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________________ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० २३ द्वितीयमाभृते तृतीयं प्राभृतप्राभृतम् ३०५ एवमासु ३' एके एवमाहुः ३ ॥ एके-तृतीयमतवादिन एवं-पूर्वोक्तप्रकारकं स्वमतमाहुः ॥ __ 'एगे पुण एवमासु ४' एके पुनरेवमाहुः ४॥ एके-चतुर्थमतवादिन स्तीर्थान्तरीयाः, पुन:-त्रयाणां मतं श्रुत्वा एवं-वक्ष्यमाणस्वरूपं स्वमतमाहुः-कथयन्ति, तद्यथा तन्मतम्-'ता छवि पंच वि चत्तारि वि जोयणसहस्साई सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छह' तावत् पडपि पश्चापि चत्वार्यपि योजनसहस्राणि सूर्यः एकैकेन मुहूर्तेन गच्छति ॥ तावत्चतुर्थस्य मतं श्रूयतां तावत, षडपि पश्चापि चत्वार्यपि ६-५-४ पृथक् २ सहस्रयोजनानीत्यर्थः एकैकेन मुहर्तन-प्रतिमुहर्तगत्या सूर्यों गच्छति-इत्थंभूतया मध्यमगत्या प्रतिमण्डलं परिभ्रमतीति चतस्रोऽपि प्रतिपत्ती:-चतु) मतवादिनां मतान्तराणि संक्षेपत उपदर्य सम्प्रति एतासां प्रतिपत्तीनां यथाक्रमं भावनिका रूपामाह-'तत्थ जे ते एवमासु ता छ छ जोयणमुहूर्त में भ्रमण करता है (एगे एवमासु) इस प्रकार तीसरे मतवादी पूर्वोक्त प्रकार से अपना मत प्रदर्शित करता है ॥३॥ (एगे पुण एवमाहंसु) ४ कोई एक चौथा भतवादी तीनों परतीर्थिकों के मतको सुनकर वक्ष्यमाण प्रकार से अपना मत प्रगट करता हैं उसका मत इस प्रकार से है (तत्थ छवि पंचवि चत्तारि वि जोयणसहस्साइं सरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ) चतुर्थ मतवादी तीर्थान्तरीय के मतसे तो छ, पांच या चार हजार योजन सूर्य एक एक मुहूर्त में गमन करता है अर्थात् चतुर्थ मतवादी कहता है कि ६ छ, ५ पांच, ४ चार हजार योजन एक एक मुहूर्त में सूर्य गमन करता है इस प्रकार की मध्यम गति से सूर्य प्रतिमंडल में परिभ्रमण करता है ऐसा चतुर्थ मतवादी का कथन है पूर्वोक्त प्रकार से चारों मतवादीयों के मतान्तर को संक्षेप से दिखलाकर अब इन प्रतिपत्तियों की भावनिका कहते हैं-- से मे भुतभा अर्थात् प्रत्ये मुडूत मा श्रम ४२ छ. (एगे एवमाहंसु) मा प्रमाणे ત્રીજે મતવાદી પિતાને મત પ્રદર્શિત કરે છે. ૩ (एगे पुण एवमासु) ४ मे योथो मतवाही तो पता आना मतने सलमान पक्ष्यमा प्राथी पोताना मत विद छे. तेनो मताप्रमाणे छ.-'तत्थ छवि पंच वि चत्तारि वि जोयणसहस्साई सूरिए एगमेगेणं मुहृत्तेणं गच्छई' योथे। तीर्था-तरीय ता छ, પાંચ, અથવા ચાર, હજાર યોજન સૂર્ય એક એક મુહૂર્તમાં ગમન કરે છે. અર્થાત્ ચોથો મતવાદી કહે છે કે-છ પાંચ ચાર હજાર યોજન એક એક મુહૂર્તમાં સૂર્ય ગમન કરે છે. આ પ્રકારની મધ્યમ ગતિથી સૂર્ય પ્રત્યેક મંડળમાં પરિભ્રમણ કરે છે. આ રીતનું ચોથા મતવાદી નું કથન છે. પાકા પૂર્વોક્ત પ્રકારથી ચારે મતવાદિના મતાન્તરે ને સંક્ષેપથી બતાવીને હવે આ પ્રતિपत्तियानी भापनि ४ छ-'तत्थ जे ते एवमासु ता छ छ जोयणसहस्साई सूरिए एगमे શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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