओभासेंति, उज्जोवेंति, तवेंति, पगासेंति एगे एवमाहंसु' ३ अर्द्धचतुर्थ द्वीपोंकों एवं अर्द्धचतुर्थ समुद्रों को चन्द्र सूर्य अवभासित करता है, उद्योतित करता है, तापित करता है, एवं प्रकाशित करता है तीसरा कोई एक परमतवादी इस प्रकार से कहता है । अर्थात् अर्धचतुर्थ माने साडेतीन द्वीपों को अर्थात् चोथे का आधा जिसमें हो यह अर्धचतुर्थ यानि तीन पुरा एवं चोथे का आधा अर्थात् साढेतीन द्वीपों को एवं साढेतीन समुद्रों को चन्द्र सूर्य अवभासित करते हैं, उद्योतित करते हैं तापित करते हैं एवं प्रकाशित करते है तीसरा कोई एक परमतवादी इस કરી લેવી. એ હેતુથી કહે છે-અવભાસિત કરે છે, ઉદ્યોતિત કરે છે, તાપિત કરે છે, અને પ્રકાશિત કરે છે. આ પ્રમાણે ખારે મતવાદીયાના મતની સાથે સમન્વય કરી લેવે. આ રીતે બીજે મતાવલંબી પૂર્વોક્ત પ્રકારથી પેાતાના મતના સંબંધમાં કથન કરે છે (૨) 'एगे पुण एवमाहंसु' उत्रीले अर्ध मन्य भतवाही या निम्नोस्त प्रारथी पोताना भत ८ ४२ छे. (ता अद्धचउत्थे दीवसमुद्दे चंदिमसूरिया ओभासेंति, उज्जोवेंति, तवेंति पगासेंति एगे एवमाहंसु' ३ अर्धयतुर्थ द्वीपोने भने अर्ध चतुर्थ समुद्रोने चंद्र सूर्य અવભાસિત કરે છે, ઉદ્યોતિત કરે છે, તાષિત કરે છે, અને પ્રકાશિત કરે છે, ત્રીજો કોઈ એક પરમતવાદી આ પ્રમાણે પેાતાના મત કહે છે. અર્થાત્ અ ચતુર્થાં એટલે સાડા ત્રણ દ્વીપાને અર્થાત્ ચાથા દ્વીપના અર્ધા ભાગને ચેાથાના અર્ધા ભાગ જેમાં હાય છે તે અ" ચતુર્થાં એટલે કે ત્રણ પુરા અને ચેથા દ્વીપના અર્ધાંભાગ એટલે કે સાડા ત્રણ દ્વીપે। અને સમુદ્રાને ચંદ્ર સૂર્ય અવભાસિત કરે છે. ઉદ્યોતિત કરે છે, તાપિત કરે છે, અને પ્રકાશિત શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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