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________________ ३२६ प्रज्ञापनासूत्रे स्थितिः कर्मनिषेकः, कृष्णवर्णनाम यथा सेवा संहनननाम, सुरभिगन्धनाम पृच्छा, गौतम ! यथा शुक्लवर्णनाम्नः, दुरभिगन्धनाम्नो यथा सेवातसंहननस्य, रसानां मधुरादीनां यथा वर्णानां भणितं तथैव परिपाटया भणितव्यम्, स्पर्शा ये अप्रशस्तास्तेषां यथा सेवार्तस्य, ये प्रशस्ता स्तेषां यथा शुक्लवर्णनाम्नः, अगुरुलघुनाम्नो यथा सेवार्तस्य, एवम् उपघातनामापि, पल्योपम का असंख्यातयां भाग कम (उक्कोसेगं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ) उत्कृष्ट साढे सत्तरह कोडाकोडी सागरोपम (अट्ठारसवाससयाई अबाहा) साढे सत्तरह सौ वर्ष का अबाधा काल (अबाहूणिया कम्मट्टिई कम्मनिसेगो) अबाधा काल कम कर्म स्थिति कर्म निषेक काल । (कालवण्णनामाए जहा छेवट संघयणनामए) कृष्णवर्ण नामकर्म की स्थिति सेवा- संहनननामकर्म के समान । (सुन्भिगंधणामए पुच्छा ? सुरभिगंधनामकर्म की स्थिति विषयक प्रश्न ? (गोधमा ! जहा सुकिल्लवण्णनामस्स) हे गौतम ! जैसे शुक्लवर्ण नामकर्म को (दुन्मिगंधणामाए जहा छेवसंघयणस्स) दुरभिगंधनामकर्म की स्थिति जैसे सेवार्तसंहनन की। (रसाणं महुरादीणं जहा यण्णाणं भणियं तहेव परिवाडीए भाणियब्व) मधुर आदि रसों का कथन वर्गों के समान उसी क्रम से कहना चाहिए (फासा जे अपसत्था) स्पर्श जो अप्रशस्त हैं (तेर्सि जहा छेवस्स) उनकी स्थिति सेवार्तः संहनन के समान (जे पसस्था) जो प्रशस्त है (तेसिं जहा सुकिल्लवण्णनामस्स) (उकोसेणं अट्रारस सागरोवमकोडाकोडीओ)-कृष्टथी, सासत्तर छोडी साग।५. भनी स्थिति छ, (अद्धद्वारस वाससयाई अबाहा) तेनी सा। सत्तरसे। वर्षांनी समाधा४१५ छे. (अबाहणिय कम्मठिई कम्मनिसेगो) ते २५04 11 नी भस्थिति भनिषेनी छे. (कालवण्णनामए जहा छेवट्टसंघयणनामाए)-कृपा नाममा थिति सेवात सहनना નામકર્મની સ્થિતિ સમાન છે. (सुब्भिगंधनामाए पुच्छा)-हे मायन् ! सुलिग नाममा स्थिति मधी प्रश्न ४३ छु (गोयमा! जहा सुकिल्लवण्णनामस्स)- गौतम ! शुसप नाममनी पेठे सभा, (दुन्भिगंधनामार जहा छेवट्टसंघयणस्स) Flv नामभन स्थिति सेवानिन નામકર્મની સ્થિતિ પેઠે સમજવી. (रसाण महुरादी गं जहा वण्णाण भणियं तहेव परिवाडीए भाणियव्य)-भ७२ चमेरे રસોનું કથન વર્ષોની પેઠે એજ કમથી કહેવું જોઈએ અર્થાત સમજવું (फासा जे अपसत्था, तेसिं जहा छेवट्टस्स)-२५ मप्रशस्त समाना छ. (तेसिं जहा छेघस्स)-तेमनी स्थिति सेवात सहननी समान छे. (जे पसत्था, तेसिं जहा सुक्किलवण्णनामस्स) २२५ प्रशस्त मनोरम छ तेमनी स्थिति शुसया नाम भनी स्थिति समान छे. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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