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________________ १५८ प्रतापनास्त्रे पृथिवीकायिकेषु उपपद्यते, स्यात् कृष्णलेश्य उद्वर्तते, स्यात् नीललेश्य उद्वर्तते, स्यात् कापोतलेश्य उद्वर्तते , तेजोलेश्य उपपद्यते नो चेव खलु तेजोलेश्य उद्वर्तते, एवम् अप्कायिका वनस्पतिकायिका अपि, तेजोवाता एवञ्चव, नवरम् एतेषां तेजोलेश्या नास्ति, द्वित्रिचतुरिन्द्रिया एवञ्चैव तिसृषु लेश्याम, पञ्चन्द्रियतिर्यग्रयोनिकाः मनुष्याश्च यथा पृथिवीकायिका आदिकासु तिसृषु लेश्यापु, भणितास्तथा पट्स्वपि लेश्यासु भणितव्याः, नवरं षडपिज्जइ पुच्छा ?) क्या भगवन् ! तेजोलेश्या वाला पृथ्वीकायिक तेजोलेश्या वाले पृथ्वोकायिकों में उत्पन्न होता है ? प्रश्न (हंता गोयमा !) हां गोतम ! (तेउलेस्सेसु पुढविकाइएस्सु उववज्जइ) तेजोलेश्या वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है (सिय कण्हलेस्से उववइ) स्यात् कृष्णलेल्या वाला उद्वर्तन करता है (सिय नीललेस्से उववइ) स्यात् नीललेश्या वाला उद्वर्तन करता है (सिय काउलेस्ले उवचइ) स्थात् कापोतलेश्या वाला उद्वर्तन करता है (तेउलेस्से उववज्जह) तेजोलेश्या वाला उत्पन्न होता है (नो चेवणं तेउलेस्से उववइ) तेजोलेश्या में उद्वर्तन नहीं करता (एवं आउकाइया वणस्सइ काइया वि) इसी प्रकार अपकायिक, वनस्पति कायिक (तेउवाऊ एवं चेव) तेजस्काय और वायुकाय भी इसी प्रकार (नवरं एएसि तेउलेस्सा नस्थि) विशेष यह कि इनके तेजोलेश्या नहीं होती। ___ (बिंदिय तिदिय चउरिंदिया एवं चेव) द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय इसी प्रकार (तिसु लेस्सासु) तीनों लेश्याओं में (पंचे दिय तिरिक्खजोणियामणुस्सा य) पंचेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्य (जहा पुढविकाइया) जैसे पृथ्वीकायिक में (भणिया) कहे (तहा) इसी प्रकार (छसु वि लेस्सासु) छहों लेश्याओं में (भाणियब्वा) ભગવદ્ ! તેજેશ્યાવાળા પૃથ્વીાયિક તેજોવેશ્યાવાળા પૃથ્વીકાયિકોમાં ઉત્પન્ન થાય છે? પ્રશ્ન (हंता गोयमा !) है। गौतम ! (तेउलेस्से सु पुढविकाइएसु उववज्जइ) ते वेश्या१॥ पृथ्वी 48Hi G५-न थाय छ (सिय कण्हलेस्से उबवट्टइ) स्यात् guydश्या५॥ वतन रे (सिय नीललेस्से उववट्टइ) स्वात् नासवेश्यावा. वतन ४२ छ (सिय काउलेस्से उववट्टइ) स्यात् पोताण वतन ४२ छ (तेउलेस्से उववज्जइ) तनवाणा ७५-1 थाय छ (नो चेव ण ते उलेस्से उववट्टइ) ते२३श्याम वतन नथी ४२ता (एवं आउकाइया वणस्लाइ काइया वि) ४ प्रहारे अ५४ायि४, वनस्पतिथि: ५ (तेउवाऊ एवंचेव) ते४२४ाय मने वायुय पy २४ प्र४२ (नवरं एएसिं तेउलेस्सा नस्थि) विशेष तेमन तश्या नथी होती. (विन्ति चउरिंदिया एवंचेव) दीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, यतुरिन्द्रिय मे प्राव (तिसु लेसास) १ वेश्यामामा (पंचेदिय तिरिक्खजोणिया मणुस्सा य) पयन्द्रिय तिय य म भनुष्य (जहा पुढविकाइया) २ पृथ्वी8148 (आदिल्लिया) माहिनी (तिसु लेस्सासु) त्रए सेश्यामोमा (भणिया) ४ा छ (तहा) ते रे (छसु वि लेस्सासु) ७ सेश्यासोमा (भाणियबा) श्री प्रशानसूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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