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प्रमेयबोधिनी टीका पद ३६ सू० १३ क्रियादिसमुद्घाताचशेषनिरूपणम् १०८७ खलु भदन्त ! कियत्कालस्यापूर्णम् ? कियत्कालस्य स्पृष्टम् ? गौतम! एकसामयिकेन या द्विसामायिकेन वा त्रिसमायिकेन वा विग्रहेण, एतावत्कालस्य आपूर्णम्, एतावत्कालस्य स्पृष्टम्, शेषं तच्चैय यावत् पश्चक्रिया अपि, एवं नैरयिकोऽपि, नवरम् आयामेन जघन्येन अगुलस्य असंख्येयभागम, उत्कृष्टेन संख्येयानि योजनानि एकदिशि, एतायत-क्षेत्रम्, कियत्कालस्य ? तच्चैव यथा जीवपदे, एवं यथा नैरयिकस्य तथा असुरकुमारस्य, नवरम् एकदिशि विदिशि वा, एवं यावत् स्तनितकुमारस्य, वायुकायिकस्य यथा जीवपदे, नवरम् काल में स्पृष्ट होता हैं ? (गोयमा ! एगसमइएण या, दुसमइएण वा, तिसमइएण या विग्गहेणं) हे गौतम ! एक समय के, दो समय के, या तीन समय के विग्रह से (एचइकालस्स अफुण्णे) इतने काल में आपूर्ण होता है (एचइकालस्स फुडे) इतने काल में स्पृष्ट होता है (सेसं तं चेव जाच पंचकिरिया यि) शेष वही यावत् पांच क्रियावाले भी होते हैं ! ___ (एवं नेरइए वि) इसी प्रकार नारक भी (णयरं) विशेष (आयामेणं जहपणेणं अंगुलस्स असंखेजइभाग) लम्बाई में जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग (उक्कोसेणं संखेजाई जोयणाई एगदिसि) उत्कृष्ट संख्यात योजन एक दिशा में (एवइए खेत्ते) इतने क्षेत्र में (केवइकालस्स) कितने काल में ? (तं चेय जहा जोधपए) वही जैसा जीवपद में।
(एवं जहा नेरइयस्स तहा असुरकुमारस्स) इसी प्रकार जैसे नारक की वक्तव्यता चैसी असुरकुमार की (नवरं) विशेष (एगदिसि विदिसिया) एक दिशा में अथवा विदिशा में (एवं जाय थणियकुमारस्स) इसी प्रकार यायत स्तनितकुमार की।
(वाउकाइयस्स जहा जीयपए) घायुकायिक की जैसे जीव पद में (णवरं __ (गोयमा! एगसमइएण वा, दुसमइएण वा, तिसमइएण या विग्गहेण) है गौतम ! से ४ समयना, मे समयाना, २५॥२ १५ समयाना विस्थी (एवइकालस्स अफुण्णे) मेटा
मां Pापू थाय छ (एवइकालस्स फुडे) मेटा मा २५ष्ट थाय छे (सेसं तचेय जाव पंचकिरिया वि) शेष ते पाय यावाण ५५ थाय छे. (एव नेरइए वि) मे ४ारे ना२४ ५९ (णवर) विशेष (आयामेण जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइ भाग) मामा
धन्य शुसने। मसभ्यातमी मा (उकोसेण संखेज्जाइं जोयणाई एगदिसिं) कृष्ट सभ्यात येोन मे शामi (एवक्षा खेत्ते) मेटा क्षेत्रमा (केवइकालस्स) 32 mi (तं चेव जहा जीवपए) त्यांना नामां (एवं जहा नेरइयस्स तहा असुरकुमारस्स) से प्ररे पी ना२नी तथ्यता तेवी मसु२शुभारनी (नवर) विशेष (एगदिसि विदिसिं वा) मेशिभ मया विशिमा (एव जाव थणियकुमारस्स) मे ४ प्रा यापत् स्तनितमानी.
(वाउकाइयरस जहा जीवपए) पायु।यिनी पी ०५५६मा रणवर एगदिसिं) विशेष
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫