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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २३ सू० १० एकेन्द्रियजातिनामस्थितिनिरूपणम् ३२३ पल्योपमस्यासंख्येयभागोनाः, उत्कृष्टेन अष्टादशसागरोपमकोटीकोटयः, अष्टदशवर्षशतानि आबाधा, अबाधोना कर्मस्थितिः कर्मनिषेकः: सेवात संहनननाम्नः पृच्छा, गौतम ! जघन्येनसागरोपमस्य द्वौ सप्त भागौ पल्योपमस्यासंख्येयभागोनौ, उत्कृष्टेन विंशतिः सागरोपमकोटी. कोटयः, विंशतिश्च वर्षशतानि अबाधा, अबाधोना कर्मस्थितिः कर्मनिषेकः, एवं यथा संहनननामानि षड्भणितानि, एवं संस्थानान्यपि षड्भणितव्यानि, शुक्लवर्णनाम पृच्छा, गौतम ! प्रश्न ? (गोयमा ! जहण्णेणं सागरोयमस्स नव पणतीसइभागा) हे गौतम ! जघन्य स्थिति सागरोपम का नौ बंटे पैतीस भाग (पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया) पल्योपम का असंख्यातयां भाग कम (उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ) उत्कृष्ट अठारह कोडाकोडी सागरोपम (अट्ठारस वासस याइं अवाहा) अठारह सौ वर्ष का अबाधा काल (अबाहूणिया कम्मट्टिई कम्मनिसेगो) अबाधा काल कम कर्म स्थिति काल निषेक काल (छेवसंघयणनामस्स पुच्छा ?) सेवातसंहनननामकर्म संबंधी प्रश्न ? (गोयमा! जहण्णेणं सागरो यमस्स दोणि सत्तभागा) हे गौतम ! जघन्य सागरोपम के दो बंटे सात भाग (पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणया) पल्योपम का असंख्यातयां भाग कम (उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ) उत्कृष्ट बीस कोडाकोडी सागरोपम (वीसं घास सयाई अबाहा) वीस सौ वर्ष का अबाधाकाल (अयाहूणिया कम्महिई कम्मनिसेगो) अबाधाकाल कम कर्म स्थिति कर्म निषेक का काल । (खिलिया संघयणेणं पुच्छा)-डे भगवन् ! lle सहनन नामभनी स्थिति समाधी प्रश्न छुः (गोयमा ! जहण्णेणं सागरोयमस्स नव पणतिसई भागा)-3 गौतम, धन्यथी सारी ५मना नय यात्रीसांशमा , (पलिओवमस्स असंखेज्जईभागेण ऊणया) तेमा पक्ष्या. ૫મને અસંખ્યાતમ ભાગ એછી તેટલી કીલિકા સંહનનના નામકર્મની જઘન્ય સ્થિતિ છે. (उक्कोसेणं अट्ठारससागरोवमकोडाकोडीओ) Seी , २५२ ।।3।डी. सागरा५मनी स्थिति छे. (अट्ठारसवाससयाई अबाहा)-तेनी २ढारसे वर्षांनी मा0 1 छ. (अबाहूणया कम्मठिई कम्मनिसेगो) ते माघ १२नी स्थिति से निषेनी ॥ छ. (छेवट्ट संघयणनामस्स पुच्छा)-हे भगवन् ! सेवात सहनन नाम:म समधी प्रश्न छु (गोयमा, ! जहणेणं सागरोवमस्स दोणि सत्तभागा, पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणिया)-3 गौतम, धन्यथी, पक्ष्योभना मे समा भागनी सेवात सननना નામકર્મની જઘન્ય સ્થિતિ છે. __ (उक्कोसेणं वीसं सागरोवम कोडोकोडीओ) टथी पास 151 सा॥२॥पनी स्थिति छ. (वीसं वासलयाई अबाहा)-तना पीससी-मे १२ वर्ष माया (अबाहूणिया कम्मठिई कम्मनिसेगो)-ते ममाया पानी भस्थिति ते मनिषना छ. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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