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प्रज्ञापनासूत्रे नीललेश्यः कापोतलेश्य स्तेजस्कायिकः कृष्णलेश्येषु नीललेश्येषु कापोतलेश्येषु तेजस्कायिकेषु उपपद्यते, स्यात् कृष्णलेश्य उद्वर्तते, स्यात् नीललेश्य उद्वर्तते, स्यात् कापोतलेश्य उद्वर्तते स्याद् यल्लेश्य उपपद्यते तल्लेश्य उद्वर्तने, एवं वायुकायिकद्वीन्द्रियत्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिया अपि भणितव्याः, तत् नूनं भदन्त ! कृष्णलेश्यो यावत् शुक्ललेश्यः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकः कृष्णलेश्येषु यावत् शुक्ललेश्येषु पश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेषु उपपद्यते ? पृच्छा, हन्त, गौतम ! कृष्णलेश्यो यावत् शुक्ललेश्यः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकः कृष्णले श्येषु यावत्-शुक्लनीललेस्से काउलेस्से तेउकाइए) कृष्ण, नोल, कापोतलेश्या वाला तेजस्कायिक (कण्हलेस्सेतु नील लेस्सेलु काउलेस्सेसु तेउकाइएसु) कृष्ण, नील, कापोतलेश्या वाले तेजस्कायिकों में (उववज्जइ) उपजता है (सिय कण्हलेस्से उववइ) स्यात् कृष्णलेश्या में उद्धर्तन करता है (सिय नीललेस्ले उववइ) स्यात् नीललेश्या में उद्वर्तन करता है (सिय काउलेस्से उववइ) स्यात् कापोतलेश्या में उद्वर्तन करता है (सिय जल्लेस्से उववज्जइ तल्लेस्से उववइ) जिस लेश्यावालाउत्पन्न होता है स्यात् उसी लेश्यावाला उद्वर्तन करता है (एवं वाउकाइय-बेइंदियतेई दिय-चरिंदिया वि भाणियव्वा) इसी प्रकार वायुकायिक, द्वीन्द्रिय, जीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय भी कहने चाहिए।
(से गूगं भंते ! कण्हलेस्से जाव सुक्कलेस्से) हे भगवन् ! कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या वाले (पंचिंदियतिरिक्खजोणिया) पंचेन्द्रिय तिर्यंच (कण्हलेस्सेसु जाव सुक्कलेस्सेसु पंचिदियतिरिक्खजोणिएसु) कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में (उवधज्जइ) उपजता है ? (पृच्छा) प्रश्न (हंता गोयमा !) हां गौतम ! (कण्हलेस्से जाव सुक्कलेस्से) कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्यावाला (पंचिंदियतिरिक्खजोणिए) पंचेन्द्रिय तिर्यंच (कण्हलेस्सेसु जाव सुक्कलेस्सेस) नास, पातश्या ४४४ (कण्हलेस्सेसु नीललेस्सेसु काउलासेसु सेउकाइएसु) वृष्य, नीत, पातोश्यावाणा तायीभा (उववज्जइ) 64-1 थाय छे. (सिय कण्हलेसे उबवट्टइ) स्यात् ष्णवेश्यामा ६वत न ४२ छ (सिय नीललेस्से उवचट्टइ) स्यात् नासवेश्याम वतन ४२ छ (सिय काउलेस्से उववट्टइ) स्थान पातोश्याम वतन ४२ छ (सिय जल्लेस्से उववज्जइ तल्लेस्से उववट्टइ) खेश्याम 64-न थाय छे स्यात् तसेश्यावामा वन रे छ (एवं वाउकाइया बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदिया वि भाणियव्या) 20४ प्रारे वायु४५४, દ્વીન્દ્રિય, ત્રીન્દ્રિય, ચતુરિન્દ્રિય પણ કહેવા જોઈએ.
(से णूणं भंते ! कण्हलेस्से जाव सुक्कलेस्से) में भगवन् ! वेश्या यावत् शुसोश्यापाणा (पंचेंदियतिरिक्खजोणिया) ५'यन्द्रिय तिय य (कण्हलेस्सेसु पंचेदियतिरिक्खजोणिएसु)
खेश्या यावत् शुसोश्या ५येन्द्रिय तिय योभा (उववज्जइ) ७५२ छे, (पुच्छा) प्रल (हंता गोयमा !) , गौतम ! (कण्हलेस्से जाव अक्कले.स्से) वेश्या यावत् शुसअश्या (पंचेंदियतिरिक्खजाणए) पथेन्द्रिय तिय य (कण्हलेस्सेसु जाव सुक्कलेस्सेसु)
श्री प्रशापन। सूत्र:४