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प्रज्ञापनासूत्रै अवधिना जानन्ति पश्यन्ति ? गौतम ! जघन्येन अालस्यासंख्येयभागम्, उत्कृष्टेन अधो यावद् अस्याः रत्नप्रभाया, अधस्तात् चरमान्तः, तिर्यग यावद् असंख्येयान् द्वीपसमूदान ऊध्वे यावत् स्वकानि विमानानि अवधिना जानन्ति पश्यन्ति, एवम् ईशानकदेवा अपि, सनत्कुमारदेवा अपि एवञ्चैव नवरं यावत्-अयो द्वितीयस्याः शर्कराप्रभायाः पृथिव्या अध स्तात् चरमान्तः, एवं माहेन्द्रदेवा अपि, ब्रह्मलोकलान्तकदेवा स्तृतीयस्याः पृथिव्या अधस्ताद
(सोहम्मगदेवाणं भंते ! केवइयं खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति ?) हे भगवन् ! सौधर्मक देव कितने क्षेत्र को अवधि से जानते देखते हैं ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजहभाग) हे गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग को (उक्कोसेणं अहे जाव इसीसे रयणप्पभाए हिहिल्ले चरमते) उत्कृष्ट नीचे यावत् इस रत्नप्रभा पृथ्वी के निचले चरमान्त तक (तिरियं जाव असंखेज्जे दीवसमुद्दे) तिर्छ असंख्यात द्वीपसमुद्रों तक (उड्ढं जाव सगाई विमाणाई) ऊंचा अपने विमानों तक (ओहिणा जाणंति पासंति) अवधि से जानते देखते हैं (एवं ईसाणगदेवा वि) इसी प्रकार ईशानक देव भी (सणं कुमार देवा वि एवं चेव) सनत्कुमार देव भी इसी प्रकार (नवरं जाव अहे दोच्चाए सक्करप्पभाए पुढवीए हिडिल्ले चरमंते) विशेष नीचे दूसरी शर्कराप्रभा पृथिवी के निचले घरमान्त तक (एवं माहिंददेवा वि) इसी प्रकार माहेन्द्र देव भी (भलोयलंतग देवा) ब्रह्मलोक और लान्तक देव (तच्चाए पुढवीए हिडिल्ले चरमंते) तीसरी पृथ्वी के निचले चरमान्त तक (महासुक्कसहस्सारग देवा) महाशुक्र और सह
(सोहम्मगदेवाण भंते ! केवइयं खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति) सावन् ! सौधम ४ है। सा क्षेत्र मवधिया ond हेथे छ १ (गोयमा ! जहण्णेण अंगुलरस असंखेज्जइ भाग) 8 गौतम ! धन्य AYखना मध्यातमा भागने (उकोसेण, अहे जाव इमीसे रयणप्पभाए हिद्विले चरमंते) Bष्ट नीथे या त् । २त्नप्रभा पृथ्वीना नीयता समान्त सुधी (तिरियं जाव असंखिज्जे दीवसमुद्दे) ति२७। मध्यात दी५-समुद्री सुधी (उड्ढं जाव सगाई विमाणाई) ये पाताना विमाने सुधी (ओहिणा जाणंति पसंति) અવધિથી જાણે દેખે છે.
(एवं ईसाणगदेवा वि) से सारे शान ५ ५ (सणंकुमारदेवा वि एवं चेव) सनमा२ हेव ५९ मे प्रारे (नवरं जाव अहे दोच्चाए सकरप्पभाए पुढविए हिडिल्ले चरमंते) વિશેષ નીચે બીજી શર્કરા પ્રભા પૃથ્વીના નીચલી ચરમાન્ત સુધી
(एवं माहिंद देवा वि) ४ ४ारे भाउन्द्र हेव ५५] (बंभलोयलंतगदेवा) ब्रह्म als मने alrdx ३ (तच्चाए पुढवीए हिडिल्ले चरमंते) श्री पृथ्वीना नीयता २२ માન્તક સુધી.
(महासुक्क सहस्सारगदेवा) माशु भने सार ३१ (चउत्थीए पंकप्पभाए पुढविए
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫