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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १७ सू० १२ नैरयिकोत्पत्यादिनिरूपणम् ____ १५७ कायिकेषु उपपद्यते, कृष्णलेश्य उद्वर्तते, यल्लेश्य उपपद्यते तल्ले श्य उद्वर्तते ? हन्त, गौतम ! कृष्णलेश्यः पृथिवी कायिकः कृष्णलेश्येषु पृथिवीकायिकेषु उपपद्यते, स्यात् कृष्णलेश्य उद्वर्तते, स्याद नोललेश्य उद्वर्तते, स्यात् कापोतलेश्य उद्वर्तते, स्याद् यल्लेश्य उपपद्यते श्यात् तल्लेश्य उद्वर्तते, एवं नीलकापोतलेश्येष्वपि, तत् नून भदन्त ! तेजोलेश्यः पृथिवीकायिकस्तेजोलेश्येषु पृथिवोकायिकेषु उपपद्यते पृच्छा, हन्त, गौतम ! तेजोलेश्येषु तक (नवरं तेउलेस्सा अन्भहिया) विशेष यह कि तेजोलेश्या वाले अधिक है। __(से णूणं भंते ! कण्हलेस्से पुढविकाइए) क्या भगवन् ! कृष्णलेश्या वाला पृथ्वोकायिक (कण्हलेस्सेसु पुढविकाइएसु) कृष्णलेश्यावाले पृथ्वीकायिकों में (उव वजह) उत्पन्न होता है (कण्हलेस्ले उववइ) कृण्णलेश्या वाला उद्वर्तन करता है (जल्लेस्से उववज्जह तल्लेस्से उववइ ?) जिस लेश्या वाला होकर उत्पन्न होता है उसी लेश्यावाला होकर उद्वर्तन करता है ?( हंता गोयमा!) हां गौतम! (कण्हलेस्से पुढविकाइए कण्हलेस्सेसु पुढविकाइएसु उववज्जइ) कृष्णलेश्या वाला पृथ्वीकायिक कृष्णलेश्या वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है (सिय कण्हलेस्से उववइ) स्यात् कृष्णलेश्या वाला में उद्वर्तन करता है (सिय नीललेस्से उववइ) स्यात् नीललेश्या वाला में उद्वर्तन करता है (सिय काउलेस्से उववइ) स्थात् कापोतलेश्या वाला में उद्वर्तन करता है (जल्लेस्से उववज्जइ तल्लेस्से उववइ) जिस लेश्या वाला होकर उत्पन्न होता है, उस लेश्या वाला में उद्वर्तन करता है (एवं नीलकाउलेस्साप्लु वि) इसी प्रकार नील और कापोतलेश्या में भी। (से गुणं भंते ! तेउलेस्ले पुढविकाइए तेउलेस्सेसु पुढविकाइएसु उववતેનલેશ્યાવાળી અધિક છે. (से णूणं भंते ! कण्हलेस्से पुढविकाइए) शु3 मापन् ! वेश्या वीय (कण्हलेस्सेसु पुढवि काइएसु) वेश्या पृथ्वीमिi (उववज्जइ) Gurन थाय छ (कण्हलेस्से उववट्टइ) वेश्यावामामा पनि ४२ छे (जल्लेस्से उववज्जइ तल्लेस्से उबवटइ) २ सेश्यामा उत्पन्न थाय छ, ते वेश्यापायी वतन ४२ छ (हंता गोयमा !) है। गौतम ! (कण्हलेस्से पुढविकाइए कण्हलेस्सेसु पुढविकाइएसु उववज्जइ) वेश्यावा पृथ्वी14४ ३३२या मिi S५-न थाय छ (सिय कण्हलेस्से उववट्टइ) स्यात् वेश्यावाणात न ४२ छ (सिय नीललेरसे उववट्टइ) स्यात् नासोश्यााणामां अहवत न थाय छ (सिय काउलेस्से उबवट्टइ) स्यात् पातसेश्यामा पनि परे (सिय जल्लेस्से उववज्जइ सिय तल्ले से उववट्टइ) २५त् २ वेश्या ५न्न थाय , स्यात् ये सेश्या वतन ४२ छ (एवं नीलकाउलेस्सासु वि) मे४ रे नी भने કાપતલેશ્યાવાળા પણ (से णूणं भंते ! तेउलेस्से पुढविकाइए तेउल्लेस्सेसु पुढविकाइएसु उववज्जइ पुच्छा ?) शु श्री. प्रापन। सूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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