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________________ ३२२ प्रज्ञापनासूत्रे जघन्येन सागरोपमस्य सप्त पञ्चत्रिंशद्भागाः पल्योपमस्यासंख्येयमागोनाः, उत्कृष्टेन चतुर्दशसागरोपमकोटोकोटयः चतुर्दशवर्षशतानि अबाधा, अबाधोना कर्मस्थितिः कर्मनिषेक: अर्द्धनाराचसंहनननाम्नो जघन्येन सागरोपमस्य अष्टपञ्चत्रिंशद्भागाः पल्योपमस्यासंख्येयभागोनाः, उत्कृष्टेन पोडश सागरोपमकोटी कोटयः, षोडशवर्षशतानि अबाधा, अबाधोना कर्मस्थितिः कर्मनिषेकः, कीलिकासंहननं खलु पृच्छा, गौतम ! जघन्येन सागरोपमस्य नव पञ्चत्रिंशद्भागाः, हूणिया कम्मट्ठई कम्मनि सेगो) अबाधा काल कम कर्मस्थिति काल कर्मनिषेक काल है (नारायसंघयणनामस्स) नाराचसंहनन नामकर्म की स्थिति ( जहणेणं सागरोपमस्स सत्त पणतीसइ मागा, पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया) जघन्य पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम सागरोपम के सात घंटे पैंतीस भाग ( उक्कोसेणं चोद्दस सागरोवमकोडाकोडीओ) उत्कृष्ट चौदह कोडाकोडी सागरोपम ( चउदसवाससयाई अबाहा) चौदह सौ वर्ष का अबाधा काल (अबाहूणिया कम्मट्टिई कम्मनिसेगो) अबाधा काल कम कर्म स्थिति काल निषेक काल है (अर्द्धनाराय संघयणनामस्स) अर्धनाराचसंहनन नामकर्म की स्थिति (जहणेणं सागरोवमस्स अट्ठपणतीसइभागा ) जघन्य सागरोपम के आठ घंटे पैंतीस भाग (पलिओचमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया) पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम (उक्कोसेणं सोलस सागरोवमकोडाकोडीओ) उत्कृष्ट सोलह कोडाकोडी सागरोपम (सोलस वाससयाई अबाहा) सोलह सौ वर्ष का अबाधा काल (अवाहूणिया कम्मट्टिई कम्मनिसेगो) अबाधा काल कम कर्मस्थिति कर्म निषेक काल है ( खीलियासंघयणेणं पुच्छा ?) कीलिका संहनन की स्थिति संबंधी ( नारायसंघयणनामरस) - नाराय सहेनन नाभम्भनी स्थिति (जहण्णेणं सागरोवमस्स सत्तपणतीसइभागा, पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया) - धन्यथी पहयेोषमना असं ज्यातभा ભાગે આછી એટલા સાગરે પમના સાત પાંત્રીસાંશ છું, ભાગ છે. (उक्कोसेणं चोदससागरोत्रगकोडाकोडीओ) - उत्सृष्टथी, यह अडा डोडी सागरे यमनी स्थिति छे. (चउदसवाससयाई अबाहा) - तेना यौहसेो वर्षांनी समाधान छे. ( अबाहूणिया कम्मनिषेनी आज उडेवाय छे. नामदुर्मनी स्थिति (जहणेणं साग ठिs कम्मनिसेगो) - ते समाधाअण वगरनी उर्भ स्थिति (अर्द्धनाराय संघयणनामस्स) अर्धनाराय सहेनन मस्स अट्ठ पणतीसइभागा ) - ४धन्यथी सागरोपमना आहे यांत्रीसांश लाग (पलिओत्रमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणिया) तेभां पहयेोपमना असभ्यतभा लागे सोधी भेटली अर्ध નારાચ સહનન નામકર્મીની જઘન્ય સ્થિતિ છે. (उक्कोसेण सोलस सागरोवमकोडा कोडिीओ) - उत्सृष्टथी, सोण अडामेडी सागरीयभनी स्थिति छे, ( सोलस वाससयाई अबाहा) - तेने सोणसो वर्षांनी समाधान छे. ( अबाहूणिया कम्मठिई कम्मनिसेगो) ते समाधान वगरनी उस्थितिने उर्मनिषेना आण आहेवाय छे, શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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