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प्रमेयबोधिनी टीका पद १७ सू० १२ नैरयिकोत्पत्यादिनिरूपणम् लेश्याश्चारयितव्याः, वानव्यन्तरा यथा असुरकुमाराः, तत् नूनं भदन्त ! तेजोलेश्या ज्योतिषा स्तेजोलेश्येषु ज्योतिष्केषु उपपद्यते ? यथैव असुरकुमारः, एवं वैमानिका अपि, नवरं द्वयोरपि हयवन्ति, इत्यभिलापः तत् नूनं भदन्त ! कृष्णलेश्यो नीलले श्यः कापोतलेश्यो नरयिकः कृष्णलेश्येषु नीलले श्येषु कापोत लेश्येषु नैरयिकेषु उपपद्यते कृष्णलेश्यो नोललेश्यः कापोतऐप उद्वर्वते, यल्लेश्य उपपद्यते तल्लेश्य उद्वर्तते ? हन्त, गौतम ! कृष्णलेश्य नीललेश्य कापोतलेश्य उपपद्यते, यल्लेश्य उपपद्यते तल्लेश्य उद्वर्तते, तत् नूनं भदन्त ! कृष्णलेश्यो कहने चाहिए (नवरं) विशेष (छप्पि लेस्सा) छहों लेश्याएं (उ चारेयव्याओ बोलनी चाहिए।
(वाणमंतरा जहा असुरकुमारा) वानव्यन्तर जैसे असुरकुमार (से गुणं भंते ! तेउलेस्से जोइसिए) हे भगवन् : तेजोलेश्या वाला ज्योतिष्क देव (तेउ. लेस्सेसु जोइसिएसु) तेजोलेश्या वाले ज्योतिष्कों में (उववज्जइ ?) उत्पन्न होता है ? (जहेव असुरकुमारए) जैसे असुरकुमार (एवं वेमाणिया वि) इसी प्रकार वैमानिक भी (नवरं दोण्हं पि चयंतीति अभिलावो) विशेषता यह कि दोनों को 'च्यवते हैं' ऐसा बोलना।
(सेजणं भंते ! कण्हलेस्से नीललेस्से काउलेस्से नेरइए) हे भगवन् ! कृष्णलेश्या वाला, नील लेश्या वाला, कापोतलेश्या वाला नारक (कण्हलेस्सेस नील. लेस्टेसु काउलेस्सेसु नेरइएसु) कृष्णश्या वाले, नीललेश्या वाले, कापोतलेल्या वाले नारकों में (उववज्जइ) उत्पन्न होता है (कण्हलेस्सा नीललेस्सा काउलेस्सा उववइ) कृष्ण, नील, कापोतलेश्या में उद्वर्तन करता है (जल्लेस्से उवचट तल्लेस्से उववज्जइ ?) जिस लेश्या में उद्वर्तन करता है, उसी लेश्या में उत्पन्न होता है ? (हंता गोयमा !) हां गौतम ! (कण्ह-नील-काउलेस्से उववज्जइ) कृष्ण, उनसे (नवरं) विशेष (छप्पिलेस्सा) छ से वेश्या। (उ चारपत्राओ) पापी नाय.
(वाणमंतरा जहा असुरकुमाग) पानव्यन्त२ २१॥ असुभा२.
(से गं भंते ! तेउलेस्से जोइसिए) मापन ! तसेश्यायोतिमा (उववज्जइ ?) उत्पन्न थाय छे ? (जहेव असुरकुमारए) नेम असु२४मा२ (एवं वेमाणियावि) से परे वैमानि (नवरं दोण्हं वि चयंतीति अभिलावो) विशेषता भन्ने २५वे के समक्ष ___ (से णूणं भंते ! कण्हलेस्से नीललेस्से काउलेस्से नेरइए) हे भगवन् ! वेश्यावा, नात. सेश्यावाणा पोतसेश्यापाप ना२४ (कण्हलेस्सेसु नीललेसेसु काउलेस्सेसु नेरइएस) - सेश्यावा, नासेश्यापोतोश्याणानाभा (उववज्जइ) उत्पन्न थाय छे (कण्हलेसा, नीललेस्सा, काउलेस्सा उबवट्टइ) ३०, नीत, पातोश्यामा पतन ४२ छे (जल्लेस्से उबवइ तल्लेस्से उववज्जइ ?) २ वेश्यामा पनि ४२ छे, ते वेश्यामा उत्पन्न थाय छ (हंता गोयमा !) , गौतम! (कण्ह, नील, काउलेस्से उववज्जइ) कृष्ण, नla, पातोश्यामा
श्री. प्रशान। सूत्र:४