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प्रज्ञापनासूत्र यावत् तेजोलेश्योऽऽसुरकुमारः कृष्णटेश्येषु यावत् तेजोलेश्येषु असुरकुमारेषु उपपद्यते ? एवं यथैव नैरयिकस्तथा असुरकुमारा अपि, यावत् स्तनितकुमारा अपि, तत् नूनं भदन्त ! कृष्णलेश्यो यावत् तेजोलेश्यः पृथिवीकायिकः कृष्णलेश्येषु यावत् तेजोलेश्येषु पृथिवीकायिकेषु उपपद्यते ? एवं पृच्छा यथा असुरकुमाराणाम्, हन्त, गौतम ! कृष्णले श्यो यावत् तेजोलेश्यः पृथिवीकायिकः कृष्णलेश्येषु यावत् तेजोलेश्येषु पृथिवीकायिकेषु स्यात् कृष्णलेश्य उद्वर्तते, नील, कापोतलेश्या में उत्पन्न होते है (जल्लेस्से उववज्जइ तल्लेस्से उववदृह) जिस लेश्यावाला होकर उत्पन्न होता है, उसी लेश्यावाला में उद्वर्तन करता है।
(से गुणं भंते । कण्हलेस्से जाव तेउलेस्से असुरकुमारे) हे भगवन् ! कृष्णलेश्या वाला यावत् तेजोलेश्या वाला असुरकुमार (कण्ह लेस्सेसु जाव तेउलेस्सेसु असुरकुमारेसु) कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या वाले असुरकुमारों में (उववज्जइ) उत्पन्न होता है (एवं जहेव नेरइए) इस प्रकार जैसे नारक (तहा असुरकुमारा वि) उसी प्रकार असुरकुमार भी (जाव थणियकुमारा वि) यावत् स्तनितकुमार भी।
(से गूणं भंते ! कण्हलेस्से जाव तेउलेस्से पुढविकाइए) क्या हे भगवन् ! कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या वाला पृथ्वीकायिक (कण्हलेस्सेसु जाव तेउलेस्सेसु पुढविकाइएस) कृष्णलेश्या वाले यावतू तेजोलेश्या वाले पृथ्वीकायिकों में (उववज्जइ ?) उपजता है ? (एवं पुच्छा) ऐसी पृच्छा (जहा असुरकुमाराणं) जैसे असुरकुमारों की (हंता गोयमा !) हां गौतम ! (कण्हलेस्से जाव तेउलेस्से पुढविकाइए) कृष्णलेश्या वाला यावत् तेजोलेश्या वाला पृथ्वीकायिक (कण्हलेस्सेसु जाव तेउलेस्सेसु पुढविकाइएस्सु उववज्जइ) कृष्ण यावत् तेजोलेश्या
उत्पन्न थाय छे (जल्ले से उववज्जइ तल्लेस्से उअवट्टइ) २ २ ४ अत्पन्न याय छ તેશ્યાવાળામાં ઉદ્વર્તન કરે છે.
(से णूणं भंते ! कण्हलेस्से जाव तेउलेस्से असुरकुमारे) लावन् ! वेश्या यावत् तेसवेश्या11। मसु२४मा२ (कण्हलेस्सेसु जाव तेउलेस्सेसु असुरकुमारेसु) वेश्या यावत तनवेश्यावाणा ससुमारामा (उववज्जइ) उत्पन्न याय छे (एवं जहेव नेरइए) से मारे २१॥ ना२४ (तहा असुरकुमारा वि) मे ५४.२ असुमारे। ५५ (जाव थणियकुमारावि) यावत् स्तनितभार ५ सभ9 सेवा.
(से गुणं भंते ! कण्हलेस्से जाव तेउलेस्से पुढविकाइए) शु मगवन् ! वेश्या यावत् तश्या ४ि५४ (कण्हलेस्सेसु तेउलेस्सेसु पुढविकाइएसु) लेश्या यावत् वेश्यापार पृथ्वी थिमा (उववज्जइ) G५न्न थाय छे (एवं पुच्छा) मेवी २छ। (जहा असुरकुमाराण) रेम असु२४भारे। (हंता गोयमा !) &, गौतम ! (कण्हलेस्से जाव तेउलेस्से पुढविकाइए) ४४वेश्या यावत् तन्नवेश्या पृथ्वीय (कण्हलेस्सेसु
श्री प्रशाना सूत्र:४