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________________ ४१८ प्रज्ञापनासूत्रे यो भवति अतो न तस्यामप्यवस्थायामलेश्यत्वव्याघात इति साद्यपर्यवसितो व्यपदिश्यते, 'दारं ' अप्टमं लेश्या द्वारं समाप्तम् ॥ ० ८ ॥ सम्बवख द्वार वक्तव्या मूलम् - सम्मद्दिट्ठी णं भंते सम्मदिट्टी ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! सम्मद्दिट्ठी दुविहे पण्णत्ते, तं जहा सादीए वा अपजवसिए, सादीए वा सपजबसिए, तत्थ णं जे से सादीए सपजासिए से जहण्णे णं अंतोमुहसं उक्कोसेणं छावट्ठि सागरोवमाई साइरेगाई, मिच्छादिट्टी णं भंते! पुच्छा, गोयमा ! मिच्छादिट्ठी तिविहे पण्णत्ते, तं जहाअाइए अजबसिए वा अणादीए वा सपजबसिए, सादीए वा सप ज्जबसिए, तत्थ णं जे से सादीए सपजबसिए से जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उकोसेणं अनंतं कालं, अनंताओ उस्सप्पिणि ओसप्पिणीओ कालओ. खेतओ अब पोग्गल परियहं देसूणं, सम्मामिच्छादिट्टी णं पुच्छा गोयमा ! जहणणं अतोमुद्दत्तं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं दारं ९ ॥ सू० ९॥ " छाया - सम्यग्दृष्टिः : खल भदन्त ! सम्यग्दृष्टिरिति कालतः क्रियच्चिरं भवति ? गौतम ! सम्यग्दृष्टि द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - सादिको वा अपर्यवसितः, सादिको वा सपर्यवसितः, प्राप्त होने के पश्चात् फिर कभी सलेश्य अवस्था उत्पन्न नहीं होती अतः अलेश्य सादि अनन्त है । (द्वार ८) नवव सम्यक्त्व द्वार शब्दार्थ - ( सम्मीि णं भंते! सम्मीि त्ति कालओ केवच्चिरं होइ ?) हे भगवन् ! सम्यग्दृष्टि जीव सम्यग्दृष्टि पने में कितने काल तक रहता है ?) (गोयमा ! सम्म ट्ठिी दुविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! सम्यग्दृष्टि जीव दो प्रकार के हैं ( तं जहा - सादीए वा अपज्जवसिए सादीए वा सपज्जवसिए) वे इस प्रकार - सादि अपर्यवसित और सादि सपर्यवसित (तत्थ णं जे से सादिए सपज्जबसिए) સલેશ્ય અવસ્થા ઉત્પન્ન નથી થતી, તેથી અલૈશ્ય સાદિ અનન્ત છે. ( દ્વાર ૮ ) નવમ્' સમ્યકત્વદ્વાર शब्दार्थ - ( सम्मदिट्टी णं भंते ! सम्महिदी त्ति कालओ केबच्चिरं होइ) लगवन् सम्यग्दृष्टि कव सम्यग्दृष्टि या हैटला आण सुधी रहे छे ? (गोयमा ! सम्म हिट्टो दुविहे पण्णत्ते) गौतम सम्यग्रहष्टिवाणा भवो मे प्रारना छे (तं जहा-सादीए वा अपज्जवसिए, सादीए वा सपज्जबसिए) तेथे। या प्रहारे - साहि अपर्यवसित भने साहि सपर्यवसित (तत्थ णं जे से सादीए श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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