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________________ ३२६ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे प्रकारेण खलु षडपि पश्चापि चत्वार्यपि योजनसहस्राणि सूर्य एकैकेन मुहूर्तेन-प्रतिमुहूर्तगत्या गच्छतीति ॥ अत्रोपसंहारमाह-'एगे एवमासु' एके एवमाहुः ॥ एके-चतुर्थमतवादिनस्तीर्थान्तरीयाः, एवम्-अनन्तरोक्तेन प्रकारेण स्वमतमाहुः॥ तदेवं परतीथिकानां चतुणी मतवादिनां प्रतिपत्ती रुपदर्य सम्प्रति स्वमतमुपदर्शयति--- ____ 'वयं पुण एवं वयामो' वयं पुनरेवं वदामः ॥-वयं पुनरुपपन्न केवलज्ञानाः केवलज्ञानेन यथावस्थितं वस्तूपलभ्य एवं-वक्ष्यमाणप्रकारेण वदामः-कथयामः, तमेव प्रकारमाह-यथा'ता सातिरेगाई पंच पंच जोयणसहस्साई सरिए एगमेगेणं मुहत्तेणं गच्छइ, तत्थ को हेऊत्ति वएजा' तावत सातिरेकाणि पश्च पञ्च योजनसहस्राणि सूर्य एकैकेन मुहर्तन गच्छति, तत्र को हेतुरिति वदेत, तत्र तावत् खलु सातिरेकाणि-किञ्चित् समधिकानि पञ्च पञ्च योजनसहस्राणि-सावयव पश्च सहस्रयोजनानि, सूर्य एकैकेन मुहूर्त्तन-प्रतिमुहूर्तगत्या गच्छतीत्यत्र मंचरण समयमें प्रागुक्त प्रकार से छ हजार, पांच हजार या चार हजार एक एक मुहूर्त में सूर्य प्रतिमुहूर्त गति से गमन करता है अब इस कथनका उपसंहार करते हुवे कहते हैं-'एगे एवमाहंसु' कोइ एक चतुर्थ मतवादी पूर्वोक्त प्रकार से अपने मतके विषयमें कहते हैं ॥४॥ इस प्रकार चारों अन्यमतवादी परतीथिकों की प्रतिपत्तियां कह करके अब भगवान् स्वमत को कहते हैं 'वयं पुण एवं वयामो' मैं इस विषयमें ऐसा कहताहं अर्थात् केवलज्ञान जिसको प्राप्त हुवा है ऐसा में केवलज्ञानसे यथावस्थित वस्तुको जान करके इस वक्ष्यमाण प्रकारसे कहता है जैसे कि-'ता मातिरेगाई पंच पंच जोयणसहस्साई सूरिए एगमेगणं मुहत्तणं गच्छा, तत्थ को हेऊ त्ति वएज्जा' वह सातिरेक पांच पांच हजार योजन एक एक महर्त में सूर्य गमन करता है उसमें क्या हेतु है सो कहिये । अर्थात् सातिरेक याने कुछ अधिक पांच पांच हजार योजन याने सावयव पांच हजार योजन મંડળના સંચરણ સમયમાં પહેલાં કહેલ પ્રકારથી છ હજાર પાંચ હજાર અથવા ચાર હજાર જન એક એક મુહૂર્તમાં સૂર્ય પ્રતિમુહૂર્તગતિથી ગમન કરે છે. હવે આ કથનને 1२ ४२ता ४ छ, (एगे एवमाहंसु) 5 मे याथी मतवाही पूर्यात प्राथी पोतानाમતના સંબંધમાં કથન કરે છે. પ્રજા આ પ્રમાણે ચારે અન્યમતવાદી પરતીથિની પ્રતિપત્તિનું કથન કરીને હવે भगवान पोताना मतना संघमा ४थन ४२ छ. (वयं पुण एवं वयामो) हुमा विषयमा આ પ્રમાણે કહું છું અર્થાત્ જેને કેવળજ્ઞાન પ્રાપ્ત થયેલ છે. એ હું કેવળજ્ઞાનથી યથાવસ્થિત વસ્તુને જાણીને આ વિષયના સંબંધમાં આ વક્ષ્યમાણ પ્રકારથી કહું છું. (ता सातिरेगाइं पंच पंच जोयणसहस्साई सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेण गच्छइ तत्थ कोहेअत्ति वएज्जा) 22 साति२४ पाय पाय ॥२ यो२४ मे भुत भां सूर्य मन ४२ छ. શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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