________________
१९०
प्रज्ञापनासूत्रे
तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते- नीललेश्यो नैरयिकः कृष्णलेश्यं यावद् विशुद्धतरकं क्षेत्रं पश्यति, कापोतलेश्यः खलु भदन्त ! नैरयिको नीललेश्यं नैरयिकं प्रणिधाय अवधिना सर्वतः समन्तात् समभिलोकमानः समभिलोकमानः कियन्तं क्षेत्रं जानाति पश्यति ? गौतम ! बहुतरकं क्षेत्र जानाति पश्यति यावद् विशुद्धतरकं क्षेत्रं पश्यति, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते - कापोतश्यः खलु नैरथिको यावद् विशुद्धतरकं क्षेत्रं पश्यति ? गौतम ! तद्यथानाम कश्चित् पुरुषो बहुसमरणीयाद् भूमिभागात् पर्वतमारोहति, आरुह्य द्वावपि पादो उच्चयित्वा इस हेतु से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है (नीललेस्से नेरइए कण्हलेस्सं जाव विद्धतरगं खेत्तं पासह) नीललेश्या वाला नारक कृष्णलेश्या वाले की अपेक्षा यावत् विशुद्धतर क्षेत्र को देखता है ।
(काउलेस्से णं भंते ! नेरइए नीललेस्सं नेरइयं पणिहाय) भगवन् ! कापोत लेश्या वाला नारक नीललेश्यावाले नारक की अपेक्षा (ओहिणा) अवधि से ( सव्वओ समता समभिलोएमाणे २ केवइयं खेत्तं जाणइ पासइ ?) सब दिशा विदिशाओं में देखता - देखता कितने क्षेत्र को जानता देखता है ? (गोयमा ! बहुतरागं खेत्तं जाणइ पासह) हे गौतम ! बहुत क्षेत्र को जानता देखता है (जाव विशुद्धतरगं खेत्तं पासह) यावत् विशुद्धतर क्षेत्र को देखता है ( से केणणं भंते ! एवं बुच्चर) हे भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता हैं ( काउ लेस्सेणं नेरइए जाव विसुद्धतरगं खेत्तं पासइ ?) कापोतलेश्या वाला नारक यावत् विशुद्धतर क्षेत्र को देखता है ? (गोयमा ! से जहानामए केहपुरिसे बहुसमरमणिजाओ भूमिभागाओ पञ्चयं दुरुहइ) जैसे कुछ भी नाम वाला कोई पुरुष बहुत सम एवं रमणीय भूमिभाग से पर्वत पर चढे (दुरूहित्ता) चढ कर
क्षेत्रेने लगे छे, यावत् विशुद्धतर क्षेत्रने देणे छे (से वेणçणं गोयमा ! एवं बुच्चइ) हेतुथी हे गौतम! मे हवाय छे (नीललेस्से नेग्इए कण्हलेस जाव विसुद्धतरगं खेचं पासइ) નીલલેક્ષાવાળા નારક કૃલેશ્યાવાળાની અપેક્ષાએ યાવત્ વિશુદ્ધતર ક્ષેત્રને જોવે છે.
(काउलेसे भंते ! नेरइए नीललेस्स नेरइयं पणिहाय) हे भगवन् ! पोतवेश्यावाणा नार नीअसेश्यावाला नारनी अपेक्षाओ (ओहिणा ) अवधिथी ( सव्बओ समता समभिलोएमाणे केवइयं खेत्तं जाणइ पासइ) मधी दिशा विदिशामा लेतां टयां क्षेत्राने लगे छे भने हेथे छे (गोयमा ! बहुतरगं खेत्तं जाणइ पासइ) डे गौतम ! घा क्षेत्रोने लगे छे ने हेये छे (जाव विसुद्ध तरगं खेत्तं पासइ) यावत् विशुद्धतर क्षेत्रने देणे छे (से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चर) हे भगवन् ! शा हेतुथी मेवु उडेवाय छे (काउलेस्सेणं नेरइए जाव विशुद्धतरगं खेत्तं पासइ) प्रयोतसेश्यावाणा नार४ यावत् विशुद्धतर क्षेत्रने देणे छे ? (गोयमा ! से जहा नामए केइ पुरिसे बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ पव्वयं दुरुहइ) प्रेम । पशु नामपाणी है। पुष धाश्रम अने रमणीय भूभिलागी पर्वत पर थढे ( दुरुहिता) व्यढीने ( दो वि पाए) भन्ने यश ( उच्च विद्यावेत्ता ) या हरीने (सव्वओ समता) मधी विशाविधि
श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४