SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 599
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रज्ञापनास्त्रे एकविंशतितमं शरीरपदस्-अधिकारगाथा मूलम्-विहिसंठाणपमाणे पोग्गलचिगणा सरीरसंजोगो । दव्वपएसऽप्पबहुं सरीरोगाहणऽप्पबहुं ॥१॥ छाया-विधि-संस्थान-प्रमाणानि, पुद्गलचयनं शरीरसंयोगः । द्रव्यप्रदेशाल्पबहुत्वं शरीरावगाहनाऽल्पबहुत्वम् । १॥ टीका-विंशतितमे पदे गतिपरिणामविशेषात्मकान्त क्रियारूपपरिणामस्य प्ररूपितत्वेन एकविंशतितमेऽपिपदे नरकादिगतिपूत्पन्नानां शरीरसंस्थानादिरूप गतिपरिणामविशेषमेय प्ररूपयितुं प्रथममधिकारगाथामाह 'विहिसंठाणपमाणे पोग्गलचिणणा सरीरसंजोगो' दव्यपए सऽप्पबहुं सरीरोगाहणऽप्पबहुं ॥१॥ तत्र प्रथमम् विधयः-प्रकाराः शरीराणां भेदाः प्ररूपणीया इत्यर्थः १, तदनन्तरं संस्थानानि-शरीराणामाकाराः प्ररूपणीयाः २, तदनन्तरम् 'प्रमाणानि'- शरीराणां परिमाणानि इक्कीसवां-शरीपद शब्दार्थ-(विहिसंठाणपमाणे) विधि अर्थातू शरीरों के प्रकार, संस्थान अर्थात् आकृति, प्रमाण-परिमाण (पोग्गलचिणणा) पुद्गलों ला चवन (सरीरसंजोगो) शरीरसंयोग (दव्वपएसप्पपहुं) द्रव्य और प्रदेश को अपेक्षा अल्प बहुत्व (सरीरो गाहणऽप्पबहुं) शरीरों की अवगाहना का अल्पवहुत्व टीकार्थ-वीसवे पद में गतिपरिणाम विशेष रूप अन्तक्रिया की प्ररूपणा की गई है। इस इक्कीसवें पद में नरकादि गतियों में उत्पन्न जीवों के शरीरसंस्थान आदि रूप गतिपरिणाम को ही प्ररूपणा करते हैं प्रारंभ में अधिकारगाथा कही जिसमें इक्कीसवें पद में प्ररूपित विषयों का निर्देश मात्र दिया गया है। प्रश्न गाथा इस पद की विषयसूची है। उसका अर्थ इस प्रकार है वीस शरी२ ५४ शा-(विहि संठाणपमाणे) विधि अर्थात् शरीशन ४२, संस्थान अर्थात् माति-प्रमा-परिभाए (पोग्गलचिणणा) पुसानु -ययन (सरीर संजोगो) शरी२ सयो। (दव्व पएसप्पबहु) ८५ अने प्रदेशती अपेक्षाये १६५मत्व (सरीरो गाहणाप्पबहु) शरी. રેની અવગાહનાનું અપમહત્વ. ટીકાર્થ–વીસમા પદમાં ગતિ પરિણામ વિશેષ રૂ૫ અન્તક્રિયાની પ્રરૂપણ કરાઈ છે. આ એકવીસમાં પદમાં નરકાદિ ગતિમાં ઉત્પન્ન થયેલા જવાના શરીરસંસ્થાન આદિ રૂપ ગતિપરિમાણની જ પ્રરૂપણ કરે છે. પ્રારંભમાં અધિકાર ગાથા કહી છે, જેમાં એકવીસમાં પદમાં પ્રરૂપિત વિષનો નિર્દેશ માત્ર આપેલ છે. પ્રકૃતગાથા આ પદની વિષયસૂચી છે. તેનો અર્થ આ પ્રમાણે છે श्री प्रशापन। सूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy