________________
प्रमेयबोधिनी टीका पद ३० सू० २ केवलीज्ञानसम्पत्तिनिरूपणम्
७४५ संस्थानः प्रमाणैः प्रत्यवतारैर्य समयं जानाति तं समयं पश्यति ? यं समयं पश्यति तं समयं जानाति ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-केवली खलु इमां रत्नप्रमां पृथिवीम् आकार० यं समयं जानाति नो तं समयं पश्यति, यं समयं पश्यति नो तं समयं जानाति ? गौतम ! साकारं तज्ज्ञानं भवति, अनाकारं तद् दर्शनं भवति, तत् तेनार्थेन यावत्-नो तं समयं जानाति एवं यावद् अधः सप्तमीम् एवं सौधर्मकल्पं यावद् अच्युतं, केचली इस रत्नप्रभा पृथिवी को आकारों से (हेऊहिं) हेतुओं से (उवमाहि) उपमानों से (दिदंतेहिं) दृष्टान्तों से (वण्णेहिं) वर्षों से (संठाणेहिं) संस्थानों से (पमाणेहि) प्रमाणों से (पडोयारेहि) प्रत्ययतारों से (ज समयं जाणई तं समय पासइ ?) जिस समय जानते हैं, उस समय देखते हैं ? (जं समयं पासइ त समयं जाणइ ?) जिस समय देखते हैं, उस समय जानते हैं ? __(गोयमा ! नो इणटे समठे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है (से केणटेणं भंते ! एवं बुरचई) हे भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है (केवली णं इमं रयणप्पभं पुढविं आगारेहि) केवली इस रत्नप्रभा पृथिवी को आकारों से (जं समयं जाणइ णो तं समयं पासइ, जं समयं पासइ नो तं समयं जाणइ ?) जिस समय जानते हैं उस समय देखते नहीं, जिस समय देखते हैं, उस समय जानते नहीं (गोयमा ! सागारे से णाणे भयाइ) हे गौतम ! उन का ज्ञान साकार होता है (अणागारे से दंमणं भवइ) उनका दर्शन अनाकार होता है (से तेणटेणं) इस कारण से (जाव को तं समयं जाणइ) यावत् उस समय नहीं जानते (एवं जाय अहेसत्तम) इसी प्रकार यावत् सातवीं पृथिवी को (एवं २त्नप्रभा पृथ्वीन २१४।२।थी (हेऊहिं ) तुमाथी ( उवमाहि) 3५मामाथी ( Fिटुंतेहिं) ४५-तथी ( धणेहि) पणेथी (संठाणेहि) सथानी (पमाणेहि) प्रभागाथा (पडोयारेहिं) प्रत्यवतारोथी (जं समयं जाणइ तं समयं पासइ)ो समये ये छे, ते समये नेपे छ ? (जं समयं पासइ तं समयं जाणइ १) २ समये छ, ते समये तो छ ?
(गोयमा! नो इणट्ट समटे ) गौतम ! 241 Aथ समय नथी. (से केणदेणं भंते ! एवं वुच्चइ) हे भगवन् ! ॥ हेतुथी मेम ४पाय छे. ( केवलीणं इमं रयणप्पभं पुढविं आगारेहि ) पक्षी मी २त्नप्रभा पृथ्वीन माथी (जं समयं जाणइ णो तं समय पासइ, जं समय पासइ नो तं समय जाणइ ? ) ले समये गये छ, ते समये हेपत नथी, रे समये हेणे छ, ते भये पता नथी. (गोयमा ! सागारे से णाणे भवइ) हे गौतम ! तेभाना ज्ञान सा॥२ डाय छ (अणागारे से दसणं भवइ) तमना + अन डाय छे. (से तेणद्वेणं) मे ४।२९४थी (जाय णो तं समय जाणइ) यात् ते समये नयी पता
प्र० ९४
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫