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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ३५ सू० २ प्रकारान्तरेण वेदनानिरूपणम् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते-पृथिवीकायिका नो निदाश्च वेदना वेदयन्ते, अनिदाश्च वेदनां वेदयन्ते, एवं यावच्चरिन्द्रियाः, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका मनुष्या वानव्यन्तरा यथा नैरयिकाः, ज्योतिष्काणां पृच्छा, गौतम ! निदाश्चापि वेदनां वेदयन्ते अनिदाश्चापि वेदनां घेदयन्ते, तत् केनायेंन भदन्त ! एव मुच्यते-ज्योतिष्का निदाश्चापि वेदनां वेदयन्ते अनिदाश्चापि वेदना वेदयन्ते ? गौतम ! ज्योतिष्का द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-मायिमिथ्या दृष्ट्युपपन्न काश्च अमायि सम्यग्दृष्ट्युपपन्नकाच, तत्र खलु ये अमी मायिमिथ्यादृष्ट्युपपनका वेयणं वेदेति) असज्ञिभूत अनिदा वेदना वेदते हैं (से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ ) इस हेतु से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि (पुढविकाइया नो निदायं वेयणं वेदेति, अणिदायं वेयणं वेदेति) पृथिवीकायिक निदा वेदना नहीं वेदते,अनिदा वेदना वेदते हैं (एवं जाव चउरिदिया) इस प्रकार यावत् चौहन्द्रिय (पंचिंदियतिरिक्ख जोणिया मणूसा वाणमंतरा जहा नेरइया) पंचेन्द्रिय तिर्यंच, मनुष्य, वानव्यन्तर नारकों के समान (जोइसियाणं पुच्छा १) ज्योनिष्कों संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! निदायं वि वेयणं वेदें ति, अणिदायं वि वेयणं वेदेति) हे गौतम ! निदा वेदना भी और अनिदा वेदना भी वेदते हैं (से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जोइसिया निदायं वि अणिदायं वि वेयणं वेदेति ?) हे भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि ज्योतिष्क देव निदा वेदना और अनिदा वेदना भी वेदते हैं ! (गोयमा ! जोइसिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा) हे गौतम ! ज्योतिष्क दो प्रकार के कहे हैं, वे इस प्रकार (माइमिच्छादिहि उपवण्णगा य अमाइसम्मदिति उववण्णगा य) मायी मिथ्यादृष्टि उपपन्नक और (असण्णिभूय अणिदाय वेयण वेदेति) अशीभूत भनिहा वेदना वेढे छ (से तेणद्वेण गोयमा ! एवं वुच्चइ) मा उतुथी र गौतम ! मे ४वायु ? (पुढविकाइया नो निदाय वेयण वेदेति, अणिदाय वेयण वेदेति) पृथ्वीय: CHEL वहन नथी वहता, मनिहा वेदना व छ (एवं जाव चतुरिंदिया) २१ शते यावत् यतुरिन्द्रियो (पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणूसा वाणमंतरा जहा नेरइया) ५ थन्द्रिय तियया, मनुध्यो, पानयत, ना२नीम (जोइसियाण पुच्छा) येति विशे प्रश्न (गोयमा ! निदायपि वेयण वेदेति, अणिदायपि वेयण वेदे ति) 3 गौतम ! निहा वेहना ५५ छ, मनिहा वहन पर . __(से केणद्वेण भंते ! एवं वुच्चइ-जोइसिया निदायपि अनिदायपि वेयण वेदेति ?) હે ભગવાન! કયા હેતુથી એવું કહેવાયું છે કે તિષ્ક દેવ નિદા વેદના અને અનિદા વેદના પણ વેદે છે ? (गोयमा ! जोइसिया दुविहा पण्णत्ता त जहा) 3 गीतम! ज्योति में प्रारना ४i छ त म हारे (माइमिच्छादिट्ठी उबवणगा य अमाइसम्मदिट्ठीउववण्णगा य) भाया મિથ્યાષ્ટિ ઉ૫૫નક અને અમાયિક સમ્યગ્દષ્ટિ ઉપપન્નક. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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