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________________ २२८ प्रज्ञापनासत्रे बलाहक इति वा कुमुददलमिति वा पुण्डरी दलमिति वा शालिपिष्टराशिरिति वा कुटज पुष्पराशिरिति वा सिन्दुवारमाल्पदाम इति वा श्वेताशोक इति वा श्वेतकणबीर इति वा श्वेतबन्धुजीव इति या, भवेद् एतद्पा ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, शुक्ललेश्या खलु इत इष्ट तरिकाचैव मनोज्ञतरिकाचैव वर्णेन प्रज्ञप्ता, एताः खलु भदन्त ! प टेश्याः कतिषु वर्णेषु शिष्यन्ते ? गौतम ! पश्वसु वर्णेषु शिष्यन्ते तद्यथा-कृष्णलेश्या कालेन वर्णेन शिष्यते नील लेश्या नीलवर्णेन शिष्यते कापोतलेश्या कृष्णलोहितेन वर्णेन शिष्यते तेजोलेश्या लोहितेन वर्णेन शिष्यते पदमलेश्या हारिद्रकेण वर्णेन शिष्य ते शुक्ललेश्या शुक्लेन वर्णेन शिष्यते।।सू०१७ । तपाकर धोये हुए चांदी का पद (सारदबलाहएइ वा) शरदऋतु का मेघ (कुमुददलेइ पा) कुमुद का दल (पोंडरीयदलेइ वा) श्वेत कमल का दल (सालिपिठुरासीति वा) चावलों के आटे की राशि (कुडगपुष्करासीति वा) कुटज के पुष्पों की राशि(सिंधु वारमल्लदामेइ वा) सिंधुवार के पुष्पों की माला (सेपासोएइ वा) श्वेत अशोक पुष्प (सेयकणवीरेइवा) श्वेतकनेर का फूल (सेतबंधु जीवएइ वा) श्वेत बन्धु जीवक का फूल (भवेयारूपे ?) ऐसे रूपवाली होती है ? (गोयमा ! णो इणटे समठे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं (सुक्कलेस्सा णं इत्तो इतरिया चेव) शुक्ललेश्या इससे भी इष्टतर (मणुण्णयरिया चेव) मनोज्ञतर (वण्णेणं पण्णत्ता) वर्ण से कही है ___ (एयाओ णं भंते ! छल्लेस्साओ कइसु वन्नेसु साहिज्जति) हे भगवन् ! यह छ लेश्याएं कितने वर्गों में कही जाती है ? (गोयमा! पंचसु वण्णेसु साहि. ज्जति) हे गौतम ! पांच वर्षों में कही जाती है (तं जहा-कण्हलेस्सा कालएणं वण्णेणं साहिज्जइ) तद्यथा कृष्णलेश्या कालवर्ण द्वारा कही जाती है (नीललेस्सा नीलवण्णेणं) नीललेल्या नीलवर्ण द्वारा (साहिज्जति) कही जाती है (काउ. लेस्सा काललोहिएणं वण्णेणं साहिज्जति) कापोतलेश्या काले-लाल वर्ण द्वारा दलेइ वा) महनुस (पोंडरियदलेइ वा) श्वेतभानु (सालिपिदरासीइ वा) येमानदाट नी राशि (कुडगपुप्फरासीति वा) १२ पानी २२ (सिन्दुवारमल्लदामेइ वा) सिन्पारन पानी भाप (सेयासोएइ वा) श्वेत सशयु५ (सेयकणवीरेइ वा) श्वेतार्नु ३० (सेतबंधुजीवएइ वा) श्वेतमाधु०५४नु त (भवेयारूवे) या ३५वाणी डाय छ? . (गोयमा ! णो इणद्वे समटे) गौतम ! ॥ अथ समय नयी (सुक्कलेस्साणं एत्तोइट्रतरियाचेव) शुसवेश्या तैनाथी ५ ७८८१२ (मणुण्णयरियाचेव) मनोज्ञत२ (वण्णेणं पण्णत्ता) वीही छे (एयाओ णं भंते ! छल्लेस्साओ कइसु वन्नेसु साहिज्जति)मावन् ! २१७ वेश्याये। हैटया पथी ४पाय छ ? (गोयमा ! पंचसु वण्णेसु साहिज्जंति) गौत! पायपणे मा ४३५१यछे (तं जहा कण्हलेस्सा कालएणं वण्ण्णेणं साहिज्जइ) ते २॥ प्रमाण- पृश्य॥ ७॥ २॥ पहली छ (नीललेस्सा नीलवण्णेणं) नारलेश्या नlam दा (साहिज्जंति) उपाय छ (काउलेस्सा काललोहिएणं वण्णेणं साहिति) पातश्या कामाने सास दा॥ पायेसी छ श्री. प्रशानसूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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