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________________ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे कथयन्ति-दो दीवे दो समुद्दे अण्णमण्णस्स अंतरं कटु सूरिया चारं चरंति आहिताति वएज्जा' द्वौ द्वीपी द्वौ च समुद्रौ अन्योऽन्यस्यान्तरं कृत्वा सूयौं चारं चरत आख्यातौ इति वदेत ॥ एकस्मिन्नन्तरे द्वौ द्वीपौ अन्यस्मिश्चान्तरे द्वौ समुद्राविति परस्परं चान्तरं कृत्वा चार चरतः-स्वमार्गे भ्रमत आख्यातौ-समुदाहृताविति स्थशिष्यमुपदिशेदित्याहुः, 'एगे एवमाहंमु ५, एगे पुण एवमाहंसु-तिण्णि दीवे तिणि समुद्दे अण्णमण्णस्स अंतरं कटु सूरिया चारं चरंति आहिताति वएज्जा' एके एवमाहुः ५, एके पुनः एवमाहु:-त्रीन द्वीपान् त्रीन् समुद्रान् अन्योऽन्यस्यान्तरं कृत्वा सूर्यों चारं चरत आख्याता इति वदेत् ।। पञ्चमस्य तीर्थान्तरीयस्य मतं श्रुत्वा अन्ये पष्ठा स्तीर्थान्तरीयाः पुनरेवमाहुर्यत्-अन्तरद्वये एकस्मिन्नन्तरे त्रीन् द्वीपान् अन्यस्मिन्नन्तरे त्रीन् समुद्रान् अन्योऽन्यस्य-परस्परस्यान्तरं कृत्वा द्वौ सूर्यो चारं चरत आख्यातौ इति स्वशिष्येभ्यो वदेत्, ‘एगे एवमाहंसुः ६' एतेषां पण्णां तीर्थान्तरीयानां का ही अन्तर कर के गति करता है, इस प्रकार चतुर्थ मतावलम्बी इस के मत को जानकर के (एगे पुण एव मासु) कोइ पांचवें मतावलम्बी ऐसा कहते हैं (दो दीवे दो समुद्दे अण्णमण्णस्स अंतरं कटु सूरिया चारं चरंति आहिताति वएजा) दो द्वीप एवं दो समुद्र का परस्पर में अन्तर कर के दोनों सूर्य गमन करते हैं, अर्थात् एक अन्तर में दो बीप एवं दूसरे अंतर में दो समुद्र इस प्रकार अंतर कर के स्वमार्ग में भ्रमण करते कहे हैं इस प्रकार स्व शिष्यों को उपदेश करें इस प्रकार से पंचमपरमतवादी के मत को जानकर (एगे पुण एवमासु तिणि दोवे तिणि समुद्दे अण्णमण्णस्स अंतरं कटु सरिया चारं चरंति आहिताति वएजा) पंचम तीर्थिक का मत को सुनकर अन्य छट्टे परमतवादी इस प्रकार से कहते है कि दो अंतरों में एक अंतर में तीन द्वीप एवं दूसरे अंतर में तीन समुद्र का परस्पर में अंतर कर के दोनों सूर्य गति करते हैं ऐसा शिष्यों को कहें । (एगे एव मासु) इन छहों परमतवादी के मतों को सुनकर द्रनु भत२ ४शने गति ४२ छ. 20 प्रमाणे योथा भतादीना मत ताने (गे पुण एव माहंसु) ओ पांयमी मतवादी मारीत ४ छ-(दो दीवे दो समुद्दे अण्णमण्णस्स अंतर कट्टु सूरिया चार चरंति आहितेति वएज्जा) मे दी। मने में समुद्रोनु ५२:५२नु અંતર કરીને પિતાનું ભ્રમણ કરે છે. આ રીતે સ્વ શિષ્યને ઉપદેશ કરી સમજાવવું. आ शत पांयमा ५२मतवाहीना भतने atylने (गे पुण एव मासु तिणि दीवे तिन्नि समुद्दे अण्णमण्णास अंतर कट्टु सूरिया चार चरंति आहिताति वएज्जा) पांयमा अन्यनाथકના મતને સાંભળીને બીજે છ મતવાદી આ પ્રમાણે પોતાને મત પ્રકટ કરતાં કહે છે કે, બે અંતરમાં એક અંતરમાં ત્રણ દ્વિીપ અને બીજા અંતરમાં ત્રણ સમુદ્રોનું પરસ્પરમાં અંતર કરીને બેઉ સૂર્યો ગતિ કરે છે. આ રીતે શિષ્યને સમજાવવું. (एगे पुण एवमासु) २॥ ७व्ये भतवाहीमोना मतीने साजीन. मावान पाता। શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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