SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० १८ प्रथमप्राभृते षष्ठं प्राभृतप्राभृतम् १५७ पुण एवमासु ५' एके पुनरेवमाहुः ५, चतुर्थों मतं श्रुत्वा एके-पञ्चमास्तीर्धान्तरीयाः पुनरेवमनन्तरोच्यमानप्रकारकं स्पमतमाहुः कथयन्ति, 'तो अदधुटाई जोयणाई एगमेगेणं राईदिएणं विकंपइत्ता विकपइत्ता सरिए चारं चरइ' तावद्' अर्द्धचतुर्थानि योजनानि एकैकेन रात्रिन्दिवेन विकम्प्य विकम्प्य सूर्यश्वारं चरति ॥ भवतां चतुर्णामपि मतमुपपत्तिबाह्यं सोपपत्तिकं मन्मतं श्रूयतां तावत् अर्द्धचतुर्थानि योजनानि-सा त्रीणि योजनानि एकैकेन रात्रिन्दिवेन-एकैकेनाहोरात्रेण विकम्प्य विकम्प्य-स्वस्वमण्डलाद्वहि निगत्य निर्गत्यान्तःप्रविश्य प्रविश्य वा सूर्यश्वारं चरति-तथा चरन् सूर्य आख्यातः-कथितः ॥ 'एगे एवमाहंसु ५' एके एवमाहुः ५, एके-पञ्चमा एवमनन्तरोक्तप्रकारकं स्वमतमाहुः एतेनोपायेन पञ्चमस्य तीर्थान्तरीयस्य मते विकम्पनक्षेत्रप्रमाणं यथा-पञ्चमस्य विकम्पनक्षेत्रम्-३: योजन मात्राणि विकम्पनक्षेत्रस्य प्रमाणम् ५॥ ‘एगे पुण एवमाहंसु ६' एके पुनरेवमाहुः ।। (एगे पुण एव माहंसु) चारों का मत को सुनकर के कोई एक पांचवां तीर्थान्तरीय निम्नोक्त प्रकार से अपने मत को दिखलाता हुवा कहता है (तओ अदधुट्ठाइं जोयणाई एगमेगेणं राइंदिएणं विकंपइत्ता विकंपइत्ता सूरिए चार चरइ) तीन योजन पूरा एवं आधा चोथा योजन एक रात्रि दिवस में विकम्पन कर के सूर्य गति करता है। पांचवें तीर्थान्तरीयके कहने का अभिप्राय यह है कि-आप चारों का मत उपपत्ति रहित है मेरा मत सोपपत्तिक है अर्थात सयक्तिक है मेरा मत इस प्रकार है अर्द्ध चतुर्थ योजन माने साडेतीन योजन एकएक अहोरात्र में विकम्पन कर के अर्थात् बाहर निकल कर एवं भीतर प्रविष्ट होकर सूर्य गति करता है इस प्रकार से सूर्य गति करता कहा है (एके एवमासु) पंचम मतवादी ऐसा कहता है इसके कथनानुसार माने पंचम तीर्थान्तरीय के मत से सूर्य का विकम्पन क्षेत्र का प्रमाण ३३ साडे तीन योजन मात्र होता है।५।। (एगे पुण एवमाहंसु) थारेयना भतने समान ४ ५ यम भतवाही नीय वामा भावना२ २थी पाताना भतने तो ४ - (तओ अद्भुटाई जोयणाई एगमेगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ) मधु न्यायु योभन मे ४ रात. દિવસમાં વિકંપન કરીને સૂર્ય ગતિ કરે છે. આ પાંચમા અમતાવલંબીના કહેવાને ભાવ એ છે કે–તમે ચારેના મત ઉપપત્તિ વગરના છે. મારે મત સેપ પત્તિક છે. એટલે કે સયુક્તિક છે. મારે મત આ પ્રમાણે છે. અર્ધ ચોથું જન એટલે કે સાડાત્રણ એજન એક એક અહોરાત્રમાં વિકપન કરીને અર્થાત્ બહાર નીકળીને તથા અંદર પ્રવેશ કરીને सूर्य गति ४२ छ. मा प्रमाणे सूर्य गति ४२ते। ४७१ छे. (एगे एवमाहंसु) पांथम भताવલમ્બી આ પ્રમાણે કહે છે તેના કહેવા પ્રમાણે અર્થાત્ પાંચમાં તીર્થોત્તરીયના મતથી સૂર્યને વિકપન ક્ષેત્રનું પ્રમાણ ૩ સાડાત્રણ જન માત્ર છે. પ શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy