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________________ - सूर्यप्राप्तिसूत्रे प्रथमास्तीर्थान्तरीयाः-एवं पूर्वोक्तप्रकारकं स्वमतमाहुः कथयन्ति ॥ 'एगे पुण एवमासु २' एके पुनरेवमाहुः २॥--एके-द्वितीयाः पुनः-प्रथमस्य कथनं श्रुत्वा स्वमतमेवं-वक्ष्यमाणप्रकारकमाहुः-'ता तिण्णि दीवे तिण्णि समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासेंति उज्जोति तवेंति पगासेंति, एगे एवमासु २' त्रीन् द्वीपान त्रीन् समुद्रान् चन्द्रसूर्यो अवभासयत, उद्योतयत स्तापयतः प्रकाशयतः, एके एवमाहुः २ ॥-तावत्-तत्र द्वितीयस्य मतं श्रूयतां स एवं वदति यत् चरन्तौ चन्द्रसूयौं त्रीन् द्वीपान् त्रीन् समुद्रान् अवभासयत उद्योतयत स्तापयतः प्रकाशयतः ॥ सर्वत्र यावच्छब्दोपादानात् अवभासयत इत्यनेन सह पदचतुष्टयस्य योजना कर्तव्येति अवभासयत उद्योतयत स्तापयतः प्रकाशयत इत्थं द्वादशसु मतेषु प्रयोक्तव्यम् । है, अब इस कथन का उपसंहार करते हुवे कहते हैं-(एगे एवमासु) कोई एक पहला तीर्थान्तरीय इस पूर्वोक्त प्रकार से अपने मत का कथन करता है ॥१॥ (एगे पुण एवमाहंसु) कोई दूसरा एक परतीर्थिक प्रथम मतावलंबी के मत को सुन करके वक्ष्यमाण प्रकार से वह उनके मत के विषय में कथन करता है (तिणि दीवे तिणि समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासेंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति एगे एवमासु २) तीन द्वीप एवं तीन समुद्रों को चन्द्र सूर्य अचभासित करते हैं, उद्योतित करते हैं, तापित करते हैं एवं प्रकाशित करते है दूसरा एक परतीर्थिक उक्त प्रकार से कहता है २ । कहने का भाव यह है कि भगवान कहते हैं कि मैं दूसरे परतीर्थिक का मत के विषय में कहता हूं सो सुनिये, वह दूसरा परतीर्थिक कहता है कि गमन करनेवाले चन्द्र सूर्य तीन द्वीप एवं तीन समुद्रों को अवभासित करते हैं उद्योतित करते हैं तापित करते हैं एवं प्रकाशित करते हैं-सर्वत्र यावत् शब्द को कहने से अवभासन शब्द के साथ चारों पदों की योजना करलेना इस हेतु से कहते हैं, अवभासित करते 'एगे एवमासु' मे प्रथम भतवादी तीर्थान्तरीय 20 पूति प्रथा पोताना મતનું કથન કરે છે. ૧ 'एगे पुण एवमासु' । भान ५२मतावर भी पडदा ५२तीथि ना मतने सनीने १क्ष्यभार प्रसारथी सेना मतना समयमा थन ४२ छ 3-(तिणि दीवे तिणि समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासेंति, उज्जोति तथेति पगासेंति एगे एवमासु २) दीया भने ત્રણ સમુદ્રોને ચંદ્ર સૂર્ય અવભાસિત કરે છે, ઉદ્યોતિત કરે છે, તાપિત કરે છે, અને પ્રકાશિત કરે છે. બીજો એક પરતીર્થિક આ પ્રમાણે પિતાને મત જણાવે છે, જે કહેવાને ભાવ એ છે કે–ભગવાન્ કહે છે કે-બીજા મતવાદીના મતના સંબંધમાં હું કહું છું તે સાંભળો એ બીજે પરતીથિક કહે છે કે-ગમન કરવાવાળા ચંદ્ર અને સૂર્ય ત્રણ દ્વીપ અને ત્રણ સમુદ્રોને અવભાસિત કરે છે. ઉદ્યોતિત કરે છે. તાપિત કરે છે અને પ્રકાશિત કરે છે. બધે ઠેકાણે યાવત્ શબ્દ કહેવાથી અવભાસ શબ્દની સાથે ચારે પદોની યેજના શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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