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प्रमेयबोधिनी टीका पद २८ सू० ५ एकेन्द्रियशरीराधधिकारनिरूपणम् आहारयन्ति यावत्-पञ्चेन्द्रियशरीराण्यपि, प्रत्युत्पन्नभावप्रज्ञापनां प्रतीत्य नियमात् पश्च न्द्रियशरीराणि आहारयन्ति, एवं यावत् स्तनितकुमाराः पृथिवीकायिकानां पृच्छा, गौतम ! पूर्वभावप्रज्ञापनां प्रतीत्य एवञ्चव, प्रत्युत्पन्नभावप्रज्ञापनां प्रतीत्य नियमाद् एकेन्द्रियशरीराणि, द्वीन्द्रियाः पूर्वभावप्रज्ञापनां प्रतीत्य एवश्चैव, प्रत्युत्पन्नभावप्रज्ञापनां प्रतीत्य नियमाद् द्वीन्द्रियाणां शरीराणि आहारयन्ति, एवं यावच्चतुरिन्द्रियास्तावत् पूर्वभावप्रज्ञापन प्रतीत्य, एवं प्रत्युत्पन्नभावप्रज्ञापनां प्रतीत्य नियमाद् यस्य यापन्ति इन्द्रियाणि तावन्ति इन्द्रियाणि यावत् पंचेन्द्रियशरीरों का ? (गोयमा ! पुव्यभावपण्णवणं पडुच्च) हे गौतम ! पूर्वभाव प्रज्ञापना की अपेक्षा से (एगिदियसरीराई पि आहारति जाय पंचिंदिया सरीराई पि) एकेन्द्रियशरीरों का आहार करते हैं, यावत् पंचेन्द्रियशरीरों का भी (पडप्पण्णभावपण्णवणं पडुच्च) वर्तमानभाव प्रज्ञापना की अपेक्षा से (नियमा पंचिंदियसरीराइं आहारैति) नियम से पंचेन्द्रिय शरीरों का आहार करते हैं (एवं जाय थणियकुमारा) इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक।
(पुढविकाइयाणं पुच्छा ?) पृथिवीकायिकों संबंधी प्रश्न ? (गोयमा! पुच्चभाच. पण्णवणं पडुच्च एवं चेय) हे गौतम ! पूर्वभाव प्रज्ञापना की अपेक्षा से इसी प्रकार (पडुप्पण्णभायपण्णवणं पडुच्च नियमा एगिदियसरीराई) वर्तमान भाव प्रज्ञापना की अपेक्षा नियम से एकेन्द्रियों के शरीरों को (बेइंदिया पुच्चभाचपण्णवणं पहुच एवं चेय) द्वीन्द्रिय पूर्वभाव प्रज्ञापना की अपेक्षा इसी प्रकार (पडुप्पण्णभावपण्णवणं पडुच्च) वर्तमानभाव प्रज्ञापना की अपेक्षा से (नियमा बेई. दियाणं सरीराइं आहारैति) वीन्द्रियों के शरीर का आहार करते हैं (एवं जाय चतुरिंदिया ताव पुव्यभावपण्णवणं पडुच्च)इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय पूर्व न्द्रिय सशरानी ? (गोयमा ! पुव्वभावपण्णवण पडुच्च) , गौतम पूर्व मार प्रज्ञापनानी अपेक्षाथी (एगिदियसरीराई पि आहारेति जाव पंचिं दियसरीराइं पि) मेन्द्रिय शरीरोनी भाडा ४२ छे, यापत् ५ येन्द्रिय शरीरानो ५५ (पडुप्पण्णभावपण्णवणं पडुच्च) पत. भानमा प्रज्ञापनानी अपेक्षायी (नियमा पंचिंदियसरीराइं आहारे ति) नियमथा ५येन्द्रिय शरीरोन माहा२ अरेछे (एवं जाय थणियकुमारा) मे शारे यावत् स्तनित भारी संधी
(पुढविकाइयाण पुच्छा ?) पृथ्वी431 संधी प्रल ? (गोयमा ! पुव्वभावपण्णवण पडुच्च एवंचेव) 3 गौतम ! पूर्व भार प्रशासनानी अपेक्षाये मे प्रा३ (पडुप्पणभावपण्ण. वर्ण पदुच्च नियमा एगि दियसरीराई) 4 भान प्रज्ञायनानी अपेक्षा नियमथा मेन्द्रियोना शरीरोनी (बेइंदिया पुव्वभावपण्णवण पडुच्च एवं चेत्र) दीन्द्रय पूर्वलाप प्रज्ञापनानी अपेक्षा से प्रारे (पडुपण्णभावपण्णवण पडुच्च) पतमानमा प्रशासनानी 4क्षाथी (नियमा बेइंदियाण सरीराइं आहारे ति) दोन्द्रियोना शरन साहा अरे छ. (एवं जाय चतुरिंदिया ताय पुयभावपण्णवणं पडुच्च) मे रे यावत् यतुरिन्द्रिय पू
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫