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प्रज्ञापनासूत्रे
भदन्त ! कियतः कालस्य आहारार्थः समुत्पद्यते ? गौतम ! नैरयिकाणां द्विविधः आहारः प्रज्ञतः, तद्यथा - आभोग निर्वर्तितब्ध, अनाभोग निर्वर्तितश्च तत्र खलु योऽसौ आभोगनिर्व तिः स खलु अनुसमयम् अविरहितः आहारार्थः समुत्पद्यते, तत्र खलु योऽसौ अनाभोगनिर्वर्तितः स खलु असंख्येयसामयिकः आन्तर्मुहूर्तिक आहारार्थः समुत्पद्यते, नैरथिकाः खलु भदन्त ! किमाहारमाहारयन्ति ? गौतम ! द्रव्यतोऽनन्तप्रदेशिकानि क्षेत्रतोऽसंख्येयप्रदेशा आहार वाले भी, अचित्त आहार वाले भी, मिश्र आहार वाले भी ।
(नेरइया णं भंते ! आहारट्ठी ? ) हे भगवन् ! नारक- क्या आहारार्थी हैं ? (हंता, आहारट्ठी) हां, आहारार्थी हैं (नेरइया णं भंते ! केवइकालस्स आहारडे समुपज्जइ ? ) हे भगवन् ! नारकों को कितने काल में आहार की इच्छा उत्पन्न होती है ? (गोयमा ! नेरइया णं दुचिहे आहारे पण्णत्ते) हे गौतम! नारकों का आहार दो प्रकार का कहा है (तं जहा आभोगनिव्यत्तिए य अणा भोगनिवत्तिए य) वह इस प्रकार आभोग-उपयोग पूर्वक किया हुआ और बिना उपयोग किया हुआ (तत्थ णं जे से अणाभोगनिचत्तिए) उनमें जो अनाभोग निर्वर्त्तित है ( से णं अणुसमयमविरहिए आहारट्ठे समुप्पज्जइ) वह प्रतिसमय निरन्तर आहारार्थ उत्पन्न होता रहता है (तत्थ णं जे से आभोगनिव्यत्तिए) उनमें जो आभोग निवर्तित है (से णं असंखिज्जसमइए अंतोमुहुत्तिए आहारडे समुपजइ) यह आहारार्थ असंख्यात समय के अन्तर्मुहूर्त में उत्पन्न होता हैं ।
(नेरइया णं भंते! कि आहारमाहारेति ?) हे भगवन् ! नारक जीव क्या आहार ग्रहण करते हैं ? (गोयमा ! दव्यओ अनंतपएसियाई) द्रव्य से अनन्त પણ અને મિશ્રાહારવાળા પણ.
(Roser णं भते ! आहारट्ठी ) - हे लगवन् ! ना२४ पशु आहारार्थी छे ? (हंता आहारट्ठी) हा, आहारार्थी छे (नेरइयाणं भंते ! केवति कालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जइ ?) डे लगवन ! नारने डेटला असा महारनी रछा उत्पन्न थाय छे ? ( गोयमा ! नेरइयाणं दुविहे आहारे पण्णत्ते) हे गौतम! नारहीना आहार में प्रारना ह्या छे. (तं जहा - आभोगनिव्यत्तिए य अणाभोगनिव्यत्तिए य) ते या प्रकारे - मालोग- उपयोग यूर्व रेल मने વિના ઉપયેાગ કરેલ .
(तत्थणं जे से अणाभोगनिव्यत्तिए) तेमां ने अनालोग निवर्तित छे (सेणं अणुसमयविरहिए आहारट्ठे समुपज्जइ) ते प्रति समये निरन्तर आहारार्थ उत्पन्न थाय छे ( तत्थ णं जे से आभोगनिव्वत्तिए) तेभां ने सालोगनिवर्तित छे (से णं असंखेज्ज समय अंतोमुहुत्तिए आहारट्ठे समुपज्जइ) ते महारथं असंख्यात તમાં ઉત્પન્ન થાય છે.
સમયના અન્તર્મુહૂ.
(desert भंते ! किमाहारमाहारे ति) हे लगवन ! नार
पशु आहार ग्रहण
रे छे. ? (गोयमा ! दव्वओ अणतपएसियाई) द्रव्यथी अनन्त अहेशी (खेत्तओ असंखेज्ज
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫