SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 402
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमैययोधिनी टीका पद २३ सू० ११ एकेन्द्रियकर्मप्रकृतिस्थितिपरिमाणनिरूपणम् ३८९ न्द्रिय नाम्नोऽपि जघन्येन सागरोपमस्य नव पञ्चत्रिंशदभागान् पल्योपमस्यासंख्येयभागोनान्, उत्कृष्टेन तश्चिव परिपूर्णान् बध्नन्ति, एवं यत्र स्तः जघन्येन द्वौ सप्तभागौ त्रयो वा चत्वारो वा सप्तभागाः, अष्टाविंशतिभागा भवन्ति, तत्र खलु जयन्येन तेचैव पल्योपमस्यासंख्येभागोना भणितव्याः, उत्कृष्टेन तश्चैिव परिपूर्णान् बध्नन्ति, यत्र खलु जघन्येन एको वा द्वयों वा सप्तभागस्तत्र जघन्येन स चैव भणितव्यः, उत्कृष्टेन तंचैव परिपूर्ण बध्नन्ति, यशः कीर्तिअसंख्यातयां भाग कम (उकोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधंति) उत्कृष्ट यही भाग पूरे यांधते हैं (चउरिंदियनामाए वि जहण्णेणं सागरोवमस्स णव पणतीसइ भागे) चतुरिन्द्रिय नामकर्म का भी जघन्य सागरोपम का भाग (पलिओ. वमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणए) पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम (उक्को. सेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधंति) उत्कृष्ट यही भाग पूरे बांधते हैं। (एवं)इस प्रकार (जत्थ) जहां (अस्थि) हैं (जहण्णगं) जघन्य से (दो सत्तभागा) दो बंटे सात भाग (तिन्नि या) अथवा तीन (चत्तारि वा) अथवा चार बंटे (सत्त भागा) सात भाग (अट्ठावीसइ वा भागा भवंति) अथवा अट्ठाईस भाग होते हैं (तत्थ णं) यहां (जहण्णेणं) जघन्य से (ते चेच पलि ओवमस्स असंखेजड. भागेणं ऊणया) वही पल्योपम का असंख्यातभाग कम (भाणियव्या) कहना चाहिए (उकोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधंति) उत्कृष्ट रूप से वही भाग पूरे बांधते हैं (जत्थणं) जहाँ (जहणेणं) जघन्य से (एगो वा) एक (दिवडो वा) अथवा डेट (सत्तभागो) सात भाग (तत्थ) वहां (जहणेणं तं चेय भाणियव्यं) जघन्य से वही ગૌતમ, જઘન્યથી, પોપમને અસંખ્યાતમ ભાગ ઓછા એવા સગરોપમને નવ પાંત્રીसांस ला, (उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधति)-कृष्टथी ते ऐप माग पूसाधे छे. (चउरिदियनामाए वि जहण्णेणं सागरोवमस्स णव पणतीसइभागे, पलिओवमस्स असं. खेज्जइभागेणं ऊणए)-यतुरिन्द्रिय नामभने म धन्यथी, पक्ष्या५मनी असण्यातमी मा छ। मे। सागरी५माना न4 पत्रीसin प भागनो छ (उकोसेणं ते चैव पडिपुण्णे बंधति)-मने ४४थी ते ५ मा पूरा पणे मांधे छे. (एवं)-थे रे, (जत्थ)-४५i orti (अत्थि) छे-(जहण्णगं)-४न्यथी, (दो सत्तभागा,) में सतभांश (तिण्णि वा) #24 १५ सप्तमांश (चत्तारि वा)-मथा यार सतभांश (सत्तभागा)-सतभांश भागना, (अट्ठावीसइ वा भागा, भवंति)-। मश: मध्यावास मा थाय छे. (तत्थणं) त्या त्यां, (जहण्णेण)-/-यथी, (ते चेव पलिओवमस्स असंखेज्जइ भागेण ऊणया)-टामाथी ५८या५मने। मस यातभा मा माछ। (भाणियव्वा)- सेम हे नये. (उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधंति)-४८३५ ते ते माग पू२५२। मांधे छ. (जत्थ ण)-«यi rयां, (जहणेणं)-न्यथा (एगो या)-मे४, (दिवइढो वा)-मथा हो, (सत्तभागो)-सतमांश यु डाय (तत्थ)-त्या त्यां, (जहण्णेणं तं चेव भाणियव्यं)-न्यथा શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy