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प्रज्ञापनास्त्रे पश्यति ? गौतम ! अयं खलु जम्बूद्वीपो द्वीपः सर्वद्वीपसमुद्राणां सर्वाभ्यन्तरकः सर्वक्षुल्लको वृत्त स्तैलापूपसंस्थानसंस्थितो वृत्तो रथचक्रवालसंस्थानसंस्थितः, वृत्तः · पुष्करकणिका संस्थानसंस्थितो वृत्तः परिपूर्णचन्द्रसंस्थानसंस्थिता, एकं योजनशतसहस्रम् आयाम विष्कम्भेण त्रोणि योजनशतसहस्राणि षोडशसहस्त्राणि द्वे सप्तविंशतिर्योजनशते क्रोशाःत्रीणि च गव्यतानि अष्टाविंशतिश्च धनुः शतं त्रयोदशचाङ्गुलानि अ गुलञ्च किश्चिद विशेषाधिक परिक्षेपेण प्रज्ञप्तः, देवः खलु महद्धिको यावद् महासौख्यः एक महान्तं सविलेपन पासइ ?) किचित् चक्षुइन्द्रिय से वर्ण को, घ्राणेन्द्रिय से गंध को रसनेन्द्रिय रस को और स्पर्शनेन्द्रिय से स्पर्श को नहीं जानता देखता ? (गोयमा !) हे गौतम ! (अयं णं जंबुद्दीवे दीवे) यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप (सव्वदीव समुदाणं सयभंतगए) सब छीप-समुद्रों के सब से बीच में हैं (सच्चखुडाए) सब से छोटा है (बट्टे) वृत्ताकार है (तेलापूयसंठाणसंठिए) तेल के पुए के आकार का है। (वढे रहचक्कचालसंठाणसंठिए) गोल रथ के चक्रवाल के आकार का है (यहे पुक्खरकणिया संठाणसंठिए) गोल कमल की कणिका के आकार का है (वढे पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिए) गोल चन्द्रमा के आकार का है (एगं जोयणसयसहस्स) एक लाख योजन (आयामविवखंभेणं) लम्बाईचौडाई में (तिणि जोयणसयसहस्साई) तीन लाख योजन (सोलससहस्साई) सोलह हजार (दोणि सत्ताबी से जोयणसए) दोसौ सत्ताईस योजन (तिणि यकोसे) तीन कोस (अट्ठावीसं धणुसय) एकसौ अट्ठाईस धनुष (तेरस य अगुलाई तेरह अंगुल (अद्धंगुलं च) और आधा अंगुल (किंचिबिसेसाहिए) किंचित विशेषाधिक (परिक्खेवेणं) परिधि से (पण्णत्ते) कहा है। _(देये णं महिड्डिए जाय महासोक्खे) महान ऋद्धिचाला यावत् महासुख
(गोयमा !) गौतम ! (अयं ण जंबुद्दीवे) मा ४मुद्र ५ नमी५ (सव्वदोवसमहाण सव्वभंतराए) मा दीपसमुद्रोना मधाना पयमा छे (सव्वखुड्डाए) अपाथी नानी छ (वडे) गाण (तेलापूयसंठाणसंठिए) तेवना पुमाना 241रने। छे (वट्टे रहचकवालसंठाणसंठिए) गोण रथना 4110 रना छ (बट्टे पुखरकण्णियासंठाणसंठिए) गोण भनी साना साना छे (वटै पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिए) मे याद्रभाना मारने छ (एगं जोयणसहस्सं) मे atm योगन (आयामविक्खंभेण) मा पहाणामा (तिण्णि जोयणसयसहस्साई) ! ५ योन (सोलससहस्साई) सय १२ (दोणि सत्तावीसे जोयणसये) से सतपास योग (तिण्णि य कोसे) त्रए स (अद्वायीसं धणुसय) मेसो मध्यावास धनुष्य (तेरस य अंगुलाई) ते२ मण (अचंगुलंच) मनेम । मां (किंचि बिसेसाहिए) यत् विशेषाधिः (परिक्खेवेण) परिघिया (पण्णत्ते) ४९ छे.
(देवेण महडूढिए जाव महासोक्खे) महान् ऋद्धियाणा यावत् महासुमा ६५
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫