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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ३४ सू० ४ देवानां परिचारणाविशेषनिरूपणम् ८५९ छाया-सन्ति खल भदन्त ! तेषां देवानां शुक्रपुद्गला ? हन्त, सन्ति, ते खलु भदन्त ! तासाम् अप्सरसां कीदृशतया भूयो भूयः परिणमन्ते ? गौतम ! श्रोत्रेन्द्रियतया, चक्षुरिन्द्रियतया, घ्राणेन्द्रियतया, रसनेन्द्रियतया, स्पर्शनेन्द्रियतया, इष्टतया कान्ततया मनोज्ञतया मनआपतया सुभगतया सौभाग्यरूपयौवन गुणलावण्यतया ते तासां भूयो भूयः परिणमन्ते, तत्र खलु ये अमी स्पर्शपरिचारका देवा स्तेषां खलु इच्छामनः समुत्पद्यते-एवं यथैव कायपरि. परिचारणा विशेष वक्तव्यता शब्दार्थ-(अस्थि णं भंते ! तेसि देवाणं सुक्क पुग्गला ?) हेभगवन् ! क्या उन देवों के शुक्र-पुद्गल होते हैं ? (हंता, अस्थि) हां, होते हैं (ते ण) वे (भंते) हे भगवन्-(तासि अच्छराणं) उन अप्सराओं के लिए (कीसत्ताए) किस प्रकार के (भुज्जो भुज्जो) वार-वार (परिणमंति ?) परिणत होते हैं ? (गोयमा !) हे गौतम ! (सोतिदियत्ताए) श्रोत्रेन्द्रिय रूप से (चकावुरिंदियत्ताए) चक्षुरिन्द्रिय के रूप से (घाणिदियत्ताए) घाणेन्द्रिय के रूप से (रसिदियताए) रसेन्द्रिय के रूप से (फासिंदियत्साए) स्पर्शनेन्द्रिय के रूप से(इत्ताए) इष्टरूप से (कंतताए) कान्त रूप से (मणुश्नत्ताए) मनोज्ञ रूप से (मणामत्ताए) मन आम-अतिशय मनोज्ञ रूप से (सुभगत्ताए) सुभग रूप से (सोहग्गरूव जोवण गुणलायनत्ताए) सौभा. ग्य, रूप, योवन, गुग, लावण्य रूप से (ते) वे (तासिं) उनके लिए (भुजो भुजो परिणमंति) वार- धार परिणत होते हैं। (तत्थ ण जे ते फासपरियारगा देवा) उनमें जो देव स्पर्शपरिचारक हैं (तेसि णं इच्छामणे समुप्पजइ) उनका इच्छा प्रधान मन--उत्पन्न होता है (एक) इस પરિચારણું વિશેષ વક્તવ્યતા शा-(अत्थिणं भंते ! तेसिं देवाणं सुक्कपुगला) सावन् ! शुत हेवानां शु पुराना हाय छे ? (हंता गोयमा) 1, गौतम डाय छे (ण) ते (भंते) भावान् (ताहिं अच्छराणं) ते मसरामोन माटे (कीसत्तार) ४६ रीते (भुज्जो-भुज्जो) वारपार (परिणमंति ?) परिणत हाय छ ? (गोयमा !) गौतम ! (सोतिदियत्ताए) श्रोत्रन्द्रिय ३५था (चक्खुन्दियत्ताए) नेत्रन्द्रि यना ३५था (घाणिदियत्ताए) प्राणेन्द्रियनi ३५था (रसिदियत्ताए) रसेन्द्रियन ३५था (फासिदियत्ताए) २५शेन्द्रियन ३थे (इतृत्ताए) ७८ट ३पोथी (कंतत्ताए) आन्त३५थी (मणुन्नत्ताए) भनोस ३५थी (मणामत्ताए) भन माम-मतिशय मनोज्ञ ३५थी (सुभगत्ताए) सुभा रीते (सोहम्ग, रूप, जोब्वण, लावण्णत्ताए) सोमाय, ३५, यौवन, गुण सा१५५ ३५था (ते) तसा (ताहि) तमना भाटे (भुज्जो-भुज्जो परिणमंति) पार पा२ परिणत थाय छे. (तत्थण जे ते फासपरियारगादेवा) तेमनामाने हे २५०-परिया२४ छ. (तेसिणं इच्छामणे समुप्पज्जइ) तमनां छाप्रात मन उत्पन्न थाय छे. (ए) ॥ शते શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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