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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २३ सू० १२ द्विन्द्रियादिकर्मबन्धस्थितिनिरूपणम् ४०७ भागोनाः, शेषास्त एवं परिपूर्णाः बध्नन्ति, यत्र एकेन्द्रिया न बध्नन्ति तत्र एतेऽपि न बध्नन्ति, द्वीन्द्रियाः खलु भदन्त ! जीवा मिथ्यात्ववेदनीयस्य किं बध्नन्ति ? गौतम ! जघन्येन सागरोपमपञ्चविंशतिः पल्योपमस्यासंख्येयभागोनः, उत्कृष्टेन स चैव परिपूर्णों बध्नन्ति, तिर्यग्यो निकायुष्यस्य जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन पूर्वकोटि चतुभिर्वधिका बध्नन्ति, एवं मनुष्यायुष्यस्यापि, शेषं यथा एकेन्द्रियाणां यायद् अन्तरायस्य, त्रीन्द्रियाः चेच) शेष वही (पडिपुण्ण बंधति) परिपूर्ण बांधते हैं (जस्थ एगिदिया न बंधति) जहां अर्थात् जिन प्रकृतियों को एकेन्द्रिय नहीं बांधते (तत्थ एतेवि न बंधति) वहां अर्थात् उन प्रकृतियों को ये भी नहीं बांधते। (इंदिया णं भंते ! जीवा मिच्छत्तवेयणिजस्स किं बंधंति ?) हे भगवन् ! छोन्द्रिय जीव मिथ्यात्व वेदनीय कितने काल का बांधते हैं ? (गोयमा ! जहणेणं सागरोवमपणुयीसं) हे गौतम ! जघन्य पच्चीस सागरोपम (पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणयं) पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम (उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति) उत्कृष्ट वही परिपूर्ण बांधते हैं। (तिरिक्खजोणियाउयस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं) तिर्यंचायुका जघन्य अन्तमुहर्स (उक्कोसेणं पुवकोडि चउहिं वासेहिं अहियं बंधंति) उत्कृष्ट चार वर्ष अधिककरोड पूर्व बांधते हैं (एवं मणुयाउयस्त वि) इसी प्रकार मनुष्यायु का भी बंध करते हैं (सेसं जहा एगिदियाणं जाव अंतराइयस्त) शेष अन्तराय कर्म तक एकेन्द्रियों के समान । माछी, ( सेसा तं चेय) शेष ते भुल्म ४ (पडिपुण्ण बंधंति)-परिपू मांधे छे. ( जत्थ एगिंदिया न बंधति तत्थ एते वि न बंधति)-न्य अर्थात २२ प्रतियान मेन्द्रिय माधे નહીં ત્યાં અર્થાત્ તે પ્રકૃતિઓને તે બે ઇન્દ્રિય પણ બાંધતા નથી. (बेइदियाणं भंते जीवा मिच्छत्तवेयणिज्जस्स किं बंधतिः- मापन ! मन्द्रियदन्द्रिय જીવ મિથ્યાત્વ વંદનીય કર્મ કેટલા સમયનું બાંધે છે? (गोयमा ! जहण्णेणं सगरोत्रमपणवीस पलिओवमस्स असंखेज्जईभागेणं ऊणयं)- ગૌતમ, જઘન્યથી પોપમનો અસંખ્યાતમ ભાગ એ છે એવા પચ્ચીસ સાગરેપમ टमा नु मिथ्याप येहनीय भ मांधे छ. (उकासेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति)-मने ઉત્કૃષ્ટની પૂરેપૂરું તેટલું જ બાંધે છે. અર્થાત્ પૂરું પચ્ચીસ સાગરોપમનું–તેમાંથી પ. ૫મને અસંખ્યાતમે ભાગ એ છે કરવાનું નથી. (तिरिक्खजोणियाउयस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्त)-तिय यायुने धन्यथा मतभुइतनु, (उक्कासेणं पुत्रकोडिं चउहि वासेहिं अहियं बधंति)-Scष्टथी या२ वर्ष अघि 03 पूर्नु मांधे छ. (एवं मणुयाउयस्स वि)-मे प्रमाणे मनुष्यायुनो ५ मा ४३ . (सेसं जहा एगिदि याणं जाव अतराईयस्स)-शेष भतराय में सुधीनु सन्द्रियोनी समान : શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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