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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद ३१ सू० २ नैरयिकादीनामवधिक्षेत्रज्ञाननिरूपणम् ७४९ चरमान्त:, महाशुक्रसहस्रारकदेवा श्चतुर्थ्याः पङ्कप्रभायाः पृथिव्या अधस्तात चरमान्तः, आनतप्राणतारणाच्युतदेवाः अधो यावत्-पश्चम्या धूमप्रमाया अधस्तात् चरमान्तः, अधस्ताद् मध्यमवेयकदेवा अधो यावत्-षष्ठयास्तमःप्रभायाः पृथिव्या अधस्ताद् यावत् चरमान्तः, उपरिमोवेय.देवाः खलु भदन्त ! कियत् क्षेत्रम् अवधिना जानन्ति पश्यन्ति ? गौतम ! जघन्येन अङ्गुलस्यासंख्येयभागम्, उत्कृष्टेन अधः सप्तम्या अधस्तात यावच्चरमान्तः, तिर्यगू यावद् असंख्येयान् द्वीपसमुद्रान, ऊर्ध्वं यावत् स्वकानि विमानानि अवधिना जानन्ति पश्यन्ति, स्रार देव (चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए हेटिल्ले चरमते) चौथी पंकप्रभा पृथिवी के निचले चरमान्त तक (आणयपाणयआरण अच्युय देवा) आनत, प्राणत, आरण, अच्युत देव (अहे जाव पंचमाए धूपप्पभाए हेडिल्ले चरमंते) नीचे पांचवी पृथिवी धूमप्रभा के निचले चरमान्त तक । (हेटिममज्जिमगेवेजगदेवा) अधस्तन और मध्यम प्रैवेयक देव (अहे जाव छठाए तमाए पुढवीए हेहिल्ले जाव चरमंते) नीचे यावत् छठी तमापभा पृथ्वी के निचले यावत् चरमान्त तक (उपरिमगेवेन्जगदेवा णं भंते ! केवइयं खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति ?) ऊपरी अवेयकों के देव, हे भगवन् ! कितने क्षेत्र को अवधि से जानते देखते हैं (गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभाग) हे गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग को (उक्कोसेणं अहेसत्तमाए हेडिल्ले जाव चरमंते) उत्कृष्ट सातवीं पृथिवी के निचले यावत् चरमान्त तक (तिरियं जाव असंखेज्जे दीवसमुद्दे) तिर्छ असंख्यात द्वीप समुद्रों तक (उड्ढं जाव सयाई विमाणाई) ऊपर अपने विमानों तक (ओहिणा जाणंति पासंति) अवधि से जानते देखते हैं । हिदुल्लो चरमंते) याथी ५४५मा काना यभान्त सुधी. (आणय पाणय आरण अच्चुयदेवा) मानत-पायुत-२६-५२युतहेव (अहे जाव पंचमाए धूमप्पभाए हेद्विल्ले चरमंते) नाय पायभी पृथ्वीना धूमप्रमाना नीयता यभान्त सुधी. (हेद्विममज्झिमगेवेज्जगदेवा) मरतन मने मध्यम वेय: ३३ (अहे जाव छद्रोए तनाए पुढवीए हेदिल्ले जाव चरमंते) नीचे यावत् छी तम:प्रमा पृथ्वीना नीयता यावत् यभान्त सुधी. (उचरिमगेवेज्जगदेवाण भंते ! केवइयं खेत्तं ओहिणा जाणंति-पासंति) ५२ ચિવેયકોના દેવ હે ભગવન્કેટલા ક્ષેત્રને અવધિથી જાણે–દેખે છે? (गोयमा ! जहण्णेण अंगुलरस असंखेज्जइ भाग) : गौतम ! धन्यथी मखना असण्यातमा माने (उक्कोसेण अहे सत्तमाए हे द्विल्ले जाव चरमंते) १८थी सातभी पृथ्वीना नीयबा या१1 ३२भान्त सुधी (तिरियं जाव असंखेज्जे दीवसमुद्दे) तिरछ। असभ्यात दी५-समुद्री सुधी (उढं जाव सयाई विमाणाई) ७५२ पोताना विभानी सुधा (ओहिणा जाणंति पासंति) अवधियी and-हेमे छे. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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