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________________ १०८६ प्रशापनासूत्रे जीयाओ कइकिरिया ? गोयमा! एवं चेय, से णं भंते ! ते य जीया अण्णेसिं जीवाणं परंपराघाएणं कइकिरिया ? गोयमा ! तिकिरिया घि चउकिरिया वि पंचकिरिया वि, एवं मणूसे वि ॥ सू० १३ ॥ ___ छाया-जीवः खलु भदन्त ! वैक्रियसमुद्घातेन समवहतः समयहत्य यान् पुद्गलान निक्षिपति तैः खलु भदन्त ! पुद्गलैः कियत् क्षेत्रमापूर्ण कियत् क्षेत्रं स्पृष्टम् ? गौतम ! शरी: रप्रमाणमात्रं विष्कम्मबाहल्येन, आयामेन जघन्येन अङ्गुलस्य संख्येयभागम्, उत्कृष्टेन संख्येयानि योजनानि एकदिशि विदिशि वा, एतावत् क्षेत्रमापूर्णम् एतायत् क्षेत्रं स्पृष्टम्, तत क्रियादिसमुदघातवक्तव्यता शब्दार्थ-(जीचे णं भंते ! येउव्यियसमुग्धाएणं समोहए) हे भगवन् ! जीव वैक्रियसमुद्घात से समवहत हुआ (समोहणित्ता) समयहत होकर (जे पुग्गले निच्छुभइ) जिन पुदगलों को बाहर निकालता है (तेहिं णं भंते ! पोग्गलेहिं) हे भगवन् ! उन पुद्गलों से (केयइए खेत्ते अफुण्णे ?) कितना क्षेत्र आपूर्ण होता है ? (केवइए खेते फुडे) कितना क्षेत्र स्पृष्ट होता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (सरीरप्पमाणमेत्ते) शरीरप्रमाण मात्र (विक्खंभवाहल्लेणं) विष्कंभ और बाहल्य से (आयामेणं) लम्बाई में (जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभाग) जघन्य अंगुल का असंख्यातयां भाग (उकोसेणं संखिजाई जोयणाई) उत्कृष्ट संख्यात योजन (एगदिसिं) एक दिशा में (विदिसि वा) अथया विदिशा में (एचइए खेत्ते) इतना क्षेत्र (अफुण्णे) आपूर्ण होता है (एवइए खेने फुडे) इतना क्षेत्र स्पृष्ट होता है (से णं भंते ! केवइकालस्स अफुणे ?) हे भगवन् । वह कितने काल में आपूर्ण होता है ? (केवइकालस्त फुडे ? ) कितने વેકિયાદિ સમુદ્યાત વક્તવ્યતા wer :-(जीवा ण भंते ! वे उव्यियसमुग्घाएण समोहए) हे भगवन् ! ७५ वैठियसभुधातथा सभपत थयेट (समोहणित्ता) सभपडत ने (जे पुग्गले निच्छुभइ) ने पुनसान ५४२ ४ छ. (तेहि ण भंते ! पोग्गलेहि) सन् ! ते Yatथा (केवइए खेत्ते अप्फुण्णे ?) ४ा क्षेत्र मापू थाय छ १ (केवइए खेत्ते फुडे ?) 321 क्षेत्र २Yष्ट थाय छे ? (गोयमा !) है गौतम ! (सरीरप्पमाणमेत्ते) शरी२ प्रभाए मात्र (यिक्खंभवाहल्लेग) १४ भने मास्यथा (आयामेण) मा (जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभाग) ४५न्य मदनी असभ्यातमी AN (उक्कोसेण संखेज्जाई जोयणाई) Yष्ट समयात योगन (एगदिसिं) मे शाम (विदिसिं वा) 424 (4६शम (एवइए खेत्ते) मेला क्षेत्र (अफुण्णे) यापू हाय छे (एवइए खेत्ते फुडे) मेट। क्षेत्र पृष्ट थाय छे. (से ण भंते ! केवइकालस्स अफुण्णे ?) ३ सयन् ! ते मा अमi मापू थाय छे (केवइकालस्स फुडे) 52am mi Yष्ट छ ? શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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