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________________ प्रज्ञापनासूत्रे छाया - कृष्णलेश्या खलु मदन्त ! कतिविधं परिणामं परिणमति ? गौतम ! त्रिविधं वा नवविधं वा सप्तविंशतिविधं वा एकाशीतिविधं वा त्रिवत्वारिंशदधिकद्विशतविधं वा बहुकं वा बहुविधं वा परिणामं परिणमति, एवं यावत् शुक्ललेश्या, कृष्णलेश्या खलु भदन्त ! कति प्रदेशिका प्रज्ञप्ता ? गौतम ! अनन्तप्रदेशिका प्रज्ञप्ता, एवं यावत् शुक्ललेश्या, कृष्णलेश्या खल भदन्त ! कतिप्रदेशावगाढा प्रज्ञप्ता ? गौतम ! असंख्येयप्रदेशावगाढा प्रज्ञप्ता, एवं श्यापरिणाम द्वार २६८ (noहस्सा णं भंते! कहविहं परिणामं परिणमइ ?) हे भगवन् ! कृष्णलेश्या कितने प्रकार के परिणाम में परिणत होती है ? (गोयमा तिविहं वा नवविहं वा, सत्तावीसनिहं वा, एक्कासीतिविहं वा, येतेयालीसयविहं वा, बहुयं वा, बहुविहं वा परिणामं परिणमइ) हे गौतम! तीन प्रकार के, नौ प्रकार के, सत्ताईस प्रकार के इक्यासी प्रकार के, तयालीस प्रकार के, बहुत से अथवा बहुत प्रकार के परिणाम में परिणत होती है ( एवं जाव सुक्कलेस्सा) इसी प्रकार शुक्ललेश्या तक समझ लेवें । ( कण्हलेस्सा णं भंते ! कतिपएसिया पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! कृष्णलेश्या कितने प्रदेशों वाली कही है ? (गोयमा ! अनंतपएसिया पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त प्रदेशी कही है ( एवं जाव सुक्कलेस्सा ) इसी प्रकार यावत् शुक्ललेश्या ( कण्हलेस्सा णं भंते! कइपएसोगाढा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! कृष्णलेश्या कितने आकाश प्रदेशों में अवगाढ है ? (गोयमा ! असंखेजपए सोगाढा) हे गौतम ! असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ (पण्णत्ता) कही है एवं जाव सुक्ललेस्सा) इसी प्रकार यावत् शुक्ललेश्या (कण्हलेस्साए णं भंते! केवइयाओ वग्गणाओ લેશ્યા પરિણામ દ્વાર ( कण्हलेस्साणं भी ! कइविहं परिणामं परिणमइ १) लगवन् ! दृष्ट्णुलेश्या उटा प्रारना परिक्षामा परित थाय छे ? ( गोयमा तिविहं वा नवविहं वा सत्तावीसविहं वा, एक्कासीति - fag ar, ààufsaufag ar agh an, agfag ar aftori aftons) 3 slan! ay umal, નૌ પ્રશ્નારના સત્તાવીસ પ્રકારના, એકાસી પ્રકારના, ખસા તેંતાલીસ પ્રકારના ઘણા અથવા ઘણા प्रहारना परिक्षाभभां परित थाय छे ( एवं जाव सुक्कलेस्सा) मे प्रारे शुम्सलेश्या सुधी ( कण्हले साणं भंते! कइपएसिया पण्णत्ता) भगवन्! ष्णुलेश्या ठसा अहेशी बाजी ही ? (गोयमा ! अणतएसिया पण्णत्ता) गौतम ! अनन्त प्रदेशी उही छे (एवं जाव सुक्कलेस्सा) अठारे यावत् शुझसेश्या सुधी समन्न्वु. ( कण्ह लेस्साणं भंते! कइपएसोगाढा पण्णत्ता १) लगवन् ! कृष्णणुसेश्या डेटा आश प्रदेशोभां अवगाढ छे ? (गोयमा ! असंखेज्जपरसोगाढा) गौतम ! अध्यात प्रशोभां यवगाढ (पण्णत्ता) ५डी छे ( एवं जाव सुकलेस्सा) भेट अडारे यावत् शुम्ससेश्या पर्यत समन्वु. श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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