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प्रमेयबोधिनी टीका पद २८ सू० ६ नैरयिकादीनामोजाहाराद्यधिकारनिरूपणम् ६११ इच्छामनः समुत्पद्यते इच्छामः खलु मनोभक्षणं कर्तुम् , ततः खलु ते देवैः एवं मनसिकते सति क्षिप्रमेव ये पुद्गला इष्टाः कान्ताः यावद् मन आमास्ते तेषां मनोभक्षतया परिणमन्ते, तद्यथा नाम शीताः पुद्गलाः शीत प्राप्य शीत चैव अतिव्रज्य खलु तिष्ठन्ति, उष्णा वा,
___ अर्थाधिकार वक्तव्यता शब्दार्थ-(नेरइयाणं भंते ! कि ओयाहारा मणभक्खी ?) हे भगवन् ! नारक जीव क्या ओजाहारी होते हैं अथया मनोभक्षी-मन से भक्षण करने वाले होते हैं ? (गोयमा ! ओयाहारा, णो मणभक्खी) हे गौतम ! ओजाहारी होते हैं मनो भक्षी नहीं होते (एवं सव्वे ओरालिया सरीरा वि) इसी प्रकार सभी औदारिकशरीरी (देवा सव्वे वि) सभी देव (जाच वेमाणिया) वैमानिकों तक (ओयाहारा वि मणभक्खी वि) ओजाहारी भो, मनोभक्षी भी (तत्थ णं जे ते मणभव खी देश) उनमें जो मनोभक्षी देव हैं (तेसिं णं इच्छामणे समुपज्जइ) उनको इच्छा मन अर्थात् आहार की इच्छा उत्पन्न होती है (इच्छामो णं मणभक्खणं करित्तए) हम मनोभक्षण करना चाहते हैं-हम मनोभक्षण करें (तए णं) तदनन्तर (तेहिं देवेहिं एवं मणसीकए) उन देशों के इस प्रकार विचार करने पर (खिप्पामेव) शीघ्र ही (जे पोग्गला) जो पुदगल (इट्टा) इष्ट (कंता) कमनीय (जावमणामा) याचतू मनाम (ते) वे (तेसि) उनके (मणभक्खत्ताए) मनोभक्ष्य रूप से (परिणमंति) परिणत हो जाते हैं (से) अथ (जहानामए)कुछ भी नाम वाले (सीया पोग्गला) शीत पुद्गल (सीयं पप्प) शीत स्वभाव वाले को प्राप्त होकर (सीयं
અર્વાધિકાર વક્તવ્યતા शहाथ-(नेरड्याण मंते ! किं ओयाहारा मणभक्खी) हे मावन् ! ना२४ ७५ शु सोलह हाय छ २०१५ मनाक्षी-भनथी मक्ष ४२ना२।।य छ ? (गोयमा! ओयाहारा, णो मणभक्खी) हे गोतम! मे री डाय छ, मनालझी नथा होता.
(एवं सव्वे ओरालियसरीरा वि) से प्रारे 14मोहा२ि४ शरीरी (देया सव्वेवि) सा। (जाव वेमाणिया) मानि। सुधी (ओयाहारा वि मणभक्खी वि) सोडारी १५॥ डाय छे भनालक्षी पर है.य छ (तत्थणजे ते मणभक्खी देवा) ते मां ने मनालक्षी थे। छ (तेसिण इच्छामणे समुपज्जइ) तेभने ४२७१ मन अर्थात् आहा२नी ४२७1 34न्न थाय छ (इच्छामो ण मणभक्खां करित्तए) ५ भनी लक्ष १९२१। याही मेछी थे, म भनालक्षण ४शये (तएण) तन-1२ (तेहिं देवेहिं एवं मणसीकए) येवोना से प्रारे विद्यार ४२पाथी (खिप्पामेव) शी (जे पोग्गला) ने पुल (इद्वा) ट (कंता) आन्त-भनीय (जाव मणामा) यापत भनाम (ते) तमे। (तेसि) तेमना (मणभक्खत्ताए) मनालक्ष३५थी (परिणमंति) ५रिणत जय छ (से) मथ (जहानामए) 3 ५ नामवा (सीया पोग्गला) शीत पुगत (सीयं पप्प) शतवमााणान प्रान्त धन (सीयं चेव अइवइत्ताण)
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫