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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २३ सू० १० एकेन्द्रियजातिनामस्थितिनिरूपणम् ३२७ पराघातनामापि एवञ्चव, निरयानुपूर्वीनाम पृच्छा, गौतम ! जघन्येन सागरोपमसहस्रस्य द्वौ सप्तभागौ पल्योपमस्यासंख्येयभागोनौ, उत्कृष्टेन विंशतिः सागरोपमकोटीकोटयः, विंशतिः वर्षशतानि अबाधा, अबाधोना कर्मस्थितिः कर्मनिषेकः, तिर्यगानुपूर्वी पृच्छा, गौतम ! जघन्येन सागरोपमस्य द्वौ सप्तभागौ पल्योपमस्यासंख्येयभागोनौ, उत्कृष्टेन विंशतिः उनकी स्थिति शुक्लवर्ण नामकर्म के समान । (अगुरुलहुनामाए जहा छेवदृस्स) अगुरुलघुनामकर्म की स्थिति सेवार्तसंहनन के समान (एवं उबघायनामए वि) इसी प्रकार उपघाननामकर्म की भी (पराघायनामाए वि एवं चेव) पराघात नामकर्म की भी इसी प्रकार (निरयाणुपुचीनामाए पुच्छा ?) नरकानुपूर्वी नामकर्म संबंधी पृच्छा? (गोयमा! जहणणेणं सागरोयमसहस्सस्स दो सत्तभागा, पलिओधमस्स असंखेजइभागेणं ऊणया) हे गौतम ! जघन्य पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम, सागरो. पम का भाग (उकोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ) उत्कृष्ट वीस कोडाकोडी सागरोपम (चीसं वाससयाइं अबाहा) वीस सौ वर्ष का अबाधा काल (अबाहणिया कम्मट्टिई कम्मनिसेगो) अबाधा काल कम कर्मस्थिति कर्म निषेक काल। __ (तिरियाणुपुवीए पुच्छा ?) तिर्यंचानुपूर्वी की स्थिति संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दो सत्तभागा, पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणया) हे गौतम ! जघन्य पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम सागरोपम का दो बंटे (अगुरुलघुनामए जहा छेवट्टस्स)-मगुरुतधु नभनी स्थिति सेवात सहनन नामકર્મની સ્થિતિ સમાન સમજવી, (एवं उवघायनामए वि) से प्रमाणे ५३ात नाममनी स्थिति ५ वी. (पराघायनामाए वि एवं चेव) परात नभनी स्थिति ५५ मे प्रमाणे गयी (निरयाणुपुव्वी नामाए पुच्छा)- भावान् न२४नुपूवी मम सधी प्रश्न छु. (गोयमा! जहण्णेणं सागरावमस्स दो सत्तभागा, पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं अणिया) હે ગૌતમ, જઘન્યથી, પલ્યોપમના અસંખ્યાતમા ભાગે ઓછા એવા સાગરોપમના બે સપ્તમાંશ ૨ ભાગની નરકાનું પૂવી નામકર્મની જઘન્ય સ્થિતિ છે. __(उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ) Seeथी, वीस डी सा५मनी स्थिति छे. (वीस वाससयाई अबाहा) तेने। पीससी-मे १२ वर्षानी माया छ. (अबाह णिया कम्मठिइ कम्मनिसेगो) ते समाधानी मस्थिति अपने भनिषेनी ७ वाय छे. (तिरियाणु पुव्वीए पुच्छा)- सापान ! तिय यानु पूवी नाम समधी प्रश्न छु (गोयमा ! जहण्णेगं सागरेविमस्स दो सत्तभागा, पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणिया) –હે ગૌતમ, જઘન્યથી, ૫૫મના અસંખ્યાતમા ભાગે ઓછા એવા સાગરેપમના બે સપ્તમાંશ છે ભાગની તિર્યંચાનું પૂવી નામકર્મની જઘન્ય સ્થિતિ છે. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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