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________________ ५०० प्रज्ञापनासूत्रे एवम् एते नवमगाः, एकेन्द्रियाणाम् अभङ्गकम् नारकादीनां त्रिकभङ्गाः, यावद् वैमानिकानाम् , नवरं मनुष्याणां पृच्छा, सर्वेऽपि तायद् भवेयुः सप्त विधबन्धका एकविधवन्ध काश्च, अथवा सप्तविधवन्धकाश्च एकविधबन्धकाश्च षड्विधवन्धकश्च अष्टविधवन्धकश्च अबन्धकश्च, एवम् एते सप्तविंशतिर्भङ्गा भणितव्याः, एवम्-यथा वेदनीयं तथा आयुष्यं नामगोत्रश्च भणितव्यम् , मोहनोयं वेदयमानो यथा ज्ञनावरणीयं तथा भणितव्यम् ।।सू० १।। प्रज्ञापनायां षड्विंशतितमं पदं समाप्तम् ॥२६॥ - भंग (एवं एए नवभंगा) इस प्रकार ये नौ भंग होते हैं। (एगिदियाणं अभंगयं) एकेन्द्रिय आदि का अभंगक कहना (नारगादीणं तिय भंगा) नारक आदि के तीन भंग (जाब वैमाणियाणं) वेमानिकों तक (न चरं) विशेष (मणूमाणं पुच्छा ?) मनुष्यों संबंधी प्रश्न (सव्ये वि होजा सत्तविह पंधगा एगविहबंधगा य) सभी होते हैं सात के बन्धक और एक के बन्धक (अहया सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगे य अविहबंधगे य अबंधगे य) अथवा बहुत सोत के बन्धक, बहुत एक के बन्धक, कोई एक छह का बन्धक, एक आठ को बन्धक और एक अबन्धक (एवं एए सत्तावोसं भंगा भाणियन्या) इस प्रकार ये सत्ताईस भंग कहने चाहिये। (एवं जहा वेदणिज्जं) इस प्रकार जैसे चेदनीय (नहा ओज्यं नाम गोयं च भाणियध्यं) उसी प्रकार आयु, नाम, और गोत्र कहना चाहिए (मोहणिज्ज वेदेमाणे) मोहनीयकर्म को वेदता हुआ (जहा जाणायरिणज्जं तहा भाणियब्वं) ज्ञानावरणीय के समान कहना चाहिए ।। सू० १॥ छब्बीसवां पद समाप्त । मे2411 (चउ भंगो) या२ म (एवं एए नव भ गा) में प्र४२ मा नव स. (एगिदियाण अभंगय) डेन्द्रिय माहिना 2018 डे। (नारगादीण तिय भंगा) ना२४ महिना (जाय वेमाणियाण) वैमानि सुधी (नवर) विशेष (मणूमाणं पुच्छा) भनुध्यो समधी प्रश्न ? (सव्ये वि होज्जा सत्तविहबधगा एगविहब धगा य) मा हे। छ સાતના બંધક અને એકના બંધક (अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबधगा य छबिहबंधगे य अटुविहबंधगे य अब धगे य) અથવા ઘણા સાતના બન્ધક ઘણા એકના બંધક, કેઇ એક છને બંધક, એક આઠને બંધક અને એક અખંધક. (एवं एए सत्तावीसं भंगा भाणियव्या) प्रा२ मा सत्यावीस न ये . (एवं जहा वेदणिज्ज) से प्रारे या पेहनीय (तहा आउयं, नाम गोयं च भाणियव्वं) मेला अरे भायु नाम, गात्र ४i नये (मोहणिज्ज वेदेमाणे) भडनीय मन यता छत (जहा णाणावरणिज्जतहा भाणियव्यं) ज्ञानापरीयनी समान ४५ मे. ॥ सू० १ ॥ छपीसभु ५६ सभास ॥ २६ ॥ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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