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________________ प्रज्ञापनासत्र छाया-अमुरकुमाराः खलु भदन्त ! आहारार्थिन: ? हन्त, आहारायिनः, एवं यथा नैरयिकाणां तथा अप्रकुमाराणामपि भणितव्यम्, यावत् तेषां भूयो भूयः परिणमन्ति, तत्र खलु योऽसौ आभोगनिवर्तितः स खलु जघन्येन चतुर्थभक्तस्य, उत्कृष्टेन सातिरेकवर्षसहसस्य आहारार्थः समुत्पद्यते, ओसन्नं कारणं प्रतीत्य वर्णतो हारिद्रशुक्लानि गन्धतः सुर. भिगन्धानि रसतः अम्लमधुराणि, स्पर्शतो मृदुकलघुकस्निग्धोष्णानि, तेषां पुराणान् वर्णगुणान् यायत् स्पर्शेन्द्रियतया यावत् मन आमतया ईप्सिततया भिधियततया ऊर्ध्वतया नो अधस्तया, मुखतया नो दुःखतया एतेषां भूयो भूयः परिणमन्ति, शेषं यथा नैरयिकाणाम्, प्रकार असुरकुमारों का भी कथन करना चाहिए (जाव) यायत् (तेसिं) उन के लिए (भुजो भुज्जो) वार-बार (परिणमंति) परिणत होते हैं (तत्थ णं जे से आभोगनिव्यत्तिए) उन में जो आभोगनिर्मित आहार है (से गं जहणणेणं च उत्थ भत्तस्स) वह जघन्य चतुर्थभक्त (उकोसेणं सातिरेगवाससहस्सस्स) उत्कृष्ट कुछ अधिक सहस्र वर्ष में (आहारट्टे) आहार की अभिलाषा (समुप्पजइ) उत्प. न्न होती है (ओसणं कारणं पडुच्च) बहुलता रूप कारण की अपेक्षा से (यण्णो हालिहसुकिल्लाई) वर्ण से पीत और श्वेत (गंधओ सुब्भिगंधाई) गंध से सुरभिगंध वाले (रसओ अबिलमहुराई) रस से आम्ल और मधुर (फासओ मउयलहुयनिण्धुण्हाई) स्पर्श से मृदु, लघु, स्निग्ध और उष्ण (तेसि पोराणे चण्णगुणे) उनका पुराणा वर्णगुण (जाच फासिदियत्ताए) यावत् स्पर्शनेन्द्रिय रूप से (जाव मणामत्ताए) यावत् मनाम रूप से (इच्छियत्ताए) इच्छित रूप से (भिजियत्ताए) अभिलषणीय रूप से (उद्धत्ताए) ऊर्ध्व-हल्के रूप से (नो अहत्ताए) भारी रूप से नहीं (सुहत्ताए) सुख रूप से (नो दुहत्ताए) दुःख रूप से नहीं (एएप्ति) उनके लिए (भुजो भुजो) पुनः पुनः (परिणमंति) परिणत होते हैं (सेसं जहा नेरइयाण) थन ४२ नये (जाव) यावत् (तेसिं) तेभने भाटे (भुज्जो भुज्जो) पार पा२ (परिणमति) परिणत याय छे. (तत्थ ण जे से आभोगनिव्वत्तिए) तेयोमा मालागानित माहार छ (से जहण्णेण चउत्थभत्तस्स) ते धन्य थी तुमg (उकोसेण सातिरेगवास सहस्सस्स) GYष्ट थी सातिरे: xis मधि: सर ११ (आहारतु) माहा२नी मनिषा (समुपज्जइ) उत्पन्न थाय छ (ओसन्न कारणं पडुच्च) महुसता ३५ ४।२९नी अपेक्षायी (वण्णओ हालिहसुकिलाई) प था पीत अन श्वेत (गंधओ सुभिगधाइ) थी सुमि 4411 (रसओ अंबिलमहुराई) २सथी म भने मधु२ (फासओ मउयलहुय निधुण्हाई) २५ था मुह, सधु. RAPE अने Ser (तेसिं पोराणे वण्णगुणे) तमना पुरा पशु (जाव फासिंदियत्ताए) यापत् २५न्द्रय ३५थी (जाय मणामत्ताए) यावत् भएभ३५था (इच्छियत्ताए) छत३५था (भिज्झियत्ताए) मलिसणीय३५थी (उद्धत्ताए) 4-st३५था (नो अहत्ताए) भा२३५थी नही (सुहत्ताए) सु५३५था (नो दुहत्तार) दु:५३५थी नही શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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