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________________ ६०४ प्रज्ञापनासूत्रे शरीराणि आहारयन्ति, शेषं यथा नैरयिकाः, यावद् वैमानिकाः, नैरयिकाः खलु भदन्त ! किं लोमाहाराः, प्रक्षेपाहाराः ? गौतम ! लोमाहाराः, नो प्रक्षेपाहाराः, एवम् एकेन्द्रियाः सर्वदेवाश्च भणितव्याः, द्वीन्द्रिया यावद् मनुष्या लोमाहारा अपि प्रक्षेपाहारा अपि ॥ ५॥ ___टीका-अथैकेन्द्रियशरीरादीनामधिकारमुद्दिश्य प्ररूपयितुमाह-'नेरइयाणं भंते ! किं एगि. दियसरीराइं आहारेंति जाव पंचिंदियसरीराइं आहारेंति ?' हे भदन्त ! नैरयिकाः खलु किम् एकेन्द्रियशरीराणि आहारयन्ति ? यावत्-किं वा द्वीन्द्रियशरीराणि आहारयन्ति ? किंवा भाव प्रज्ञापना की अपेक्षा से (एवं पडुप्पण्णभावपण्णवणं पडुच्च) इस प्रकार वर्तमानभाव प्रज्ञापना की अपेक्षा से (नियमा) नियम से (जस्स जइ इंदियाई) जिस के जितनी इन्द्रियां हैं (तइंदियाई सरीराइं आहारेंति) उतनी ही इन्द्रियों वाले शरीर का आहार करते हैं (सेसं जहा नेरइया जाय वेमाणिया) शेष नारकों के समान, यावत् वैमानिक । _ (नेरइयाणं भंते ! किं लोमाहारा, पक्खेवाहारा ?) हे भगवन् ! क्या नारक लोमाहारी होते हैं या प्रक्षेपाहारी ? (गोयमा ! लोमाहारा, नो पक्खेवाहारा) हे गौतम ! लोमाहारी, प्रक्षेपाहारी नहीं (एवं एगिदिया सव्वदेवा य भाणि. यब्बा) इसी प्रकार एकेन्द्रिय और समस्त देव कहने चाहिए (बेइंदिया जाय मणूसा लोमाहारा वि पक्खेवाहारा वि) दोन्द्रिय यावत् मनुष्य लोमाहारी भी और प्रक्षेपाहारी भी होते हैं । सू०५॥ टीकार्थ-अव एकेन्द्रियशरीर आदि के अधिकार को लेकर प्ररूपणा की जाती है____ गौतमस्वामी-हे भगवन् ! नारक जीव क्या एकेन्द्रियशरीरों का आहार करते हैं ? यावत्-क्या द्वीन्द्रियशरीरों का आहार करते हैं ? क्या त्रीन्द्रिय. लाप प्रज्ञापनानी अपेक्षाथी (एवं पडुपण्णभावपण्णवणं पडुच्च) से परे त भान ला प्रशासनानी अपेक्षाथी (नियमा) नियमथा (जस्स जइ इंदियाई) ने रखी छन्द्रिय। छ (तइंदियाई सरीराइं आहारेति) मेटली धन्द्रियावाणा शरीरनी माहा२ ४२ छ (सेसं जहा नेरइया जाय वेमाणिया) शेष नाहीनी समान, यावत् वैमानित. (नेरइयाणं भंते ! किं लोमाहारा, पक्खेवाहारा )- भगवन् ! शुना२४ सोमाहारी डाय छ १२ प्रक्षेपारी ? (गोयमा ! लोमाहारा, नो पक्खेवाहारा) हे गौतम ! सोमाहारी प्रक्ष पाहारी नही (एवं एगिदिया सव्वदेवा य भाणियव्या) मे २ मेन्द्रिय भने समस्तव हे (बेइंदिया जाय मणूसा लोमाहारा वि पक्खेवाहारा वि) बान्द्रय यात् મનુષ્ય માહારી પણ અને પ્રક્ષેપાહારી પણ હોય છે. સૂપા ટીકાર્થ –હવે એકેન્દ્રિય શરીરાદિના અધિકારને લઈને પ્રરૂપણા કરાય છે. શ્રી ગૌતમસ્વામી-હે ભગવન! નારકજીવે શું એકેન્દ્રિય શરીરને આહાર કરે છે? શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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