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________________ 333333C: प्रमैयबोधिनी टीका पद ३० स० १ साकारानाकारपश्यन्तानिरूपणम् ७३३ कारपश्यन्ता भवति, इत्येवं रीत्या साकारभेदे अनाकार भेदे च प्रत्येकमवान्तर भेदे वैचित्र्य सदभावेन उपयोग पश्यन्तयोः प्रतिविशेष प्रतिपादयितु मवान्तरभेदान् प्ररूपयति-'सागारपासणया णं भंते ! काविहा पण्णता?' हे भदन्त ! साकारपश्यन्ता खलु कतिविधा प्रज्ञप्ता ? भगवानाह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'छव्यिहा पण्णत्ता' साकारपश्यन्ता षडूविधा प्रज्ञप्ता, 'तं जहा---सुयणाण पासणया १' तद्यथा-श्रुतज्ञान पश्यन्ता १, 'ओहिणाण पासणया २' अवधिज्ञानपश्यन्ता २, 'मणपज्जवमाणपासणया ३' मनःपयेवज्ञानपश्यन्ता ३, 'केवलणाण पासणया ४' केवलज्ञान पश्यन्ता ४, 'सुयअण्णाण सागार पासणया ५' श्रुता ज्ञानसाकारपश्यन्ता ५, 'विभंगणाणसागारपासणया ६' विभज्ञानसाकारपश्यन्ता च ६, गौतमः पृच्छति -'अणागारपासणया णं भंते ! कइविहा पणत्ता ?' हे भदन्त ! अनाकारपश्यन्ता खलु कति विधा प्रज्ञप्ता ? भगवानाह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'तिविहा पण्णत्ता' अनाकरपश्यन्ता त्रिविधा प्रज्ञप्ता त जहा-चक्खुदंसण अणागारपासणया?' तद्यथा चक्षुर्दर्शनानाकारपश्यन्ता १, 'ओहिदंसण अणागारपासणया २' अवधिदर्शनानाकारपश्यन्ता होते हैं । इस प्रकार साकार पश्यन्ता के और अनाकार पश्यन्ता के अवान्तर भेदों में विभिन्नता होने के कारण उपयोग और पश्यन्ता में भेद है। उन अवान्तर भेदों का प्रतिपादन किया जाता है गौतमस्थामी-हे भगवन् ! साकार पश्यन्ता कितने प्रकार की है ? भगवान्-हे गौतम ! साकारपश्यन्ता छह प्रकार की कही है, वह इस प्रकार हैं-(१) श्रुतज्ञान साकार पश्यन्ता (२) अवधिज्ञान पश्यन्ता (३) मनःपर्यवज्ञान पश्यन्ता (४) केवलज्ञान पश्चन्ता (५) श्रुताज्ञान साकार पश्यन्ता और (६) विभंगज्ञान साकार पश्यन्ता। गौतमस्वामी-हे भगवन् ! अनाकार पश्चन्ता कितने प्रकार की कही है? भगवान्-हे गौतम ! अनाकार पश्यन्ता तीन प्रकार की गई है, यथा-चक्षु दर्शन-अनाकार पश्यन्ता, अवधिदर्शन-अनाकार पश्यन्ता और केवलदर्शन अना. છે. એ પ્રકારે સાકાર પશ્યન્તાના અને અનાકાર પશ્યન્તાના અવાનાર ભેદોમાં વિભિન્નતા થવાના કારણે ઉપગ અને પશ્યન્તામાં ભેદ છે. તે અવાન્તર ભેદનું પ્રતિપાદન કરાય છે શ્રીગૌતમસ્વામી–હે ભગવન ! સાકાર પશ્યન્તા કેટલા પ્રકારની કહી છે? શ્રીભગવાન ગૌતમસાકાર પશ્યતા છ પ્રકારની કહી છે તે આ પ્રકારે છે (१) श्रुतज्ञान पश्यन्त। (२) अवधिज्ञान पश्यन्ता (3) मन:५५ज्ञान पश्यन्त। (४) કેવળજ્ઞાન પશ્યન્તા (૫) શ્રુતજ્ઞાન સાકાર પશ્યતા અને (૬) વિર્ભાગજ્ઞાન સાકાર પશ્યન્તા - શ્રી ગૌતમસ્વામી–હે ભગવદ્ અનાકાર પશ્યતા કેટલા પ્રકારની કહી છે? શ્રી ભગવાન્ –હે ગતમ! અનાકાર પશ્યન્તા ત્રણ પ્રકારની કહેલ છે, જેમકે–ચક્ષુદર્શન અનાકાર પશ્યતા, અવધિદર્શન અનાકાર પશ્યન્તા, અને કેવલદર્શન અનાકાર શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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