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सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० २० प्रथमपाभृते अष्टमं प्राभृतप्राभृतम् __ _२०५ योजनबाहल्येन-प्रत्येकं योजनमेकं बाहल्येन पिण्डेन एकं योजनसहस्रम् एकं च त्रयस्त्रिंशतं १३३ योजनशतं-त्रयस्त्रिंशदधिक योजनशतम्, १३३ आयामविष्कम्भाभ्यां-दैर्ध्य विस्ताराभ्याम् त्रीणि योजनसहस्राणि त्रीणि नवनवति योजनशतानि ३३०० परिक्षेपतः-परिधिना प्रज्ञतानि-कथितानि, इह च तेषां तीर्थान्तरीयाणा मनेन मण्डलस्यायामविष्कम्भयोः परिमाणमेकं योजनसहस्र मेकं योजनशतं त्रयस्त्रिंशदधिकमायामविष्कम्भाभ्यां ते परिरयपरिमाणं-वृत्तपरिमाणं, नतु वृत्तपरिमाणम-किन्तु वृत्तपरिमाणात् त्रिगुणमेव परिपूर्ण मिच्छन्ति नतु न्यूनाधिकमत स्त्रीणियोजनसहस्राणि त्रीणिशतानि नवनवतानि इत्थमुक्ततैरिति, यथासहस्रस्य त्रीणि सहस्राणि, शतस्य त्रीणिशतानि त्रयस्त्रिंशतश्च नवनवतानीति । परन्तु इदं परिरयपरिमाणं परिरयगणितेन व्यभिचारि,। तद्गणितसूत्रं च यथा-'विक्खंभवग्गदह गुणकरणी वट्टस्स परिरओ होइ' विष्कम्भवोऽदशगुणकरणात् वृत्तस्य परिरयो भवति ।। 'वर्गेण वर्ग गुणयेद्भजेच्च' इति नियमात्, त्रयाणां वर्गों नव, किश्चिदधिकत्रयाणां वर्गोऽदश भवेत, सावयवस्य वर्गों न पूर्णाङ्क: किन्तु सावयव एव भवति, तेन सप्तविष्कम्भस्य स्थूल परिमाण एक हजार योजन एक सो तेतीस पोजन अधिक माने ग्यारह सो तेतीस योजन आयामविष्कंभ से परिरयपरिमाण है वृत्त-वर्तुल परिमाण नहीं है परंतु वृत्त परिमाण से तीन गुना ही परिपूर्ण कहते हैं, न्यूनाधिक नहीं अतः तीन हजार योजन तोन सो नन्नाणु इस प्रकार से उन्होंने कहा है जैसे हजार का तीन हजार शत का तीन शत एवं तेतोस इस प्रकार उन्होंने कहा है। परंतु यह परिरय परिमाण परिरयपणित प्रमाण से भिन्न प्रकार से है वह गणित सूत्र इस प्रकार से है-'विक्खंभ वग्ग दहगुणकरणी वस्स परिरओ होई' विष्कम्भ के वर्ग को दस गुना करने पर वृत्त का परिरय होता है, 'वर्गेण वर्ग गुणयेद्भजेच्च' इस नियम से तीन का वर्ग नव होता है कुछ अधिक तीन का वर्ग दस होता है अवयववाले का वर्ग पूर्णाङ्क नहीं होता परंतु सावयव ही होता है अतः सात विष्कम्भ की स्थूल परिधि बावीस होती કથનાનુસાર આ પ્રમાણે મંડળના આયામવિષ્કભનું પ્રમાણ ત્રણ હજાર નવસે નવ
જન થાય છે. આયામવિઝંભથી પરિધિનું પ્રમાણ વૃત્ત- વર્તલ પરીમાણ નથી પરંતુ વૃત્ત પરિમાણથી ત્રણ ગણું પરિપૂર્ણ કહેલ છે. ન્યૂનાધિક નહીં તેથી ત્રણ હજાર ત્રણ આ પ્રમાણે તેઓએ કહેલ છે. જેમ કે એક હજારના ત્રણ હજાર અને એકસના ત્રણસો અને તેત્રીસ આ રીતે તેમણે કહેલ છે. પરંતુ આ પરિરય પરિમાણ પરિચયના ગણિત प्रभागुथी हा प्रा२नु छ, ते गणित सूत्र २१ प्रमाणे छे. (विक्खंभवग्गदहगुणकरणी वट्टरस परिरओ होई) विमना पान सग। ७२पाथी वृत्तनो परिश्य थाय छ, (वर्गेण वर्ग गुणयेद्भजेच्च) 0 नियमानुसा२ नो नव थाय छे. ४७४ क्यारे ना વર્ગ દસ થાય છે. અવયવવાળાને વર્ગ પૂર્ણાક થતું નથી પરંતુ સાવયવ જ થાય છે.
શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧