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प्रज्ञापनासूत्रे नारका स्तथैव निरवशेष भणितव्यम्, तत्र खलु ये अमीरूपपरिचारका देवास्तेषां खलु इच्छामनः समुत्पद्यते-इच्छामः खलु अप्सरोभिः सार्द्ध रूपपरिचारणां कर्तुम, ततः खलु तैर्देवरेवं मनसिकते सति तथैव यावद् उत्तरक्रियाणि रूपाणि चिकुर्वन्ति, विकुर्वित्वा येनैव ते देवा स्तेनैव उपागच्छन्ति उपागल्य तेषां देवानामदरसामन्ते स्थित्वा तानि उदाराणि यावद् मनो. रमाणि उत्त क्रियाणि रूपाणि उपदर्शयन्त्य उपदर्शयन्त्य स्तिष्ठन्ति, ततः खलु ते देवास्ताप्रकार (जहेव) जैसे (कायपरियारगा) काय से परिचारणा करने वाले (तहेव) उली पकार (निरवसेसं भाणियन्त्र) सम्पूर्ण कहना चाहिए । _ (तस्थ गंजे ते रूवपरिपारगा देवा) उनमें जो रूपपरिचारकदेव हैं (तेसिंणं पच्छामणे समुप्पजइ) उनका इच्छा प्रधान मन उत्पन्न होता है (इच्छामोणं अच्छराहिं सद्धि रूवपरियारणं करेत्तए) अप्पराओं के साथ रूपपरिचारणा करना चाहते हैं । (ते णं) वे अप्सराएं (तेहिं देवेहिं एवं मणसीकए समाणे) उन देवों द्वारा मन से ऐसा सोचने पर (तहेव) उसी प्रकार-पूर्ववत-(जाव उत्तरवेउन्धिया रूबाई विउव्यंति) यावत् उत्तरवैक्रिय रूप की विकुर्वणा करती हैं (विउव्वित्ता) चिक्रिया करके (जेणामेव ते देवा तेणामेव उवागच्छंति) जहाँ वे देव होते हैं, वहीं जा पहुंचती हैं (उवागच्छित्ता) पहुंच कर (तेसिं देवाणं अदूरसामंते) उन देवों के न बहत दूर, न बहत पास (ठिच्चा) स्थित होकर (ताई उरालाई जाव मणोरमाई) उन उदार यावत् मनोरम (उत्तर वेउव्वियाई रूवाई) उत्तर वैक्रिय रूपों को (उवदंसेमाणीओ उवद सेमाणीओ) दिखलाती-दिखलाती हुई (चिट्ठति) स्थित रहती हैं । (तए णं) तत्पश्चात् (ते देवा) वे देव (ताहिं अच्छराहिं सद्धिं) उन (जहेब) रेभ (कायपरियारगा) याथी परिया२९॥ ४२११७ (तहेव) तीन 1 (निरवसेसं भाणियव्वं) संपूर्ण ४३ नसे.
(तत्थणं जे ते रूपपरियारगा देवा) तमनामारे ३५ परिया२४ हेवो छ (तेहिणं इच्छामणे समुप्पज्जइ)मना२प्रधान मन ५-1 थाय छ (इच्छामो णं अच्छराहिं सद्धिं रूप-परियारणं करेत्तए) सरायानी साथे ३५-५रिया ॥ ४२॥ याडि छीस,
(तेणं) ते मसराम (तेहिं देवेहिं एवं मणसीकएसमाणे) ते हे दा| भनथी मेरीत किया२पाथी (तएव) ते शत पूर्वात (जाव उत्तरवेउव्वियाई रूवाइं विउव्वंति) यावत् उत्तर वैठिय ३५नी विशु ४२ छ (विउब्वित्ता) विठिया ४१२.
(जेणामेव ते देवा तेणामेव उवा गच्छंति) ज्यां ते हव हाय छ त्यो पाये छ (उत्रागन्छित्ता) पडल्याने (तेहि देवाणं अदूरसामंते) ते वोथी न मई २ नमन (टिकना) स्थि२ ४२ (ताई उरालाई जाव मनोरमाई) ते २ यावत् भनारम (उत्तरउब्वियाई रूवाई) उत्त२ वैठिय ३पान (उवदंसेमाणीओ उवदंसेमाणीओ) हेमारती-हमारती (चिटुन्ति) स्थिर २ छे.
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫