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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १७ सू० १७ लेश्यायाः वर्णनिरूपणम् २२७ मिति वा सुहिरण्यकाकुसुममिति या कोरण्टकमाल्यदाम इति वा पीताशोक इति वा पीत कणवीर इति वा पीतबन्धुजीव इति वा भवेद् एतद्रूपा ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, पद्मश्या खलु इत इष्टतरिका यावद् मन आमतरिकाचैव वर्णेन प्रज्ञप्ता, शुक्ललेश्या खलु भदन्त ! कीदृशी वर्णेन प्रज्ञप्ता ? गौतम ! तद्यथा नाम अङ्क इति वा शङ्ख इति वा चन्द्र इति वा कुन्दमिति वा दकमिति वा दकरज इति वा दधि इति वा दधिधन इति वा क्षीरपूरमिति वा शुष्कच्छवाडिका इति वा पिहुणमिञ्जिका इति वा ध्मातधीतरूप्यपट्ट इति वा शारदपुष्प (कुहंडय कुसुमेइ वा) कुष्माण्डलता का कुसुम (सुवण्ण जूहियाइ वा ) स्वर्ण यूथिका कुसुम (सुहिरनिया कुसुमेइ वा ) सुहिरण्यका कुसुम (कोरिंटमल्लदामे वा) कोरंटक की पुष्पमाला (पीतासोगेइ वा पीताशोक (पीतकणवीरेइ वा) पीला कनेर ( पीतबंधुजीवए वा) पीले बन्धुजीवक का पुष्प ( भवेयारूवे ?) ऐसे रूप वाली होती है ? (गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है (पहले साणं इत्तो इट्ठतरिया जाव मणामतरिया) पद्मलेश्या इससे भी अधिक इष्ट यावत् अधिक मनोज्ञ (वण्णेणं पण्णत्ता) वर्ण से कही है (सुक्कलेस्सा णं भंते ! केरिसिया वण्णेणं पन्नत्ता ?) हे भगवन् ! शुक्लया वर्ण से कैसी कही है ? (गोयमा ! से जहा नामए) हे गौतम ! जैसे कोई (अंकेइ वा ) अंकरत्न ( संखेइ वा) शंख (चंदेइ वा) चन्द्रमा (कुंदेइ वा) कुन्द ( दगेइ वा) दक-जल (दगर एइया) जलकण (दधीइ वा) दही (दहिघणेइ वा) जमा हुआ दही (खीरेइ वा ) दूध (खीरपूरएइ वा ) दूध का उफान (सुक्कच्छिवाडियाई वा ) सूखी फली (पेणमंजियाइ वा ) मयूरपिच्छ की मींजी ( धंतधोयरूप्पपट्टेइ वा ) सानु पुष्य (सुवण्णजूहियाइ वा ) स्वषु यूथिङ (लुध) युष्य (सुहिरन्नियाकुसुमेइ वा ) सुरिट्रियानु पुष्य (कोरिंटमल्लदामेइ वा) (२ टउनी पुष्पमाला ( पितासोगेइ वा ) भीजा शो ( पीतकणवीरेइ वा) पीजी रेशु ( पीतबन्धुजीवएइ वा ) पीजा मन्धुलवना पुण्य ( भवेया रूपे ?) मेवा ३५वाजी होय छे ? (गोयमा ! णो इट्टे समट्टे ) हे गौतम! आ अर्थ समर्थ नयी (पम्हलेस्साणं एत्तो इट्टतरिया जाव मणामतरिया) पहुभझेश्या तेनाथी पण अधिक दृष्टि यावत् अधि भनाइ (यण्णेणं पण्णत्ता) पथी उही छे ( दगरएइ वा ) भुशु (gedeen oi úà ! àfèfè ad qona) è annq! ysadkuı ayıʻell Fal kéal d! (manı! à agaray) è sau ! DH BIS (STE 1) 24's Red (TER TT) श ंभ (चंदेइ वा) यन्द्रमा (कुंदेइ वा ) भोगरे। ( दगेइ वा ) ४४०४२ (दधीइ वा) डी (दहिघणेइ वा ) ४भावेसु :ही (खीरेइ वा ) दूध (खीरपुरएइ वा ) ६धने। उरे। (सुक्कच्छी वाडियाइ वा ) सुडीइणी (पेहुणमिंजियाइ वा ) भोरंना पिछानाभी (धतधोरूप्पपट्टे वा) तथावीने घोयेसी यांहीनी पाट (सारदबलाहएइ वा) श२६३तुन भेध (कुमुद. श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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