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प्रमेयबोधिनी टीका पद ३४ सू० ४ देवानां परिचारणाविशेषनिरूपणम् ८६१ मिरप्सरोभिः सार्द्ध रूपपरिचारणां कुर्वन्ति, शेषं तच्चैव यावद् भूयो भूयः परिणमन्ति, तत्र खलु ये अमी शब्दपरिचारका देवास्तेषां खलु इच्छामनः समुत्पधरी-इच्छामः खलु अप्सरोभिः सार्द्ध शब्दपरिचारणां कर्तम, ततः खलु तैर्देवैरेवं मनसि कृते सति तथैव यावद उत्तरवैक्रियाणि रूपाणि विकुर्वन्ति विकुर्वित्वा येनैव ते देवा स्तेनैव उपागच्छन्ति, उपागत्य तेषां देवानाम् अदूरसामन्ते स्थित्वा अनुत्तरान् उच्चाबचान् शब्दान् समुदीरयन्त्यः समुदीरयन्त्यस्तिष्टन्ति, ततः खलु ते देवास्ताभिरप्सरोभिः सार्द्ध शब्दपरिचारणां कुर्वन्ति अप्सराओं के साथ (रूवपरियारणं करेंति) रूपपरिचारणा करते हैं (सेसं तं चेव) शेष वही पूर्वोक्त (जाव भुजो भुजो परिणमंति) यावत् वार-चार परिणत होते हैं
(तत्थ णे जे ते सहपरियारगा देवा) उनमें जो शब्द परिचारक देव हैं (तेसिंणं इच्छामणे समुप्पज्जई) उनका इच्छामन उत्पन्न होता है (उच्छामो णं अच्छराहिं सद्धिं सहपरियारणं करेत्तए) हम अप्सराओं के साथ शब्द परिचारणा करना चाहते हैं (तए ण तेहिं देवेहिं) तत्पश्चात् उन देवों द्वारा (एवं मणसीकए समाणे) इस प्रकार मन करने पर (जाव उत्तरवेउब्वियाई रुवाई विउठवंति) यावत् उत्तर वैक्रियक रूपों की चिकुर्वणा करती हैं (विउवित्ता) विकुर्वणा करके (जेणामेव ते देवा तेणामेव उवागच्छंति) जिधर वे देव हों उधर ही जाती हैं (उवागच्छिता तेसिं देवाणं) जाकर उन देवों के (अदूर सामंते) न बहुत दूर, न बहुत पास (ठिच्चा) स्थित होकर (अणुत्तराई) अनुत्तर-सर्वोत्कृष्ट (उच्चावयाई सहाई समुदीरे भाणीओ समुदीरेमाणीओ) उच्चनीचे शब्दों का प्रयोग करती-करती (चिटुंति) रहती हैं (तए ण ते देवा ताहिं
(तए ण) त्या२ पछी (ते देवा) ते हेवे। (ताहिं अच्छराहिं सद्धि) ते २५.रामानी साथै (रूपपरियारण करे ति) ३५५रियारण। ७२ छ (सेसं तं चेव) मा ते पडेल ४डस (जाव भुज्जो-भुज्जो परिणमंति) यावत् पा२ वा२ परिणत थाय छे.
(तत्थणं जे ते सहपरिणरगा देवा) तमनामा २ ५४परिया२४ हेवे छ (तसिणं इच्छामणे समुप्पज्जइ) तमनु ४२मन उत्पन्न थाय छे. (इच्छामो णं अच्छराहिं सद्धि सहपरियारणं करेत्तए) सभे मसरामानी साथे १५४-परिया२९॥ ४२१याडिये छीये.
(तएणं तेहिं देवेहि) त्या२ ५७ ते हो । (एवं मणसीकए समाणे) या रीते भन ४२वाथी (जाव उत्तरवेउव्वियाई रूवाइं विउव्वांति) यावत् उत्तर वैठिय ३पानी विए। ४२ छ (विउव्वित्ता) (पा रीने. (जेणामेव ते देवा तेणामेव उवागच्छन्ति) ज्यांत हेको हाय त्यां पायी जय छ (उवागच्छित्ता तेहि देवाण) न त हेवानी (अदरसामंते) मा २ नही महु न७४ नही (ठिच्चा) स्थिर ने (अणुत्तराई) मनुत्त२सर्वोत्कृष्ट (उच्चावयाई सहाई समुदीरे-माणीओ समुदीरे-माणीओ) या-नीय शहान प्रयोग ४२ती ४२ती (चिट्ठति) २९ छे.
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫