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________________ ३०४ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे एके पुनरेवमाहुः २ ॥ एके-द्वितीयास्तीर्थान्तरीया एवं-वक्ष्यमाणस्वरूपं स्वमतमाहुःकथयन्ति । यथा-'ता पंच पंच जोयणसहस्साई सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ' तावत् पञ्च पञ्चयोजनसहस्राणि सूर्यः एकैकेन मुहर्तेन गच्छति ॥ तावत्-द्वितीयस्य मतं श्रूयता तावत् परिभ्रमन् सूर्यः पञ्च पञ्चयोजनसहस्राणि-पञ्चपञ्चाशतसहस्रयोजनानि एकैकेन मुहर्नेन-प्रतिमुहर्तगत्या गच्छति ॥ 'एगे एवमासु २' एके एवमाहुः २॥ एके-द्वितीया स्तीर्थान्तरीयाः, एवं-पूर्वोक्तप्रकारकं स्वमतमाहुः कथयन्तीति शेषः। 'एगे पुण एवमाहंसु ३' एके पुनरेवमाहुः॥ एके-तृतीयमतवादिन आचार्याः एवं-वक्ष्यमाणप्रकारकं स्वमतमाहुःकथयन्ति । तद्यथा-'ता चत्तारि चत्तारि जोयणसहस्साई सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ' तावत् चत्वारि चत्वारि योजनसहस्राणि सूर्य एकैकेन मुहर्तन गच्छति ॥ तावत्-चतुर्थस्य मतमित्थं तावत्-स्वकक्षायां परिभ्रमन् सूर्यश्चत्वारि चत्वारि योजनसहस्राणि-४ सहस्रयोजनानि एकैकेन मुहूर्तेन-प्रतिमुहूर्तगत्या गच्छति-प्ररिभ्रमतीति तृतीयस्य मतम् ।। 'एगे (एगे पुणएवमासु) २ दूसरा कोई एक निम्नोक्त प्रकार से अपने मत को कहते हैं, जो इस प्रकार से है (ता पंच पंच जोयणसहस्साई सूरिए एग मेगेणं मुहत्तणं गच्छइ) पांच पांच हजार योजन सूर्य एक एक मुहूर्त में गमन करता है अर्थात् दूसरा परमतवादी कहता है कि परिभ्रमण करता हुवा सूर्य प्रतिमंडल में पांच पांच हजार योजन एक एक मुहूर्त में गमन करता है। (एगे एवमासु) २ कोई एक दूसरा परमतवादी पूर्वोक्त प्रकार से कहता है। २ (एगे पुण एवमाहंसु) ३ तीसरा मतवादी परतीर्थिक इस निम्न निर्दिष्ट प्रकार से स्वमत को प्रगट करता है, जैसे कि (ता चत्तारि चत्तारि जोयणसहस्साई सूरिए एगमेगेणं मुहत्तेणं गच्छइ) चार चार हजार योजन सूर्य एक एक मुहूर्तमें जाता है। अर्थात् चौथा मतवादी कहता है कि स्वस्व कक्षामें भ्रमण करता सूर्य ४ चार चार हजार योजन एक एक मुहूर्तमें अर्थात् प्रति (एगे पुण एव-माहंसु) मीत नीचे विस २थी पाताना भतना समयमा ४ छ, २ ॥ प्रमाणे छे. (ता पंच पच जोयणसहस्साई सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ) पांय पाय ॥२ येन सूर्य २४ मे मुहूत भां मन ४२ छ, अर्थात् બીજે અન્યતીર્થિક કહે છે-કે પરિભ્રમણ કરે તે સૂર્ય દરેક મંડળમાં પાંચ પાંચ હજાર योशन मे मुड़त भी गमन ४२ छ. (एगे एवमासु) असे गीले ५२मतवाही આ પૂર્વોક્ત પ્રકારથી કહે છે. કેરા (एगे पुण एवमाहंसु) 3 त्रीले ५२मतवादी मानीयास पाताना मतना विषयमा हे छे. भ3-(ता चत्तारि चत्तारि जोयणसहस्साई सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं જરછડુ) ચાર ચાર હજાર જન સૂર્ય એક એક એક મુહૂર્તમાં જાય છે. અર્થાત્ ત્રીજો મતવાદી કહે છે કે–પિતપતાની કક્ષામાં ભ્રમણ કરતે સૂર્ય ચાર ચાર હજાર એજન શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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