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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १७ सू० १२ नैरयिकोत्पत्यादिनिरूपणम् १६१ स्यात् नीललेश्यः स्यात् कापोतलेश्य उद्वर्तते, स्यात् यल्लेश्य उपपद्यते तल्लेश्य उद्वर्तते, तेजोलेश्य उपपद्यते नो चैव खलु तेजोलेश्य उद्वर्तते, एवम् अकायिका वनस्पतिकायिका अपि भणितव्याः, तत् नूनं भदन्त ! कृष्णलेश्यो नीललेश्यः कापोतलेश्यः तेजस्कायिकः कृष्णलेयेषु नीललेश्येषु कापोतलेइयेषु तेजस्कायिकेषु उपपद्यते, कृष्णलेश्यो नीललेश्यः कापोत लेश्य उद्वर्तते, यल्लेश्य उपपद्यते तल्लेश्य उद्वर्तते ? हन्त, गौतम ! कृष्णलेश्यो वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है । (सिय कण्हलेस्से) स्यात् कृष्णलेश्या वाला (उबवह) उद्वर्त्तन करता है (सिय नीललेस्से) स्यात् नीललेश्या में (सिय nireet) स्यात् कपोत लेश्या में (उदवहद्द) उद्वर्त्तन करता है (सिय) स्यात ( जल्लेस्से उववज्जइ तल्लेस्से उबवहद्द) जिस लेश्या वाला उत्पन्न होता है स्यात् उस लेश्यावाला उद्वर्तन करता है (तेउलेस्से उववज्जइ नो चेवणं तेलेस्से ववइ) तेजोलेश्या वाले में उत्पन्न होता है परन्तु तेजोलेश्या वाला होकर उदर्शन नहीं करता ( एवं आउकाइया) इसी प्रकार अष्कायिक (वणस्सइकाइयावि) वनस्पतिकायिक भी (भाणियव्वा) कहना चाहिए । ( से पूर्ण भंते ! कण्हलेस्से नीललेस्से काउलेस्से तेउकाइए) हे भगवन् ! कृष्णलेश्या वाले, नीललेश्या वाले, कापोतलेश्या वाले तेजस्कायिक ( कण्ह लेस्सेसु नीललेस्सेसु काउलेस्सेसु ते काइएस) कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्या वाले, कालेश्या वाले तेजस्कायिकों में (ववज्जह) उत्पन्न होता है ( कण्ह लेस्से, नीललेस्से काउलेस्से उबवगृह) कृष्ण, नील, कापोतलेश्या वाला उद्वर्त्तन करता है ( जल्लेस्से उववज्जइ तल्लेस्से उबबट्टइ) जिस लेश्यावाला उत्पन्न होता है, उस लेइयावाला उद्वर्त्तन करता है ? (हंता गोयमा !) हां गौतम ! ( कण्हलेस्से) जा तेलेस्से पुढविकाइएस उववज्जइ) ष्णु यावत् तेलेवेश्यत्वाजा पृथ्वी अयि अभां उत्पन्न थाय छे ( सिय कण्हलेस्से) स्यात् दृष्ट्णुलेश्यावाणा ( उववट्टइ) उवर्तन हरे छे (सिय नीललेस्से) स्यात् नीससेश्यामां (सिय काउलेस्से) स्यात् मापासेश्या ( उववट्ट) वर्तन पुरे छे सिय) स्यात् (जल्लेस्से उववज्जइ तउलेस्से उवबट्टइ) ने बेश्यावाणाभां उत्पन्न थाय छे स्यात् ते श्यावाणा वर्तनारे छे (तेउलेस्से उववज्जइ नो चेवणं तेउलेस्से उववट्टइ) तेलेवेश्यावाणामां उत्पन्न थाय छे परन्तु तेनेवेश्यावाणा यने उद्दवर्तन नथी ४२ता ( एवं आउकाइया) शेत्र अठारे सहायक (वणस्स इकाइया वि) वनस्पतियिः पशु (भणियन्त्रा) अहेवाले थे. ( से णूणं भंते ! कण्हलेस्से नीललेस्से काउलेस्से तेउकाइए) से लगवन् ! पृ॒ष्णुलेश्यावाणा, नीससेश्यावाणा, अयोतसेश्यावाणा तेस्माथि (कण्हलेस्सेसु नीललेरसेसु काउलेस्से ते काइ' सु) कृष्णशुखेश्यावाणा, नीससेश्यावाणा, अपोलेश्यावाणा तेक्रमाविमा ( उववज्जइ) उत्पन्न थाय छे (कण्हलैस्से, नीललेस्से, काउलेस्से उबवट्टर) डूष्णु, नीस, अयोतलेश्यावाजा उवर्तन रे छे ( जल्ले से उत्रवज्जइ तल्लेस्से उबवट्टइ) ने सेश्यापामा उत्पन्न थाय छे, ते वेश्यावाणा उदूवर्तन रे छे ? (हंता गोयमा !) डा, गौतम ! ( कण्हलेस्से, नीललेस्से, काउलेस्से ते उकाइए ) पृथ् प्र० २१ श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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