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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १७ सू० ८ सलेश्याहारादिनिरूपणम् ७३ लेस्साओ पंचिदिय तिरिक्ख जोणिय मणूस वेमाणियाणं चेव, न सेसाणंति' नवरम् - पूर्वापेक्षया विशेषस्तु पद्मलेश्या शुक्ललेश्ये पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक मनुष्य वैमानिकानाञ्चैव वक्तव्ये न शेषाणां - तदन्येषामिति भावः, 'पण्णवणाए भगवईए लेस्साए पढमो उद्देसओ समतो' इतिप्रज्ञापनायां भगवत्यां लेश्यायां प्रथनः उदेशकः समाप्तः ॥ स्र० ८ || इतिश्री विश्वविख्यात - जगद्वल्लभ - प्रसिद्धवाचकपञ्चदशभाषा कलित- ललितकलापालापकप्रविशुद्धगद्यपद्यानैकग्रन्थनिर्मापक - वादिमानमर्दक- श्री - शाहू छत्रपतिकोल्हापुरराजप्रदत्त - 'जैनशास्त्राचार्य' - पदविभूषित - कोल्हापुरराजगुरु - बालब्रह्मचारी जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर - पूज्यश्री - घासीलाल- व्रतिविरचितायां श्री प्रज्ञापनासूत्रस्य प्रमेयवोधिन्याख्यायां व्याख्यायां सप्तदशे लेश्यापदे प्रथम उद्देशकः समाप्तः ॥ १ ॥ कहा है वैसा ही यहां कहना चाहिए। पूर्वोक्त को ही स्पष्ट करते हुए कहते हैं- पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या पंचेन्द्रिय तिर्यचों में, मनुष्यों में और वैमानिकों में कहना चाहिए, इनसे भिन्न अन्य जीवों में नहीं । श्री जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलाल व्रतिविरचित प्रज्ञापना सूत्र की प्रमेयबोधिनी व्याख्या में श्यापद का प्रथम उद्देशक समाप्त ॥ १ ॥ કહેવા જોઇએ. પૂર્વોક્તને જ સ્પષ્ટ કરતા કહે છે-પદ્મવેશ્યા અને શુકલલેશ્યા પંચેન્દ્રિય તિય ચામાં અને વૈમાનિકામાં જ હેવી જોઈ એ, તેમનાથી ભિન્ન અન્ય જીવામાં નહી શ્રી જૈનાચા જૈનધર્મદિવાકર પૂજય શ્રી ઘાસીલાલ તિવિરચિત પ્રજ્ઞાપના સૂત્રની પ્રમેયાધિની વ્યાખ્યાના લેશ્યાપદના પ્રથમ ઉદ્દેશક સમાસ 1૧૫ प्र० १० श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४ फ
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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