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________________ प्रबोधिनी टीका पद २३ सू० १० एकेन्द्रियजातिनामस्थितिनिरूपणम् ३२५ " अवाधोना कर्मस्थितिः कर्मनिषेकः, लोहितवर्णनाम खलु पृच्छा, गौतम ! जघन्येन सागरोपम षड् अष्टाविंशतिभागाः पल्योपमस्यासंख्येयभागोनाः, उत्कृष्टेन पञ्चदशसागरोपमकोटीकोटयः, पञ्चदशवर्षशतानि अबाधा, अवाधोना कर्मस्थितिः कर्मनिषेकः, नीलवर्णनाम पृच्छा, गौतम ! जघन्येन सागरोपमस्य सप्त मष्ट । विशतिभागाः पल्योपमस्य असंख्येयभागोनाः, उत्कृष्टेन अष्टादशसागरोपमकोटीकोटयः, अर्द्धष्टादशवर्षशतानि अवाधा, अवाधोना कर्मकोडाकोडी) उत्कृष्ट साढे बारह कोडाकोडी सागरोपन (अद्ध तेरसवाससयाई अबाहा) साढ़े बारह सौ वर्ष का अबाधा काल (अवाहूणिया कम्महिई कम्मनिसेगो) अबाधा काल कम कर्मस्थिति कर्म निषेक का काल | (लोहियवण्णणामए णं पुच्छा ?) रक्तवर्णनामकर्म की स्थिति संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! जहण्णेणं सागरोयमरस छ अट्ठावीस इभागा ) हे गौतम! जघन्य सागरोपम का भाग (पलिओवमस्स असंखेज्जइ भागेहिं ऊणया) पल्योपम का असंख्यात भाग कम (उक्कोसेणं पण्णरससागरोवम कोडाकोडीओ) उत्कृष्ट पन्द्रह सौ कोडाकोडी सागरोपम (पण्णरसवाससयाई अवाहा) पन्द्रह सौ वर्ष का अबाधा काल (अबाहूणिया कम्मडिई कम्मनिसेगो) अबाधा काल कम कर्म स्थिति कर्म निषेक का काल । (नीलवण्णनामाए पुच्छा ?) नीलवर्ण नामकर्म की स्थिति संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! जहणेणं सागरोवमस्स सत्त अट्ठावीस भागा ) हे गौतम! जघन्य सागरोपम का सात घंटे अट्ठाईस भाग (पलियोवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया) यमनी स्थिति छे. (अद्धतेरसवाससयाई अबाहा ) - तेन साडामारसो वर्षोनी समाधा आण छे- (अबाहणिया कम्मठिई कम्मतिसेगो) ने साधा आण वगरनी उर्भ स्थिति निषेडना आज छे. (लोहियवण्णनामरणं पुच्छा) - हे भगवन् सोहित ख्त पशु-सास रंगवाणी नाम भनी સ્થિતિ સંખંધી પ્રશ્ન કરું છું. (गोयमा, जहणणेणं सागरोवमस्स छ अट्ठावीसई भागा पलिओवमरस असंखेज्जइ भागेहिं ऊणया) - हे गौतम, धन्यथी, पहयेोपमना असंख्यातमा लागे मोछा वा सागरीयभने । છ અચાવીસાંશ = ભાગની લેાહિત વર્ણના નામકર્મની જધન્ય સ્થિતિ છે, (उक्कोसेण पन्नरससागरोवम कोडाकोडीओ) - ष्टथी, चंडर डोडा ओडी सागरीषभनी स्थिति छे, (पण्णरसवाससयाई अबाहा ) - तेना परसो वनमाधा छे (अबाहूणिया कम्मठिई कम्मनिसेगो) - ते अभाषाण वगरनी उस्थिति कर्मनिषेधना आज छे. (नीलत्रण्णनामाए पुच्छा) हे भगवन् ! नीसव' नाम अर्मनी स्थिति संबंधी प्रश्न छु (गोयमा ! जहणेणं सागरोत्रमस्त सत्त अट्ठावीसइभागा पलिओ मस्स असंखेज्जइभागेणं ऊगया) - हे गौतम, ४धन्यथी, सात અઢચાવીસાંશ = ભાગની નીલવર્ણની જઘન્ય નામકમ સ્થિતિ છે. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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