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प्रज्ञापनासूत्रे
उच्चैगोत्रयोः जघन्येन सागरोपमस्य एकं सप्तमार्ग पल्योपमस्या संख्येय भागोनम्, उत्कृष्टेन तं चैव परिपूर्ण बध्नन्ति, अन्तरायस्य खल्ल भदन्त ! पृच्छा, गौतम ! यथा ज्ञानावरणीयम्, उत्कृष्टेन तचैव परिपूर्ण बध्नन्ति ॥ सू० ११ ॥
टीका-पूर्वं जघन्येन उत्कृष्टेनच सामान्यतः सर्वासां प्रकृतीनां स्थितिपरिमाणं प्रतिपादितम् अथ एकेन्द्रियान् बन्धकानधिकृत्य सर्वप्रकृतीनां स्थितिपरिमाणमेव प्ररूपयितुमाह'एगिदियाणं भंते ! जीवा णाणावर णिज्जस्स कम्मस्स कि बंधंति ?' हे मदन्त ! एकेन्द्रियाः खलु जीवाः ज्ञानावरणीयस्य कर्मणः किम्-कियन्तं कालं यावत् ज्ञानावरणीयं कर्म बध्नन्ति ? कहना चाहिए (उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति) उत्कृष्ट वही परिपूर्ण बांधते हैं।
( जसो कित्ति - उच्चागोयाणं) यशःकीर्त्ति और उच्चगोत्र का ( जहण्णेण सागरोवमस्स एवं सत्तभागं ) जघन्य सागरोपम का एक घंटे सात भाग (पलि ओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया) पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम (उक्को सेणं तं चैव पडिपुण्णं बंधंति) उत्कृष्ट वही भाग पूरा बांधते हैं ।
( अंतराइयस्स णं भंते ! पुच्छा ?) हे भगवन् ! अन्तरायकर्म संबंधी प्रश्न ! (गोयमा ! जहा णाणावरिणिज्जं ) हे गौतम ! जैसे ज्ञानावरणीय (उक्को सेणं ते चेव पडिपुण्णं बंधति) उत्कृष्ट वही प्रतिपूर्ण बांधते हैं ।
टीकार्थ - इससे पूर्व सामान्य रूप से सभी कर्म प्रकृतियों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति के परिमाण का प्रतिपादन किया गया है अब एकेन्द्रिय बन्धकों को लेकर सब प्रकृतियों की स्थिति के परिमाण का प्रतिपादन किया जाता है।
गौतमस्वामी - हे भगवन् ! एकेन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीय कर्म का कितने काल तेषु महेषु लेहाये (उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति) - उत्कृष्टथी ते परिपूर्णपणे मधे छे. ( जसोकित्ती उच्चागोयाणं ) - यशः ५र्ति मने (२२ गोत्रनो मध (जहणणेणं सागरोत्रमस्स एवं सत्तभागं, पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया) - ४धन्यथी, पढ्यो भनो असभ्यात भो लाग माछा मेवा सागरोभतो मे सप्तमांश लागनी जांघे छे (उक्कोसेणं तं चेत्र पडिपुण्णं बंधंति) - उत्दृष्टथी तेट डे भाग पूर्ण यो मधे छे.
( अंतराय कम्मर णं भंते पुच्छा) - हे भगवन् ! अंतराय उर्भ संबंधी प्रश्न छु ( गोयम | ! जहा णाणावर णिज्जं ) - हे गौतम, धन्यथी, ज्ञानावरणीयनी समान भावु (उक्कोसेणं तं चैव परिपुण्ण बंधति) - उत्कृष्टपणे ते
परिपूर्ण यो मधे छे.
ટીકા આ અગાઉ સામાન્ય રૂપે બધી કપ્રકૃતિની જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિના પરિમાણુનું પ્રતિપાદન કરવામાં આળ્યું છે.
હવે એકેન્દ્રિય ખ'ધકાને લઈને બધી પ્રકૃતિઓની સ્થિતિના પરિમાણનુ' પ્રતિપાદન કરવામાં આવે છે.
શ્રી ગૌતમસ્વામી-હે ભગવન્! એકેન્દ્રિય જીવ જ્ઞાનાવરણીય કર્મના કેટલા વખત
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫